Middle East में रूस की बड़ी रणनीति, ये एर्दोगन की योजनाओं को एक झटके में तबाह कर देगी

एर्दोगन की Middle East में उल्टी गिनती शुरू

तुर्की

सुपरपावर रूस को दुनिया इसलिए शक्तिशाली मानती है, क्योंकि उसके पास ख़तरनाक मिसाइल्स, आधुनिक तकनीकी विशेषज्ञता और दुनिया में सबसे बड़ा न्यूक्लियर हथियारों का ज़ख़ीरा है। हालांकि, यह  सिर्फ उसकी Firepower नहीं है, जो रूस को सुपरपावर बनाती है। राष्ट्रपति पुतिन के नेतृत्व में रूस अब कूटनीतिक नज़ाकत का भी भरपूर प्रदर्शन कर रहा है, जहां वह बम-गोले के विस्फोट से नहीं, बल्कि अपनी कूटनीति की ढाई चालों से भी दुश्मनों को पस्त कर रहा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण आप पश्चिम एशिया में देख सकते हैं जहां उसके रणनीतिक पंच का शिकार बना है तुर्की! अपनी शानदार रणनीति के तहत रूस तुर्की के आंगन में घुसकर एक-एक कर उसकी सभी lifelines काट रहा है। इसी क्रम में अब रूस ने UAE के साथ अपने सम्बन्धों को और मजबूत करने का फैसला लिया है।

TASS न्यूज़ एजेंसी के मुताबिक UAE के विदेश मंत्री शेख अब्दुल्ला बिन ज़ायेद सोमवार को अपने रूसी समकक्ष Sergey Lavrov से बात करेंगे। सूत्रों के मुताबिक, दोनों मंत्री पश्चिमी एशिया और उत्तरी अफ्रीका में मौजूदा परिस्थिति पर चर्चा करेंगे। इससे स्पष्ट होता है कि रूस तुर्की के पड़ोस में ही तुर्की को अलग-थलग करने की रणनीति पर काम कर रहा है। ऐसा इसलिए, क्योंकि रूस पहले ही ईरान, फ्रांस, साइप्रस और अमेरिका के साथ सहयोग कर तुर्की को घेरने की नीति पर काम कर रहा है।

रूसी विदेश मंत्रालय के बयान के मुताबिक “रूस और UAE राजनीतिक माध्यमों के ज़रिये दुनिया के अहम क्षेत्रों में जारी तनाव का शांतिपूर्ण हल चाहते हैं, जिसमें सभी पक्षों की बातों और समस्याओं को सुना जाए और उनका हल निकाला जाए। सीरिया, लीबिया और यमन में भी हम इसी प्रकार की वार्ता का समर्थन करते हैं।”

यहां सीरिया और लीबिया के उल्लेख से यह स्पष्ट है कि UAE के साथ मिलकर रूस अब इन क्षेत्रों में तुर्की के सामने बड़ी चुनौती पेश करना चाहता है। दोनों जगहों पर पहले ही रूसी सेना ज़मीन पर मौजूद है। अब रूस UAE और बाकी अरब देशों का सारा ध्यान भी तुर्की पर केन्द्रित करना चाहता है। रूस और तुर्की के बीच पहले ही भू-राजनीतिक तनाव देखने को मिल रहा है। Nagorno-Karabakh और अज़रबैजान के मामलों में दख्ल देकर अंकारा ने सीधे तौर पर मॉस्को को चुनौती दी है। ऐसे में तुर्की के निकलते पंखों को कुतरने के लिए अब पुतिन उसी के आँगन में उसके लिए गड्ढा खोदने में लगे हैं।

मॉस्को पहले ही ईरान और तुर्की के बीच में तनाव पैदा करने में कामयाब रहा है। ईरान और तुर्की अब Nagorno-Karabakh में अपने प्रभाव को लेकर एक दूसरे के आमने-सामने है। रूस खुलकर ईरान की आर्थिक मदद करने और अमेरिकी प्रतिबंधों का मुक़ाबला करने की बात कह चुका है। ईरान और रूस सैन्य साझेदार हैं और ऐसे में माना जा रहा है कि ईरान-तुर्की के विवाद के पीछे भी रूस की कोई बड़ी भूमिका हो सकती है।

अगर UAE और अरब ताक़तें पश्चिमी एशिया में तुर्की के खिलाफ हो जाती हैं तो इसका सबसे बड़ा फायदा रूस को ही होगा। रूस खुद आगे आकर तुर्की के खिलाफ कोई आक्रामक सैन्य अभियान छेड़ने की बजाय अपने रणनीतिक कदमों से उसके लिए बड़ी चुनौती पेश कर रहा है। यहां सबसे मजेदार बात यह है कि अभी एर्दोगन पुतिन की इस रणनीति से एकदम अनजान दिखाई दे रहे हैं, और पहले ही अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना कर तुर्की के पास अब रूसी रणनीति का शिकार होने के अलावा और कोई विकल्प बचा नहीं है।

यहां तक कि आज तुर्की यूरोपियन यूनियन और NATO में भी अलग-थलग पड़ चुका है। फ्रांस, साइप्रस और ग्रीस जैसे EU और NATO के बड़े देश आज खुलकर तुर्की पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं। Nagorno-Karabakh के विवाद में भी Organization for Security and Co-operation in Europe (OSCE) Minsk Group के जरिये फ्रांस अपनी पैठ बढ़ाने में सफल साबित हुआ था, जिसे मॉस्को की ओर से भी समर्थन मिला था।

रूसी डिफेंस मिसाइल सिस्टम S-400 को खरीदने के लिए अमेरिका पहले ही तुर्की पर प्रतिबंध लगा चुका है। EU अगले वर्ष तुर्की पर प्रतिबंधों का ऐलान कर सकता है। NATO में भी तुर्की अलग-थलग पड़ चुका है। तुर्की के पड़ोसी ईरान, साइप्रस, ग्रीस और अर्मेनिया पहले ही उसके सबसे बड़े दुश्मनों में से एक हैं। अब रूस UAE को भी तुर्की के खिलाफ इकट्ठा कर रहा है। यही रूस का शानदार चक्रव्यूह है, जिसमें अब एरदोगन फँसते ही जा रहे हैं।

Exit mobile version