एक कहावत है कि राजनीति में दिखावे के लिए कुछ भी चलता है, लेकिन अक्सर राजनीतिक पार्टियां दिखावे के नाम पर अपना मजाक बनवा लेती हैं। कुछ ऐसी ही स्थिति केरल एलडीएफ सरकार की भी है जहां केंद्र द्वारा कृषि कानूनों को अप्रभावी बनाने का ढोंग करने के केरल की लेफ्ट कैबिनेट ने विधानसभा के विशेष सत्र को बुलाया है। हास्यास्पद बात ये है कि दिखावा करने वाले इन नेताओं को पता ही नहीं है कि केरल में एपीएमसी एक्ट है ही नहीं। ये लोग अप्रभावी किसे बनाएंगे ये सवाल भी इनसे पूछा जाना चाहिए, लेकिन उससे भी दिलचस्प बात ये है कि देश का मेनस्ट्रीम मीडिया इस मुद्दे पर केरल सरकार को हीरो बताकर रिपोर्ट कर रहा है।
किसानों के नाम पर पूरे देश में राजनीति हो रही है, तो केरल की लेफ्ट शासित पिनराई विजयन सरकार इससे कैसे पीछे रह सकती है। केरल की विजयन कैबिनेट ने दिल्ली में प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारी किसानों के समर्थन और संसद द्वारा पारित नए कृषि कानूनों के विरोध में विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने का ऐलान किया है। केरल की सीपीएम विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर नए कृषि कानूनों के खिलाफ प्रस्ताव पारित करेगी।
इस दौरान केरल के वित्त मंत्री थॉमस इसाक ने को कहा, “केरल मंत्रिमंडल ने तीन विवादास्पद कृषि कानूनों पर चर्चा और कानूनों के खिलाफ प्रस्ताव लाने के लिए निर्धारित बजट सत्र से पहले 23 दिसंबर को एक विशेष विधानसभा सत्र बुलाने का फैसला किया है। किसानों के इस मुद्दे पर केरल सरकार उनके साथ खड़ी है।”
किसी ने कहा कौआ नाक ले गया तो केरल सरकार कोए के पीछे भाग पड़ी है, जबकि उनके किसी भी मंत्री या नेता ये ध्यान दिया ही नहीं कि कौआ यानी जिस एपीएमसी एक्ट को वो बरकरार रखने की बात कह रहे हैं असल में वो एपीएमसी एक्ट केरल में कभी प्रभावी ही नहीं था, तो इस पर विधानसभा का विशेष सत्र बुलाना एक नौटंकी से ज्यादा कुछ भी नहीं है।
केरल मे बड़े स्तर के फल या सब्जियों के किसान नहीं हैं। यहां चावल, दाल, फल किसी भी खाद्द पदार्थ की फसल नहीं होती है। मक्का से लेकर ज्वार और गेहूं से लेकर बाजरा तक, सबकुछ राज्य में दूसरे राज्यों से आयात किया जाता है। यहां केवल मसालों की ही खेती होती है। ऐसे में एपीएमसी के यहां होने या न होने से कोई खास फर्क पड़ता ही नहीं है क्योंकि यहां किसान एपीएमसी के अंतर्गत आने वाली चीजों का उत्पादन ही नहीं करते हैं। इसीलिए केरल में एपीएमसी एक्ट लागू ही नहीं था।
निष्कर्ष यही है कि केरल सरकार ने किसानों के समर्थन में राजनीतिक ऐंठ दिखाने के लिए विधानसभा के विशेष सत्र की नौटंकी का प्रस्ताव किया है ये ऐसा फैसला है जो कि असल में उसके लिए हंसी का पात्र बन गया है जो दिखात है कि ये केरल सरकार अपने नियम तक ठीक से नहीं याद रखती है और किसानों के हित की नौटंकी करती है।