भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल बिपिन रावत ने नेपाल को एक चेतावनी देते हुए कहा है कि वह किसी भी देश के साथ दोस्ती करने के लिए स्वतंत्र है लेकिन श्रीलंका और कुछ अन्य देशों के उदाहरण से सीख लेते हुए उसे चीन से सतर्क रहना होगा। जनरल रावत नेपाल इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल कोऑपरेशन ऐंड एंगेजमेंट (NIICE) के दूसरे वार्षिक सम्मेलन में दोनों देशों के संबंधों पर बोल रहे थे।
इस दौरान उन्होंने कहा, “नेपाल अंतरराष्ट्रीय मामलों में अपने हिसाब से किसी भी देश के साथ संबंध बढ़ाने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन उसे श्रीलंका और अन्य देशों के कुछ मामलों से सतर्क रहना चाहिए।” यह इशारा किसी और के लिए नहीं बल्कि चीन के लिए ही था। उन्होंने कहा है कि भारत-नेपाल के संबंध सदियों पुराना है। वर्तमान युग में, नेपाल अपनी स्वतंत्र विदेश नीति के आधार पर चीन सहित अन्य राष्ट्रों के लिए अपने द्वार खोल रहा है।
India's goodwill comes with no strings attached. Nepal is free to act independently in international affairs but must be vigilant & learn from Sri Lanka & other nations which have also signed agreements with other countries in the region: CDS General Bipin Rawat, at an event pic.twitter.com/T2Hc2vps42
— ANI (@ANI) December 17, 2020
जनरल बिपिन रावत का यह बयान स्पष्ट रूप से चीन के ऋण जाल की ओर इशारा था कि किस तरह से चीन बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के नाम पर कई देशों को कर्ज में डूबा चुका है और फिर उनके विदेश नीति को अपने हिसाब से चलाने के लिए दबाव बना रहा है।
यही नहीं भारत को चिंता है कि चीन अपने बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के माध्यम से देश के हितों के खिलाफ काम करने के लिए नेपाल की आंतरिक राजनीति में भी हस्तक्षेप कर रहा है। यही कारण है कि कुछ महीने पहले नेपाल के पीएम ने भारत के खिलाफ बॉर्डर विवाद छेड़ दिया था, परंतु समय के साथ अब संबंधों में मधुरता आई है।
बता दें कि जब श्रीलंका पर महिंदा राजपक्षे का शासन था, तब उन्होंने चीन के साथ अपने सम्बन्धों को खूब बढ़ाया। भारत सहित सभी देश जब श्रीलंका पर मानवाधिकार उल्लंधन का आरोप लगा रहे थे, तब चीन ने महिंद्रा राजपक्षे का साथ दिया और वे इसे चीन की दोस्ती समझ बैठे।
इसके बाद जब 2015 में मैत्रीपाल सिरिसेना ने कमान संभाली तब भी श्रीलंका चीन के पंजों में ही जकड़ा रहा। सीरिसेना के चीन समर्थन के कारण श्रीलंका ऋणजाल में फँसता चला गया। बीजिंग ने ना सिर्फ सीरिसेना को साझेदारी के नाम पर ऋण जाल में फंसाया, अपितु वर्ष 2017 में उसके हम्बनटोटा बंदरगाह को भी अपने अधिकार में ले लिया।
परंतु जैसे ही पिछले वर्ष नवंबर में सत्ता परिवर्तन हुआ वैसे ही इस पड़ोसी देश के भारत के प्रति रुख में बदलाव आया। नेपाल को भी अब श्रीलंका के उदाहरण से सीख लेते हुए चीन के किसी भी लालच पर सोच समझ कर कदम उठाना चाहिए।