जिस देश की वजह से आज पूरी दुनिया वुहान वायरस से जूझ रही है, उसकी बनाई वैक्सीन कोई नहीं खरीदना चाहता। यहाँ तक कि कंबोडिया जैसे चीन समर्थक देश भी चीन की ‘Sinovac’ वैक्सीन खरीदने को तैयार नहीं है। लेकिन एक देश ऐसा भी है, जो अब भी चीन की संदेहास्पद वैक्सीन खरीदने को तैयार है, और इसी के बहाने अपनी डूबती अर्थव्यवस्था को भी पार लगाना चाहता है।
हम बात कर रहे हैं तुर्की की, जिसने हाल ही में चीन की Sinovac वैक्सीन को लगभग 91.25 प्रतिशत तक कारगर माना है। तुर्की प्रशासन द्वारा जारी अंतरिम डेटा के अनुसार Sinovac वैक्सीन का परीक्षण 91.25 प्रतिशत तक सफल रहा है। जिस वैक्सीन को कंबोडिया जैसे देशों ने रिजेक्ट किया हो, और जो ब्राजील जैसे देशों में केवल 51 प्रतिशत तक कारगर रही हो, वहाँ ऐसे डाटा के पीछे दो ही कारण हो सकते हैं, और इस समय दोनों ही सही भी प्रतीत हो रहे हैं। एक तो ये कि भ्रामक डेटा के जरिए तुर्की चीन की खुशामद में लगा हुआ है, और दूसरा यह कि इस जी हुज़ूरी के जरिए तुर्की अपनी डूबती अर्थव्यवस्था को बचाने में जुटा हुआ है।
तुर्की के स्वास्थ्य फहरेटिन कोका ने कहा, “हम दावे के साथ कह सकते हैं कि यह वैक्सीन [Sinovac] असरदार है, और हम इसे अपने देशवासियों के लिए उपयोग में ला सकते हैं। हम जानते हैं कि ये जोखिम से परिपूर्ण निर्णय है। परंतु हमारे टेस्ट में तीन लोगों को जब ये बीमारी हुई, तो उसके साथ होने वाला बुखार और सांस संबंधी दिक्कत नहीं हुई” –
इतना ही नहीं, तुर्की ने 50 लाख Sinovac की डोज़ खरीदने का निर्णय लिया है, जो आनी तो 11 दिसंबर को थी, परंतु जहाज के आने में विलंब के कारण अब ये डिलीवरी सोमवार यानि 28 दिसंबर को ही संभव हो पाएगी, और फिर तुर्की कुल 90 लाख लोगों का वैक्सीनेशन सुनिश्चित करेगा।
इससे स्पष्ट पता चलता है कि तुर्की को इस समय सहायता की कितनी जरूरत है। अमेरिका ने पहले ही आर्थिक पाबंदियों से तुर्की की नकेल कसनी शुरू कर दी है, और अरब देशों के लिए मानो तुर्की का कोई अस्तित्व है ही नहीं। ये जानते हुए भी कि Sinovac पूर्णतया सुरक्षित वैक्सीन नहीं है, तुर्की ने इसके 50 लाख से भी अधिक वैक्सीन डोज़ मंगाने शुरू कर दिए हैं।
इसके अलावा तुर्की धीरे-धीरे चीन का गुलाम बनने की ओर भी अग्रसर हो रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि तुर्की के अर्थव्यवस्था की हालत बहुत पतली है, और ऐसे में एरदोगन के प्रशासन को आशा है कि यदि वह भारी मात्रा में Sinovac को बढ़ावा देता है, तो चीन उसकी डूबती अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए अपना हाथ बढ़ा सकता है, चाहे इसके लिए अपने लोगों की बलि ही क्यों न चढ़ानी पड़े।