जब सत्ता बदलती है, तो विचारधारा भी बदलती है, और उसी के साथ कई देशों के साथ संबंध भी। जब से ये सुनिश्चित हुआ है कि जनवरी 2021 में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ही होंगे, तब से कई देशों ने अपनी विचारधारा और अपना स्वभाव बदल लिया है। लेकिन यदि कोई अपने विचारों पर अब भी अडिग है तो वह है ताइवान, और उसन ठान लिया कि उसे परमाणु राष्ट्र बनने से चीन तो क्या, खुद अमेरिका भी नहीं रोक पाएगा।
एशिया टाइम्स के रिपोर्ट के अनुसार बाइडन के शासन संभालने की संभावना और चीन की बढ़ती गुंडई के चलते ताइवान को एक बार फिर अपने परमाणु प्रतिबद्धता को बढ़ाने की दिशा में कुछ सोचना होगा। रिपोर्ट के अनुसार, “जिस प्रकार से हाँग काँग में चीन ने अपना कानून थोपा है, उसे ताइवान के नागरिक भली भांति जानते हैं कि चीन के साथ एक होने पर ताइवान का क्या अंजाम होगा। इसलिए जब Taiwan और चीन के विलीनीकरण का प्रश्न उठता है, तो 10 प्रतिशत से भी कम लोग इसे अपना समर्थन देने को तैयार होते हैं”।
इसके अलावा दो वर्ष पहले शी जिनपिंग ने बलपूर्वक Taiwan पर कब्जा करने की धमकी भी दी थी। ऐसे में ताइवान की वर्तमान राष्ट्रपति त्साई इंगवेन ऐसा बिल्कुल नहीं चाहेंगी कि किसी भी स्थिति में चीन का पलड़ा भारी हो, और इसीलिए ताइवान को एक न्यूक्लियर स्टेट बनाने पर पूरा जोर दिया जा रहा है।
लेकिन क्या ताइवान में इतनी क्षमता है? बहुत कम लोग इस बात से परिचित है कि Taiwan के पास एक न्यूक्लियर स्टेट बनने की पूरी क्षमता है। 1960 के दशक से ही इस दिशा में Taiwan में काम हो रहा था, पर जब ताइवान प्लूटोनियम के उत्पादन के निकट पहुंचा, 1976 में अमेरिका ने इस प्रोजेक्ट का पर्दाफाश कर दिया और फिर इस काम पर रोक लगवा दी गई।
इसके बाद कुछ समय तक तो इस प्रोजेक्ट पर चोरी छुपे काम हुआ, परंतु 1980 के दशक के अंत आते आते ताइवान के न्यूक्लियर स्टेट बनने के प्रोग्राम पर पूर्णविराम लग गया। लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि Taiwan एक बार फिर इस प्रोजेक्ट को चालू कर सकता है, और इस बार अमेरिका भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा।
ऐसा इसलिए है क्योंकि इस समय ताइवान के न्यूक्लियर प्रोजेक्ट के साथ कुछ भी छेड़खानी करने का अर्थ है कि बाइडन को चीन समर्थक के रूप में देखा जाएगा, जो इस समय वे बिल्कुल भी नहीं चाहते। ऐसा में यदि जो बाइडन चाहे भी, तो भी वह ताइवान को एक परमाणु राष्ट्र बनने से रोक नहीं पाएंगे।