हाल ही में जम्मू कश्मीर में जिला विकास परिषद के चुनाव सम्पन्न हुए। अनुच्छेद 370 के हटने के बाद पहली बार जम्मू कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश में इस स्तर के चुनाव हुए। हालांकि, इस क्षेत्र के परिसीमन में अभी समय शेष है, परंतु वर्तमान समीकरण देखते हुए लगता है कि अब हालत पहले जैसे नहीं है, और भाजपा आने वाले समय में इस क्षेत्र के स्वघोषित ठेकेदारों की नींद उड़ाने वाली है।
जिला विकास परिषद के चुनाव के अंतर्गत जम्मू कश्मीर के 280 परिषदों के लिए चुनाव लड़े गए। परंतु किसी भी पार्टी या गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। कश्मीर में जहां नेशनल कॉन्फ्रेंस का दबदबा रहा, तो वहीं जम्मू क्षेत्र में भाजपा ने बहुमत प्राप्त किया। कुल मिलाकर जम्मू कश्मीर के गुपकार गठबंधन को सबसे अधिक 112 परिषदों का अधिकार प्राप्त हुआ।
अब इन परिणामों पर मिश्रित प्रतिक्रियाएँ आई हैं। कांग्रेस के प्रवक्ता सलमान निज़ामी ने कहा कि सांप्रदायिक ताकतों को लोगों ने बाहर का रास्ता दिखाया है, तो वहीं जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके उमर अब्दुल्ला ने कहा, “भाजपा ने सबका इस्तेमाल किया – ताकत, पैसा और बल। कई PDP के नेताओं को खरीदने का प्रयास किया गया, परंतु सब विफल रहा। अब इस हार के साथ यहाँ भाजपा विधानसभा के चुनाव तो शायद ही कराएगी। यदि ये वाकई लोकतंत्र की जीत है, जैसा कि भाजपा दावा कर रही है, तो उन्हे लोगों की सुननी चाहिए, अपनी नहीं”।
इसके अलावा कई मीडिया प्रकाशनों ने ये जताने का प्रयास किया कि किस प्रकार से इस चुनाव में भाजपा की हार हुई है, और गुपकार गठबंधन की जीत। लेकिन सच्चाई तो कुछ और ही है, जिसे बताने से मीडिया ठीक वैसे ही कतरा रही है, जैसे ग्रेटर हैदराबाद के निकाय चुनाव में भाजपा के वास्तव प्रभाव को बताने से मीडिया कतरा रही थी।
उमर अब्दुल्ला ने तंज कसा कि भाजपा को जम्मू में कम सीटें मिली, और कश्मीर घाटी में उनके प्रचार का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। परंतु सच्चाई तो यह है कि भाजपा ही इस पूरे चुनाव में 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनके उभरी है। इन 75 सीटों में से 3 ऐतिहासिक भी हैं, क्योंकि भाजपा ने कश्मीर घाटी में खाता खोलते हुए ये 3 सीटें प्राप्त की है, जिसमें से एक श्रीनगर की भी है।
इसके अलावा इस बार रिकॉर्ड 51 प्रतिशत मतदान हुआ, जो जम्मू कश्मीर के इतिहास में अब तक के किसी भी चुनाव का सर्वाधिक मतदान है। अगर आंकड़ों की बात की जाए, तो भाजपा का वोट शेयर लगभग 39 प्रतिशत है, और उसे 4.9 लाख वोट मिले हैं, जिसे दुर्भाग्यवश वह पर्याप्त सीटों में कन्वर्ट नहीं कर पाई। लेकिन यह मत इतने ज्यादा है कि नेशनल कॉन्फ्रेंस, PDP और कांग्रेस के कुल वोट मिलकर भी इसे पछाड़ नहीं पाएंगे।
लेकिन महबूबा मुफ्ती के तो अलग ही रंग ढंग है। मोहतरमा ने चुनाव पश्चात ट्वीट किया, “आज के DDC के परिणाम इस बात को स्पष्ट करते हैं कि जम्मू कश्मीर के लोगों ने गुपकार गठबंधन को अपना मत दिया है, और अनुच्छेद 370 को हटाने के असंवैधानिक निर्णय के विरुद्ध अपना मत दिया है। उन्होंने गुपकार की पुकार सुनी है, जो जम्हूरियत के हक के लिए लड़ती है”।
Todays DDC results have made it clear that people of J&K voted en masse for @JKPAGD thus rejecting the unconstitutional decision to abrogate Article 370. They have overwhelmingly supported @JKPAGD which stands for restoration of J&Ks special status.
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) December 22, 2020
‘घर फूँक कर तमाशा देखना’ शायद इसी को कहते हैं। 2 वर्ष पहले यही महबूबा मुफ्ती जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री थी, और अब उनकी पार्टी की हालत यह है कि ऐसे चुनाव में 100 सीट तो छोड़िए, वह 50 सीट भी नहीं अर्जित कर पाई। महबूबा की पार्टी PDP को महज 27 सीटें मिली है, जो काँग्रेस से सिर्फ 1 सीट ज्यादा है। इसके बावजूद महबूबा तो ऐसे उछल रही थी मानो अनुच्छेद 370 बहाल हो गया हो।
सच्चाई तो यही है कि जम्मू कश्मीर के जिला विकास परिषद चुनाव में लाख प्रपंच रचने के बावजूद गुपकार गठबंधन और काँग्रेस को करारी हार प्राप्त हुई है। यह चुनाव वर्तमान प्रणाली के अंतर्गत लड़ा गया, जहां कश्मीर घाटी का प्रभाव ज्यादा है। अब कल्पना कीजिए यदि विधानसभा चुनाव से पहले कुल सीटों को दोबारा से, बिना पक्षपात के बांटा जाए, तब इन अलगाववादियों का क्या हाल होगा।