सत्तावदी शासन किसी भी ऐसे पत्रकार से डरता है जिसकी पैठ जनता के बीच एक मुकाम हासिल कर चुकी है। खासकर ऐसे देशों में जहां सत्ता हथिया कर बैठे नेता अपने वर्चस्व को तनिक भी कम नहीं होने देना चाहते। ईरान एक ऐसा ही देश है जहां विरोध का कोई स्वर नहीं है। इसी महीने कुछ दिनों, पहले ईरान की सरकार ने रुहुल्ला जम नामक एक पत्रकार को इराक से अपहरण कर फांसी के फंदे पर लटका दिया।
अब ऐसा लगता है कि रुहुल्ला जम की हत्या के बाद न सिर्फ ईरान की रूहानी सरकार के खिलाफ जनता में रोष बढ़ेगा बल्कि सरकार के खिलाफ विरोध बढ़ने से सर्वोच्च नेता अयातुल्ला सैय्यद अली ख़ामेनेई के शासन पर भी खतरा बढ़ता जाएगा।
दरअसल, 12 दिसंबर को ईरान के पत्रकार रुहुल्ला जम को 2017 में सरकार विरोधी प्रदर्शनों को भड़काने में उनकी भूमिका के लिए सुबह तड़के ही फांसी दे दी गई थी। ईरान की सरकार ने ज़ाम को लालच देकर पहले फ्रांस से ईराक बुलाया और फिर वहाँ से उसका अपहरण करवा लिया और उनके इराक से ईरान तस्करी के बाद उन पर मुकदमा चलाया गया।
इस साल की शुरुआत में, ईरान की एक अदालत ने उन पर “corruption on earth” का आरोप लगा कर दोषी ठहराया तथा उनको मौत की सजा सुनाई थी। ईरान में “corruption on earth” एक ऐसा आरोप है जो अक्सर उन मामलों के लिए लगाया जाता है जिसमें कोई व्यक्ति जासूसी या ईरानी सरकार को उखाड़ फेंकने का प्रयास शामिल रहता है। इसके बाद ईरानी सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा चला जहां उनकी मौत की सज़ा को बरकरार रखा गया। इसके चार दिन बाद ही जल्दबाज़ी में फांसी दे दी गयी।
अब उनकी फांसी के बाद न सिर्फ ईरान बल्कि कई देशों जैसे अमेरिका और यूरोप में ईरानी निर्वासितों के बीच ईरानी सत्ता के खिलाफ लहरें तैयार हो रही है। दुनिया भर के कई कार्यकर्ताओं और वकालत समूहों ने ज़ाम के फांसी की निंदा की है। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के अनुसार, ईरान “पिछले 40 वर्षों से पत्रकारों के लिए दुनिया के सबसे दमनकारी देशों में से एक है।”
1979 के बाद से देश में कम से कम 860 पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया है। संगठन ने ट्वीट किया, “RSF ईरानी न्यायालय के इस नए अपराध से नाराज है।“ इस संगठन ने ट्वीट कर ईरान के सर्वोच्च नेता ख़ामेनेई को ज़ाम की हत्या के लिए दोषी ठहराया।
रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, मौत की सजा को बरकरार रखने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले की फ्रांस और कई मानवाधिकार समूहों ने निंदा की थी।
आखिर ईरान की सरकार रूहुल्लाह ज़ाम से इतना क्यों डरती थी?
बता दें कि रूहुल्लाह ज़ाम एक पत्रकार थे, जिन्हें ईरानी सत्ता के खिलाफ ऑनलाइन समाचार वेबसाइट AmadNews चलाने के लिए जाना जाता था, साथ ही मैसेजिंग ऐप टेलीग्राम पर भी उनका एक बड़ा चैनल था, जहां उनके एक मिलियन से अधिक फॉलोअर्स हो गए थे।
जम की वेबसाइट और टेलीग्राम फ़ीड ने ही 2017 में हुए सरकार के विरोधी प्रदर्शनों में एक केंद्रीय भूमिका निभाई जिसने रूहानी सरकार जी चूलें हिला दी थी। उस वर्ष हुए प्रदर्शनों में लगभग 5,000 लोगों को हिरासत में लिया गया था और 25 से अधिक लोग मारे गए थे।
जिस तरह के काम रूहुल्ला जम ने पिछली बार किया था उसे देखते हुए वे सरकार के लिए एक खतरनाक व्यक्ति थे, जिन्होंने एक ऐसी क्रांति की शुरुआत कर दी थी जिससे जनता विरोध प्रदर्शन के लिए सड़कों पर उतर गयी थी। ईरान की सरकार को डर था कि वे इस बार भी कुछ ऐसा ही करेंगे।
ज़ाम ने वर्ष 2009 में हुए विरोध प्रदर्शनों में भाग लिया था और गिरफ्तार भी हुए थे। उसके बाद उन्हें ईरान छोड़ कर फ्रांस में शरण लेनी पड़ी थी। उन्होंने जिस मीडिया संगठन की स्थापना की थी, उसने 2017 और 2019 के विरोध प्रदर्शनों के समन्वय में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अब चुनावों के दौरान भी ज़ाम से इसी प्रकार का भय था।
अगले वर्ष ईरान में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं और जनता के अंदर पहले से ही सरकार के खिलाफ भावनाएं भड़क रही है साथ ही नए अमेरिकी राष्ट्रपति के बाद ईरान के अंदर कट्टरपंथी तत्व दोबारा से बड़े स्तर के विरोध प्रदर्शनों से अधिक भयभीत थे। यही कारण था कि ईरानी सत्ता ने उन्हें फांसी के फंदे पर चढ़ाने के लिए तनिक भी देर नहीं किया। परंतु अब ईरान ने इस कदम से दुनिया भर में बैठे ईरानी ऐक्टिविस्टों की नजर अपनी तरफ कर लिया है जिसका परिणाम भयानक होने जा रहा है। ज़ाम की हत्या उस चिंगारी की तरह होगी जो पूरे जंगल में आग का कारण बन जाता है।
चुनाव आते-आते रूहानी सरकार के खिलाफ 2009 और 2017 से भी बड़े आंदोलन की आशंका बन चुकी है। न सिर्फ रूहानी सरकार बल्कि अब ऐसा लगता है कि सर्वोच्च नेता अयातुल्ला सैय्यद अली ख़ामेनेई के शासन का अंत भी शुरू हो चुका है।