कृषि कानूनों के मुद्दे और तथाकथित किसान आंदोलन के नाम पर मोदी सरकार को घेरने की नौटंकी का खेल विपक्ष लगातार खेल रहा है, लेकिन इस विरोध की पंक्ति में जाने-अनजाने बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी भी शामिल हो गए हैं। पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली की जयंती पर उन्होंने उनकी तारीफ करते हुए कहा कि जेटली के रहते किसानों को इन दिक्कतों का सामना न करना पड़ता। उनका ये बयान बेतुका है साथ ही ये उनकी बिहार की राजनीति में उनके कम हुए रसूख के बाद उनके मन की टीस को भी जाहिर करता है।
पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली की पुण्यतिथि पर बीजेपी नेता सुशील मोदी ने जो तंज कसा जो उनकी पार्टी के नेताओं को भी अच्छा नहीं लगा है। उन्होंने अरुण जेटली के व्यक्तित्व और कार्यशैली का जिक्र करते हुए कहा, “मुझे पूरा यकीन है कि अगर आज अरुण जेटली जीवित होते तो किसान जिन समस्याओं का सामना कर रहे हैं, जिसको लेकर यह आंदोलन चल रहा है, वह इसका निश्चित रूप से कोई समाधान निकाल लेते।” सुशील मोदी ने अपना उतावलापन जाहिर करने वाले बयान में अपने लिए मुसीबतें खड़ी कर ली हैं जो कि अनावश्यक ही था।
इस बात में किसी को भी कोई शक नहीं कि पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली बेहद ही प्रतिभाशाली नेता थे जिन्होंने नोटबंदी से लेकर जीएसटी जैसे बदलावों को सही ढंग से लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसीलिए उनका नाम इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है, लेकिन सुशील मोदी का उनकी तारीफ में अपनी पार्टी के विपरीत जाना दिखाता है कि वो किसी पुरानी कुंठा से ग्रसित हैं और इसलिए उन्होंने इस तरह का बेतुका बयान दिया है।
सुशील मोदी की बिहार की राजनीति में प्रसांगिकता खत्म हो चुकी है क्योंकि वो हमेशा ही नीतीश के पक्षकार बनकर बात करते थे जिससे बीजेपी को सबसे ज्यादा नुकसान होता था। यही वजह है कि इतने सालों बाद भी बिहार की राजनीति में बीजेपी की भूमिका महत्वपूर्ण नहीं हो पाई थी। नीतीश के प्रवक्ता बनकर बात करना, मुद्दों पर काम से ज्यादा बयानबाजी करना ही सुशील मोदी को भारी पड़ा हैं। इसीलिए वो बिहार की राजनीति में साइडलाइन करवा कर दिल्ली भेजे जा चुके हैं।
अपनी इतनी फजीहतों के बावजूद सुशील मोदी शान्ति से नहीं बैठ रहे हैं। जब ये तय हुआ था कि वो नीतीश के डिप्टी नहीं होंगे तभी उन्होंने पार्टी और पद को लेकर एक तंज भरा ट्वीट किया था कि, “पद से निकाला जा सकता है लेकिन कार्यकर्ता के पद से कोई नहीं निकाल सकता है।” अब किसान आंदोलन पर बेतुका बयान सभी साबित करता है कि सुशील मोदी अपनी काफी राजनीतिक फजीहत करवा चुके हैं लेकिन उन्हें मिली सांकेतिक सजाओं के बावजूद उनके राजनीतिक स्वभाव में कोई बदलाव नहीं आ रहा है जो उनके लिए ही भविष्य में नकारात्मक साबित होगा।