अमेरिका में ट्रम्प रहे या नहीं, लेकिन ताइवान ने अपनी तैयारी पूरी की है। अमेरिका से एक अहम सैन्य समझौते के बाद ताइवान ने अब चीन को स्पष्ट संदेश दिया है – आप आक्रमण तो करके देखिए, ताइवान आपके स्वागत’ के लिए पूरी तरह तैयार है।
द गार्जियन से बातचीत के दौरान ताइवान के विदेश मंत्री जोसेफ वू ने बताया, “चीन की गतिविधियां, चाहे वो दक्षिण चीन सागर में हों, पूर्वी चीन सागर में हो, भारत के साथ बॉर्डर पर उसकी गुंडागर्दी हो, हाँग-काँग का दमन हो, ये सभी इस बात की ओर इशारा करती है कि वह अपने साम्राज्यवादी अभिलाषाओं को किसी भी हद तक पूरा करना चाहता है, और ताइवान उसका अगला निशाना है।”
इसके अलावा जोसेफ वू ने चीन द्वारा ताइवान पर हमले की संभावना के परिप्रेक्ष्य में बताया, “देखिए, हम ये अनुमान नहीं लगा सकते हैं कि चीन ताइवान पर हमला करेगा या नहीं। जिस प्रकार से पिछले कुछ वर्षों में चीन की तैयारियां हमने देखी हैं, वे ताइवान पर हमला करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं, और इसी दिशा में उन्होंने कई अहम कदम भी उठाए हैं।”
इसके अलावा जोसेफ वू ने अमेरिका, यूरोप, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों को स्पष्ट चेतावनी भी दी, कि यदि ताइवान हार गया, तो चीन का प्रशांत महासागर क्षेत्र में दबदबा बढ़ जाएगा, जो वैश्विक व्यवस्था को तहस-नहस करने के लिए काफी होगा।
अब जोसेफ वू पूरी तरह गलत भी नहीं है। ताइवान ने वुहान वायरस के पीछे चीन को प्रारंभ से ही घेरना शुरू किया है, तभी से चीन अनेक बार ताइवान पर आक्रमण कर चुका है। ताइवान के हवाई क्षेत्र में पिछले कुछ महीनों में चीन ने कई बार घुसपैठ करने का प्रयास किया है, चाहे वह जासूसी हवाई जहाजों से हो, या फ़िर फाइटर जेट्स के जरिए ही क्यों न हो। हालांकि, जितनी बार चीन ने घुसपैठ करने का प्रयास किया, उतनी ही बार ताइवान ने सभी प्रयासों को निष्फल करते हुए चीन की पोल खोलने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
हालांकि, ताइवान भी जानता है कि इतने प्रयास नाकाफ़ी हैं, और इसलिए वह चीन के विरुद्ध एक वैश्विक साझेदारी का हिस्सा बनना चाहता है। इसी ओर इशारा करते हुए जोसेफ वू बताते हैं, “जो भी चीनी साम्राज्यवाद से पीड़ित है, वो एक बार पलट के पूछेगा जरूर कि इस देश [चीन] से आर्थिक संबंध बनाए रखकर उसे क्या लाभ मिलेगा? मैं विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि जापान हो, अमेरिका, भारत और ऑस्ट्रेलिया के साथ साथ यूरोप के भी कई देश सोच रहे होंगे कि शायद अब चीन के साथ अलग तरह से पेश आने का समय आ चुका है।”
इसी बात पर जोसेफ वू ने आगे कहा, “निस्संदेह इसकी एक कीमत भी चुकानी पड़ सकती है, जैसे ऑस्ट्रेलिया ने हाल ही में चुकाई, जब ऑस्ट्रेलियाई कोयले पर चीन ने प्रतिबंध लगाया और उसके शराब, विशेषकर वाइन पर टैरिफ़ भी बढ़ाया। पर ऐसे ही समय में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की सबसे अधिक आवश्यकता है, क्योंकि अकेले लड़ने से कोई फायदा नहीं होगा।”
सच कहें तो ताइवान ने दुनिया को स्पष्ट संदेश दिया है कि यदि दुनिया उसकी मदद के लिए आगे नहीं आएगी, तो भी चीन के विरुद्ध लड़ने के लिए ताइवान सक्षम है। जिस प्रकार से जोसेफ वू ने अपनी बात कही है, उससे ताइवान चीन को ये संदेश भी देना चाहता है – हमसे जो टकराएगा, मिट्टी में मिल जाएगा।