दुनिया के लोकतान्त्रिक देशों, अमेरिका और यूरोप के लिए आज के समय में सबसे बड़ा सुरक्षा खतरा कौन है? अमेरिका और USSR के बीच के शीत युद्ध की मानसिकता से पीड़ित लोग आज भी रूस को ही अमेरिका के लिए सबसे बड़ा खतरा मानते हैं, जबकि इस बात में कोई शक नहीं है कि आज कम्युनिस्ट चीन के उदय ने वैश्विक लोकतान्त्रिक प्रणाली को सबसे बड़ी चुनौती दी है। शायद यही कारण है कि अब 10 सालों के बाद पहली बार अमेरिका, जापान, तुर्की और ब्रिटेन जैसे NATO के सदस्य देश रूस की नौसेना के साथ मिलकर कोई संयुक्त सैन्यभ्यास करने जा रहे हैं।
बता दें कि अगले साल फरवरी में पाकिस्तान के कराची से Aman-2021 बहुराष्ट्रीय सैन्यभ्यास की शुरुआत होने जा रही है, जिसमें NATO के सदस्य देशों के अलावा पाकिस्तान, चीन, फिलीपींस, मलेशिया और श्रीलंका जैसे देश भी हिस्सा लेंगे। यहाँ सबसे हैरानी की बात यह है कि करीब एक दशक के बाद रूसी नौसेना को भी इस अभ्यास में हिस्सा लेने के लिए बुलाया गया है। NATO देशों और रूस का एक साथ अभ्यास करना इसलिए अटपटा है क्योंकि हाल ही में NATO ने रूस को अपने लिए सबसे बड़े खतरे के रूप में स्वीकार किया था।
यह सैन्य अभ्यास एक प्रकार से रूस और पश्चिमी देशों के बीच एक पुल का काम भी कर सकती है। ऐसा इसलिए, क्योंकि पश्चिमी देशों के साथ-साथ खुद रूस भी बढ़ती चीनी आक्रामकता का शिकार हो रहा है। Arctic और रूस के Far East में चीनी के बढ़ते कदमों ने मॉस्को में चिंताओं को बढ़ाया है। ऐसे में रूस NATO के करीब चीन के लिए बड़ी मुश्किलें पैदा कर सकता है। ट्रम्प प्रशासन के तहत तो अमेरिका ने NATO को प्राथमिकता तक नहीं दी थी, बल्कि ट्रम्प प्रशासन का पूरा ध्यान Quad को मजबूत करने पर रहा। फरवरी में होने वाली इस exercise में Quad के दो सदस्य यानि जापान और अमेरिका भी मौजूद होंगे।
यह यह बात साफ़ कर दें कि इस अभ्यास में चीन भी हिस्सा ले रहा है और यह exercise किसी विशेष देश या खतरे को देखते हुए नहीं की जा रही है। हालांकि, NATO के देशों और रूस का एकसाथ आकर इस तरह के अभ्यास करना ज़रूर ही बीजिंग में चिंताओं को पैदा करेगा। NATO और रूस के बीच की दूरी चीन को अवश्य ही भाती है। हालांकि, अब अगर चीन की मौजूदगी में NATO के देश ही रूस के साथ साझा युद्धभ्यास करने लगें, तो यहाँ चीन के लिए बेशक एक बड़ा संदेश छुपा हुआ है।