तुर्की के राष्ट्राध्यक्ष एर्दोगन की हालत इस समय बहुत खराब है। अपनी ऊटपटाँग हरकतों और अजीबो-गरीब नीतियों के कारण वे न सिर्फ एक के बाद एक विदेशी साझेदार खो रहे हैं, बल्कि वे अपने देश की अर्थव्यवस्था की भी बलि चढ़ा रहे हैं। ऐसे में अब कयास लग रहे हैं कि तुर्की में एक और तख्तापलट की तैयारी चल रही है।
परंतु अगर तुर्की के आंतरिक राजनीति का विश्लेषण किया जाए, तो ऐसा प्रतीत होता है कि उसे सेना के माध्यम से तख्तापलट कराने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि इसके लिए दो कद्दावर महिला नेता ही काफी है, इयी पार्टी की अध्यक्ष Meral Aksener और CHP पार्टी की अध्यक्ष Canan Kaftancioglu।
Aksener और Kaftancioglu राजनीतिक रूप से विपरीत विचारधारा की है, परंतु दोनों से ही एर्दोगन के साम्राज्य को काफी ज्यादा खतरा है। Aksener एक राष्ट्रवादी नेता हैं और तुर्की के एलीट राजनीतिक वर्ग का हिस्सा भी रह चुकी हैं। वहीं दूसरी ओर Kaftancioglu उदारवादी हैं, और तुर्की के प्रमुख विपक्षी पार्टी CHP की नेता है। दोनों ही एर्दोगन के वर्चस्व को जबरदस्त चुनौती दे रही हैं, वो भी अपने अपने शैली में। Aksener के राष्ट्रपति बनने के ख्वाब किसी से छुपे नहीं है, और उन्होंने तो 2018 में एर्दोगन के विरुद्ध चुनाव भी लड़ा था। लेकिन अब वह एक नया रास्ता चुन रही है, जिससे एर्दोगन की राह और मुश्किल हो सकती है।
एर्दोगन जहां चरमपंथी MHP पार्टी के साथ गठबंधन कर रहे हैं, तो वहीं Aksener इन सबसे दूर एक तटस्थ राह अपना रही हैं, लेकिन उनके राष्ट्रवादी विचारों पर किसी को कोई संदेह नहीं है। एर्दोगन चाहते हैं कि Meral उनके गठबंधन का हिस्सा बने, परंतु Aksener का रुख स्पष्ट है – यदि एर्दोगन के चमचे उसके सर पर बंदूक भी रख दें, तो भी वह उनके गठबंधन में शामिल नहीं होने वाली।
दूसरी ओर 48 वर्षीय Kaftancioglu पिछले वर्ष इसतांबुल में सत्ताधारी AKP को पटखनी देने के बाद काफी तेजी से ऊपर बढ़ रही हैं। वह सदैव एर्दोगन के निशाने पर रहीं हैं, और सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में बात करने वाली मीडिया ने उन्हें नीचा दिखाने के भरसक प्रयास किये हैं, चाहे वो राष्ट्रपति के अपमान के झूठे आरोप हों, विद्वेष फैलाना हो, आतंक को बढ़ावा देना हो इत्यादि।
लेकिन Kaftancioglu के समर्थकों का मानना है कि यदि कोई एर्दोगन को स्पष्ट चुनौती दे सकता है, तो वो सिर्फ Kaftancioglu ही है। इसके अलावा जिस प्रकार से उनकी लोकप्रियता देशभर में बढ़ रही है, उससे एर्दोगन के लिए आगे की राह बिल्कुल भी आसान नहीं होने वाली। दोनों पार्टियां भली भांति जानती है कि 2023 में एर्दोगन को सत्ता से बाहर खदेड़ने के लिए इससे उपर्युक्त समय कोई और नहीं होगा। 2018 में AKP पार्टी ने भारी मतों से चुनाव जीती, परंतु तब से काफी कुछ बदल गया है। अपने आप को इस्लामिक जगत का नया खलीफा बनाने की सनक के कारण एर्दोगन ने तुर्की अर्थव्यवस्था के साथ साथ तुर्की के स्वाभिमान के भी पलीते लगा दिए हैं।
इसके अलावा एर्दोगन कितने लोकप्रिय हैं, इसका अंदाज आप इसी बात से लगा सकते हैं कि पिछले वर्ष हुए स्थानीय निकाय चुनाव में एर्दोगन की पार्टी को कितनी बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा था। ऐसे में Aksener and Kaftancioglu जैसी कद्दावर नेताओं का सामने आना एर्दोगन के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं हो सकता है, और ये इन दोनों नेताओं के लिए तुर्की के खोए गौरव को वापिस दिलाने के किसी सुनहरे अवसर से कम नहीं होगा।