चीन ने चला रूस और भारत के संबंधों में दरार लाने के लिए नया दांव

जिनपिंग को लगता है रूस अपने फायदे के लिए भारत को डंप कर देगा!

भारत

इन दिनों चीन की नजर रूस पर है, जो अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के सत्ता में आने के बाद से अपनी नीतियों में बदलाव लाने पर विचार कर रहा है। परंतु चीन केवल रूस से निकटता ही नहीं बढ़ाना चाहता है, अपितु रूस और भारत के संबंधों में ऐसी दरार लाना चाहता है, जो कभी पाटी न जा सके।

इसकी ओर स्वयं चीन ने संकेत दिया है, जब उसने ग्लोबल टाइम्स में इसी संबंध में एक अहम लेख छपवाया। लेख के शीर्षक से ही आप समझ सकते हैं कि चीन किस प्रकार से दशकों पुराने इस संबंधों को तोड़ने में लगा हुआ है।

इस लेख में चीन ने लिखा है, “रूस और भारत के संबंध अब पहले जैसे नहीं रहे। दोनों के बीच का व्यापार अब निम्न स्तर पर है। जितना रूस चीन के साथ व्यापार करता है, उसका 1/10th हिस्सा भी वह भारत के साथ नहीं करता। भारत के रक्षा बाजार में पश्चिम देशों के बढ़ते दखल से दोनों देशों के बीच का सैन्य सहयोग बैकसीट ले रहा है, जिसमें पीएम मोदी का ‘मेक इन इंडिया’ रणनीति आग में घी डालने के समान है। इसके अलावा दोनों देशों के QUAD, अफगानिस्तान, एवं चीन द्वारा प्रस्तावित BRI के प्रोजेक्ट पर भी मतभेद उभरकर सामने आए हैं”।

अपने इस लेख के जरिये चीन भारत और रूस के बीच तनाव दिखाने की कोशिश कर रहा है जिससे दुनिया में ये संदेश जाये कि भारत रूस को महत्व नहीं दे रहा। वास्तव में रूस का झुकाव भारत की ओर बढ़ा है जिससे चीन चिढ़ा हुआ है।

परंतु चीन इतने पर नहीं रुका। ग्लोबल टाइम्स के इस लेख में आगे लिखा गया है, “विश्व धीरे-धीरे करके एक नए भौगोलिक संरचना की ओर अपने कदम बढ़ा रहा है। मॉस्को जितना चीन के करीब जा रहा है, उतना ही भारत अमेरिका के निकट जा रहा है। अगर ऐसे ही चलता रहा, तो दोनों देश एक दूसरे के कट्टर दुश्मन बन जाएंगे। अभी वर्तमान स्तर पर भी रूस और नई दिल्ली के बीच के संबंध ज्यादा अच्छे हैं, लेकिन ये दरार अब धीरे धीरे बढ़ती जा रही है”।

अब इससे चीन क्या संदेश देना चाहता है? मणिशंकर अय्यर की जुबानी कहें तो चीन का संदेश स्पष्ट है, ‘इन्हें [भारत] हटाइए, हमें ले आइए’। ऐसा इसलिए है क्योंकि यदि रूस को चीन और भारत में से किसी एक को चुनना है, तो वह दशकों से भारत को ही चुनता रहा है, और आगे भी चुनता रहेगा। रूस भारत के प्रति कितना निष्ठावान है, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि जहां एक ओर अपने अत्याधुनिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम एस 400 की डिलीवरी चीन को देने पर रोक लगा दी, वहीं भारत को इसी सिस्टम की डिलीवरी समय से पहले देने की व्यवस्था भी रूस ने ही की।

इसके अलावा रूस चीन से भले अपनी निकटता बढ़ा रहा हो, लेकिन वह चीन को अपने ऊपर हावी कतई नहीं होने देना चाहता है। इसका प्रमाण तभी दिख गया, जब आर्कटिक क्षेत्र में दशकों पुराने एक शस्त्र टेस्टिंग लैब को दोबारा खोला गया, क्योंकि इसी क्षेत्र पर चीन वर्चस्व जमाना चाहता है, जबकि रूस इसी क्षेत्र में भारत को निवेश के अवसर देकर अपने संबंध भारत के साथ और मजबूत बनाना चाहता है।

ऐसे में मरता क्या न करता, अब चीन ने रूस और भारत के बीच वैचारिक मतभेद को भड़काने की दिशा में काम शुरू कर दिया है, ताकि रूस और भारत के संबंधों में एक दरार उत्पन्न हो जाए। लेकिन चीन भूल रहा है कि यह रूस है, नेपाल या पाकिस्तान नहीं जो उसकी चिकनी चुपड़ी बातों में यूं ही फंस जाएगा।

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