यह जगजाहिर है चीन दुनिया के कुछ ऐसे देशों में है, जिसे अधिकांश देश और उसके नागरिक पसंद नहीं करते। अपनी खराब छवि के कारण चीन दुनिया में अलग थलग पड़ गया है। यही कारण है कि पिछले एक साल से वह जापान को अपनी ओर करने के लिए कोशिश कर रहा है, लेकिन जापान उसे तवज्जो देने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं है।
हाल ही में बीजिंग टोक्यो फोरम की ओर से करवाए गए एक सर्वे में यह बात सामने आई कि 45 प्रतिशत चीनी नागरिक जापान को लेकर सकारात्मक राय रखते हैं। अब जापान और चीन के इतिहास की जानकारी रखने वाला कोई भी आदमी इस सर्वे के दावे पर हँसेगा ही। पिछले 140 सालों के इतिहास में जापान ने जब जी चाहा, तब चीन पर आक्रमण किया और उसे बुरी तरह पीटा है। 1894-95 का चीन जापान युद्ध हो या उसके बाद हुए द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, जब भी दोनों देशों का सामना हुआ, चीन का अपमान हुआ है। इसके अतिरिक्त सेनकाकू जैसे अन्य द्वीपों को लेकर तथा दक्षिणी चीन सागर में स्वतंत्र आवागमन को लेकर भी दोनों देश आमने सामने रहते हैं। ऐसे में यह असंभव है कि चीन के लोग जापान पर सकारात्मक सोच रखें।
महत्वपूर्ण यह है कि इसी सर्वे में बताया गया है कि जापान के 10 प्रतिशत लोग ही चीन को लेकर सकारात्मक सोच रखते हैं। वास्तविकता यह है कि सर्वे के जरिये चीनी सरकार जापान को यह संदेश दे रही थी कि दोनों देशों के संबंध सुधारने के लिए वे अपनी ओर से तत्पर हैं और अब जिम्मेदारी जापान की है। किंतु जापान ने इसके जवाब में यह कहा कि चीन को इसपर विचार करना चाहिए कि क्यों लोग उसके प्रति नकारात्मक सोच रखते हैं।
SCMP की रिपोर्ट के अनुसार चीन में कार्यभार संभालने वाले नए जापानी राजदूत ने कहा है कि “चीन को जापानी लोगों के बीच उसकी खराब छवि के कारणों को देखना चाहिए, यह देखा जाना चाहिए कि क्या बीजिंग ट्रांस-पैसिफिक साझेदारी में शामिल होने के लिए आवश्यक उच्च मानकों को पूरा कर सकता है।” इसके बाद राजदूत तारुमी ने कहा ” भले ही हमारे प्रधानमंत्री बदल गए हैं लेकिन हमारी नीति की दिशा वही रहने वाली है।”
देखा जाए तो चीन को घेरने में जापान की ही मुख्य भूमिका रही है। जब अमेरिका में ओबामा प्रशासन और भारत में मनमोहन सरकार, चीन के प्रति आंख मूंदे खड़े थे, तब जापान के तात्कालिक प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने ही QUAD का सुझाव देकर सबसे पहले चीन की घेराबंदी शुरू की थी। यही कारण है कि चीन जापान के साथ रिश्ते सुधारने की लगातार कोशिश कर रहा है।
इसी क्रम में जिनपिंग प्रशासन ने अपने विदेश मंत्री को जापान दौरे पर भेजा था लेकिन कोई सफलता हाथ नहीं आयी। इसके बाद जिनपिंग सरकार ने नानकिंग सामूहिक हत्याकांड की 83वीं वर्षगांठ पर आयोजित होने वाले कार्यक्रम को भी उतनी तवज्जो नहीं दी, जितनी उसे अमूमन मिलती है, लेकिन इसका भी कोई लाभ नहीं मिला. बता दें कि नानकिंग हत्याकांड जापानी उपनिवेशवादियों द्वारा चीन में किया गया भीषण नरसंहार था, जिसमें लाखों लोग मारे गए थे और लाखों औरतों का बलात्कार किया गया था। इसकी याद में चीन में आयोजित होने वाले कार्यक्रम को इस बार उतनी भव्यता से नहीं मनाकर, जिनपिंग जापान को यह संदेश दे रहे थे कि हम पुरानी बातें भूलने को तैयार हैं। लेकिन इसका भी कोई परिणाम नहीं निकला।
चीन में जापानी राजदूत ने यह भी कहा कि ” राष्ट्रपति शी और चीन CPTPP में शामिल होने के लिए उत्सुक हैं, लेकिन यह देखना होगा कि क्या चीन TPP की सदस्यता के लिए आवश्यक उच्च मानकों को मानने के लिए तैयार है।” जापानी राजदूत का रवैया बताता है कि आबे की तरह ही वर्तमान जापानी प्रधानमंत्री योशिहिदा भी चीन के प्रति नर्म रुख नहीं अपनाएंगे, भले चीन उनका सहयोग पाने के लिए कुछ भी करे।