जिसका डर था वही हुआ। चीन में शी जिनपिंग ने जैक मा को अपने सामने झुकने पर मजबूर कर ही दिया। Media Reports के अनुसार अलीबाबा के संस्थापक जैक मा ने 2 नवंबर को हुई मीटिंग के दौरान अपने Ant Group से एक हिस्से को CCP के हवाले कर चीनी सरकार से तनाव समाप्त करने की कोशिश की थी। परंतु उसके बाद भी शी जिनपिंग ने जैक की कंपनी के सबसे बड़े IPOs को जारी होने से ठीक दो दिन पहले ही अचानक रोक दिया था। उसके बाद भी जिनपिंग सरकार द्वारा जैक मा पर कोई रहम नहीं दिखाया गया है। यानि ऐसा लगता है कि शी जिनपिंग किसी भी तरह से जैक मा और अलीबाबा को ठिकाने लगाने का पूरा प्रबंध कर चुके हैं।
दरअसल, अक्टूबर महीने में जैक मा ने चीनी वित्तीय बाज़ार regulators पर बड़े सवाल उठाए थे और उनपर रिस्क को ज़रूरत से ज़्यादा तवज्जो देने के आरोप लगाए थे। उसके बाद CCP और जैक मा आमने सामने आ गए थे। WSJ की एक रिपोर्ट के मुताबिक उसके बाद नवंबर में एक मुलाक़ात के दौरान जैक मा ने चीनी सरकार को अपनी कंपनी का एक हिस्सा दान देने का प्रस्ताव सामने रखा था। रिपोर्ट के अनुसार जैक ने कहा था कि जब तक देश की जरूरत है, तब तक आप Ant का कोई भी प्लेटफॉर्म ले सकते हैं।
इससे स्पष्ट होता है कि जैक मा ने अपनी हार स्वीकार कर ली है और दुनिया के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति यानि शी जिनपिंग के साथ लड़ाई लड़ने का उनका कोई इरादा नहीं है। हालांकि, जैक इसके बावजूद CCP के साथ विवाद को शांत करने में विफल रहे,और चीनी अधिकारियों ने 5 नवंबर को Ant Group के आईपीओ पर ब्रेक लगा दिया।
बता दें कि इस IPO की लिस्टिंग से Ant Group को 37 बिलियन डॉलर जुटाने की उम्मीद थी, जिससे यह इतिहास में सबसे बड़ा IPO बना जाता। तब यह Goldman Sachs जैसे कुछ सबसे बड़े बैंकों की फर्म को पीछे छोड़ चुका होता।
लेकिन जैक मा द्वारा 24 अक्टूबर को शंघाई सम्मेलन में चीन की वित्तीय नियामक प्रणाली की आलोचना करने के कारण शी जिनपिंग ने जैक को किसी प्रकार का मौका नहीं दिया। एक हफ्ते बाद ही शी जिनपिंग के इशारे पर चीनी अधिकारियों ने अचानक ऑनलाइन ऋण देने के लिए नए नियमों की शुरुआत की, जिसने सीधे Ant के सफल ऋण और क्रेडिट बिजनेस को प्रभावित किया। नए नियमों ने ही IPO के लिए Ant Group को अयोग्य ठहराया, और शंघाई ने 3 नवंबर को इस कंपनी की लिस्टिंग को निलंबित कर दिया। हालांकि जब भी कोई चीनी उद्योगपति जिनपिंग के खिलाफ बोलता है, तो जिनपिंग उसे गायब करा देते हैं। उदाहरण के लिए रेन जिकियांग ने जिनपिंग को “गंवार” कहने की गलती की थी लेकिन उसके बाद उन्हें जेल में डाल दिया गया था।
बता दें कि चीन में Content के प्रसारण पर Alibabaका काफी प्रभाव है जिससे शी जिनपिंग को ऐसा लगता है कि जैक मा बगावत पर उतरने वाले हैं। अभी बेशक यह कंटेन्ट कम्युनिस्ट पार्टी की विचारधारा के खिलाफ तो बिलकुल नहीं है, लेकिन CCP और जिनपिंग को डर है कि कहीं अलीबाबा का प्रभाव इतना ना बढ़ जाये कि उसके सामने खुद CCP का प्रभाव बौना दिखना लगे।ऐसा लगता है कि जैक मा की आलोचना के बाद शी जिनपिंग चीन के निजी कंपनियों से डर लगने लगा है कि कहीं सभी कंपनियाँ इसी तरह से CCP और शी जिनपिंग के खिलाफ कहीं मोर्चा न खोल दें। उन्हें डर सता रहा है कि कहीं पूंजीपति स्वायत्तता प्राप्त कर देश की कम्युनिस्ट विचारधारा और पार्टी से बगावत पर न उतर जाएँ।
यही कारण है कि चीनी सरकार अपने यहां एक ऐसा कानून लाने जा रही है, जिसके बाद चीन में शायद ही कोई जैक मा जितना बड़ा उद्योगपति बन पाये। चीनी सरकार में वित्त मंत्री रह चुके Lou Jiweiने अब कहा है कि चीन जल्द ही fintechकंपनियों पर ज़रूरत से ज़्यादा बैंकों के साथ साझेदारी करने पर पाबंदी लगा सकता है। ऐसा इसलिए ताकि चीनी कंपनियों को बैंकों से ज़्यादा कर्ज़ ना मिल पाये और वे अलीबाबा जितनी बड़ी ना हो सकें। चीनी सरकार ने स्पष्ट किया है कि वह किसी भी कंपनी को मार्केट पर ज़रूरत से ज़्यादा हावी नहीं होने देना चाहती।
यही कारण था कि चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने सिर्फ अलीबाबा ही नहीं बल्कि टेनसेंट के खिलाफ भी प्रतिबंध लगाया था। रिपोर्ट के अनुसार चीनी प्रशासन ने 15 दिसंबर को जुर्माना लगते हुए अलीबाबा ग्रुप और टेनसेंट होल्डिंग्स पर जांच की घोषणा कर दी थी।चीन की State Administration of Market Regulation (SAMR) ने कहा कि 2008 के एकाधिकार विरोधी कानून के तहत अलीबाबा, टेनसेंट -समर्थित चाइना लिटरेचर और शेन्ज़ेन हाइव बॉक्स को 500,000 युआन (76,464 डॉलर) को जुर्माना भरना होगा क्योंकि इन कंपनियों ने अपने पिछले सौदों की रिपोर्टिंग सरकार को नहीं की है। यानि किसी भी निजी कंपनी को CCP से अपने सभी डील की जानकारी शेयर करनी होगी।कंपनियों का सरकार को अपने सौदों की जानकारी न देना कितना बड़ा मुद्दा बन गया था यह इसी बात से समझा जा सकता है कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अध्यक्षता में एक पोलित ब्यूरो की बैठक हुई थी।
ऐसा लगता है कि अहंकार और साम्यवाद में लिपटे शी जिनपिंग अब पूरी तरह से चीन के निजी क्षेत्र को घुटने पर लाने की राह पर हैं।