इन दिनों महाराष्ट्र की राजनीति में अजब भूचाल आया हुआ है। कहीं कांग्रेस शिवसेना पर शरद पवार की खुशामद करने के लिए आक्रामक हो रही है, तो वहीं शिवसेना ‘किसान आंदोलन’ के कमजोर पड़ने के लिए कांग्रेस को दोषी ठहरा रही है। लेकिन अब कयास ये भी लगाए जा रहे हैं कि संजय राउत शरद पवार की बढ़ाई यूं ही नहीं कर रहे हैं, बल्कि इसके पीछे उद्धव ठाकरे को सत्ता से बेदखल करने की योजना है।
इसके पीछे का कारण शिवसेना के बड़बोले प्रवक्ता और उसके मुखपत्र ‘सामना’ के प्रमुख संपादक संजय राउत के वर्तमान रूखों से समझा जा सकता है। सामना में उन्होंन लिखा, “समय आ चुका है कि अब यूपीए का दायरा बढ़ाया जाए, और सोनिया गांधी का स्थान एक योग्य और सशक्त नेता ले। एक कमजोर विपक्ष एक अत्याचारी सरकार का विकल्प नहीं बन सकता। बस लोगों के समर्थन की आवश्यकता है”।
यहां एक बार फिर संजय राउत ने यूपीए की कमान कांग्रेस के हाथों से स्थानांतरित करने की बात कही, परंतु उनके ऐसा कहने के पीछे कारण पर गौर करना अहम हो जाता है। दरअसल, एक ही तीर से संजय राउत दो निशाने भेदना चाहते हैं। एक तो शरद पवार की जी हुज़ूरी कर उनका विश्वास जीतना, तो दूसरा पवार के जरिए महाराष्ट्र में उद्धव सरकार को सत्ता से बेदखल करना।
इसके संकेत संजय राउत ने कुछ दिन पहले भी दिए थे, जब पार्टी के मुखपत्र सामना में उन्होंने लिखा था, “हमने नहीं कहा था कि शरद पवार को यूपीए का अध्यक्ष बना ही दो। परंतु हमारा संपादकीय यह अवश्य कहता है कि शरद पवार ही एकमात्र ऐसे नेता हैं जिन्हें भाजपा से लेकर सभी विपक्षी पार्टियां गंभीरता से लेती है”।
संजय राउत ने आगे कहा, “उन्हें [पवार] प्रधानमंत्री मोदी तक हल्के में नहीं लेते। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तक शरद पवार की सलाह ले रही हैं। इस समय शरद पवार ही इकलौते ऐसे नेता हैं जो हर क्षेत्र में लोकप्रिय है”।
वास्तव में अगर आप गौर करें तो ऐसा लगता है कि संजय राउत शरद पवार का कद राष्ट्रीय स्तर पर फिर से बढ़ाने के साथ अपने अपमान का प्रतिशोध लेना चाहते हैं। कहा जाता है कि भाजपा और शिवसेना के दशकों पुराने संबंध में दरार डालने वाले संजय राउत की मंशा यही थी कि उद्धव को मुख्यमंत्री बनवाकर उन्हें भी इनाम स्वरूप पार्टी में एक अहम पद मिलेगा। लेकिन न उन्हें और न ही उनके भाई सुनील राउत को राज्य सरकार में कोई स्थान मिला, और अब इसी कसर को वो शरद पवार के जरिए पूरा करना चाहते हैं।
वैसे देखा जाए तो शरद पवार की एनसीपी स्वयं इसी दिशा में काम कर रही है। दरअसल, एनसीपी का प्रभाव सबसे ज्यादा महाराष्ट्र के पश्चिमी क्षेत्र में है, जिसे कुछ लोग मराठवाड़ा भी कहते हैं। इधर ही शरद पवार की पार्टी को सबसे ज्यादा समर्थन और सीटें मिलती है, लेकिन यहीं शिवसेना भी उसे काफी कड़ी टक्कर देता रहा है, अपितु अधिकतर समय जीतता भी रहा है। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि कहीं न कहीं संजय राउत का वर्तमान रुख न केवल शरद पवार का काम आसान कर रहा है, बल्कि जल्द ही उद्धव ठाकरे को भी सत्ता से बेदखल करने का खाका बुनना है। हालांकि, इन अटकलों में कितनी सच्चाई है वो जल्द ही सामने होगा।