चौंक गए? परंतु यही सच है। कश्मीर में इस समय आतंकवाद के लिए रिक्रूटमेंट बहुत तेजी से हो रही है, लेकिन आतंकियों के हाथ में अब पर्याप्त शस्त्रों की कमी हो रही है, और यदि स्थिति ऐसी ही रही, तो आने वाले समय में आतंकियों के पास लड़ने के लिए शस्त्र ही नहीं रहेंगे।
द प्रिन्ट की रिपोर्ट में पत्रकार खालिद शाह ने इस बात पर प्रकाश डालते हुए लिखा है, “इस वर्ष के रिक्रूटमेंट की संख्या में कोई विशेष अंतर नहीं रहा है। हर मृत आतंकी के लिए एक नया उम्मीदवार खड़ा हो जाता है। परंतु यहां पर एक और तथ्य है, जो सिद्ध करता है कि आतंकी गतिविधियों की तीव्रता में कितनी कमी आई है। डेटा के अनुसार कश्मीर में आतंकियों के पास अब पर्याप्त शस्त्रों और लॉजिस्टिक्स की कमी पड़ रही है, जिसके कारण वे बड़े और घातक हमले नहीं कर पा रहे हैं”।
अब ये कैसे संभव है? इसका कारण बताते हुए खालिद शाह आगे अपनी रिपोर्ट में बताते हैं, “ORF से प्राप्त डेटा के अनुसार अक्टूबर तक आतंक रोधी 176 ऑपरेशन को अंजाम दिया गया था। इसमें जब्त 254 अस्त्रों में से 101 या तो पिस्तौल या अन्य प्रकार के हैन्ड्गन थे, और बाकी विभिन्न प्रकार के असॉल्ट राइफल्स थे। इसके अलावा प्राप्त ऐम्युनिशन से अंदाज़ा लगाया जा रहा है कि पिस्तौल चलाने वाले आतंकियों के पास हर शस्त्र के लिए औसतन 10 राउन्ड होते थे”।
अब यदि आप सामरिक मामलों के विशेषज्ञ हैं, तो आप भी भली भांति जानते हैं कि एक आतंकवादी के लिए ज्यादा से ज्यादा नुकसान करने के अभियान में पिस्तौल नहीं काम आती। इससे स्पष्ट पता चलता है कि क्यों इस वर्ष 2019 के प्रारंभ की भांति भारी पैमाने पर आतंकी हमले नहीं हुए। पिछले वर्ष से आतंकी गतिविधियों में कितनी कमी आई है, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि पिछले वर्ष जब्त की गई 12 IED [Improvised Explosive Device] के मुकाबले केवल 1 इस वर्ष जब्त हुई है।
द प्रिन्ट की रिपोर्ट में आगे इस बात पर भी प्रकाश डाला गया कि कैसे आतंकियों के हथियार सप्लाई में इस बार काफी बाधा पड़ी है। रिपोर्ट में लिखा गया है, “किसी भी राज्य में आतंक को मापने के लिए यह देखना पड़ता है कि हथियारों की मांग कैसी है, क्योंकि कभी कभी हथियारों की सप्लाई मापना पर्याप्त नहीं है। अब चूंकि मांग बहुत ज्यादा है, पर हथियार पर्याप्त नहीं है, इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि हथियारों के सप्लाई रूट में बाधा आई है। क्रॉस LOC ट्रेड पर केंद्र सरकार की कार्रवाई और आतंकी नेटवर्क पर हो रही कार्रवाई के कारण आतंकियों को हथियार नहीं मिल पा रहे हैं”।
इसमें कोई दो राय नहीं कि एलओसी के व्यापार के जरिए भारी मात्रा में आतंकी ट्रकों के जरिए अपने हथियार भी स्मगल करते थे। जब इसी वर्ष डेप्युटी एसपी दविन्दर सिंह की गिरफ़्तारी हुई, और उसके काले धंधे की जांच पड़ताल हुई, तो इस नेटवर्क पर भी काफी हद तक स्वतः ही लगाम लग गई। भारतीय सेना और जम्मू कश्मीर के पुलिस ने पब्लिकली कहा है कि आतंकियों के पास अब हथियारों की कमी पड़ रही है। इसीलिए अब पाकिस्तान ड्रोन के रास्ते इन हथियारों को सप्लाई करने के हथकंडे अपना रहा है।
अभी 20 जून को ही बीएसएफ़ के जवानों ने एक चीनी ड्रोन को ध्वस्त किया, जो जम्मू कश्मीर में कठुआ से थोड़ी दूरी पर स्थित अंतर्राष्ट्रीय सीमा के निकट उड़ रहा था। इस ड्रोन के साथ एक एम 4 कार्बाइन राइफल और 4 ग्रेनेड भी थे। इसी भांति 19 सितंबर को 3 आतंकी जीवित पकड़े गए, जिन्होंने पूछताछ में बताया कि उन्हें ड्रोन के जरिए हथियार मिले थे। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि कश्मीर में अब आतंकियों के पास हथियारों की कमी पड़ गई है, और ये भारतीय सुरक्षा बलों के लिए किसी शुभ समाचार से कम नहीं है।
एक समय था जब भारत की सेनाओं के पास लड़ने के पर्याप्त गोला बारूद भी नहीं था और सीमा पार से आतंकी भारत के किसी भी कोने में कभी भी हमला करने में सफल हो जाते थे। लेकिन समय का फेर देखिए, आज भारत में इतनी क्षमता है कि वह एक ही समय पर पाकिस्तान और चीन दोनों से भिड़कर जीत भी सकता है।