कोरोना के बाद व्यापार में जितना नुकसान चीन को हुआ है, उसका फायदा अन्य देशों को हुआ है जिसमें से भारत प्रमुख देश रहा है। इसी क्रम में भारत को एक और मौका मिला है कि वह अपने कॉटन और टेक्सटाइल उद्योग को बूस्ट देकर एक्सपोर्ट पर अपना वर्चस्व जमा ले क्योंकि अमेरिका ने चीन के शिंजियांग में बने कॉटन पर प्रतिबंध लगा दिया है।
रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका के Customs and Border Protection (CBP) ने जेल श्रम का उपयोग करने के लिए चीन के Xinjiang Production and Construction Corps (XPCC) द्वारा निर्मित कॉटन उत्पादों पर एक प्रतिबंध का आदेश जारी किया है। CBP ने यह बताया है कि XPCC द्वारा बनाए गए कॉटन उत्पादों को बनाने के लिए श्रमिकों पर अत्याचार कर उन्हें मजबूर किया गया है।
इससे पहले जुलाई में, यूएस डिपार्टमेंट ऑफ स्टेट, यूएस डिपार्टमेंट ऑफ ट्रेजरी, यूएस डिपार्टमेंट ऑफ कॉमर्स और यूएस डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी ने चीन में और विशेष रूप से शिनजियांग के उइगर स्वायत्त क्षेत्र में होने वाले व्यवसायों के बारे आगाह किया था। अमेरिकी एजेंसियों ने चेतावनी दी कि चीनी उत्पादन प्रक्रियाओं को जबरन श्रम से करवाया जाता है तथा इन निर्माणों में मानव अधिकारों का हनन किया जाता है। यही नहीं XPCC पर प्रतिबंध लगाने के बाद कई चीनी निर्माताओं को ब्लैकलिस्ट भी किया गया था। चीन के National Bureau of Statistics के अनुसार, शिनजियांग चीन के कुल कपास उत्पादन का लगभग 85 प्रतिशत उत्पादन करता।
यानि अब अमेरिका के शिनजियांग और XPCC के कपास उत्पादों पर प्रतिबंध लगाने से इस अर्ध-सैन्य संगठन की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ेगा।
अकेले 2019 में, अमेरिका ने चीन से करीब 11 बिलियन डॉलर के कॉटन कपड़े के उत्पादों का आयात किया था। अब प्रतिबंधों के बाद अमेरिका अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए किसी अन्य देश का रुख करेगा। यही मौका है कि भारत फायदा उठाए और इस खालीपन को भरते हुए अमेरिका को कॉटन एक्सपोर्ट करे।
ICRA ने भी यह सुझाव दिया था कि यह प्रतिबंध भारत के पक्ष में काम कर सकता है। अपनी रिपोर्ट में, एजेंसी ने उल्लेख किया कि कई प्रमुख भारतीय टेक्सटाइल निर्यातकों को पहले ही अधिक मात्रा में ऑर्डर आना शुरू हो चुका है या कई कंपनियां इस वैक्यूम को भरने के इरादे से अंतरराष्ट्रीय खरीदारों के साथ विचार-विमर्श में संलग्न हैं।
भारतीय कपास संघ के अनुमानों के अनुसार, जून में किए गए 40 लाख गांठों के अनुमान के मुकाबले चालू वित्त वर्ष में कपास का निर्यात 65 लाख गांठ होने की उम्मीद है। COVID-19 महामारी के वजह से वैश्विक सप्लाइ चेन में आए व्यवधान के कारण विश्व की कंपनियाँ अब चीन पर अधिक निर्भर नहीं रहना चाहती है तथा इसके लिए वे विकल्प तलाश कर रही हैं। ऐसे में भारत के पास यह मौका है कि वह चीन का स्थान ले और विश्व के अन्य देशों में अपना एक्सपोर्ट बढ़ाए।
बता दें कि शिजियांग में स्थित XPCC कोई आम मैन्युफैक्चरिंग कंपनी नहीं है, बल्कि यह एक अर्धसैनिक संगठन है जहां मजदूरों से जबरदस्ती काम करवाता है। XPCC को शिंजियांग प्रांत के हान बस्तियों को उपनिवेश बनाने और उन्हें चीन में एकीकृत करने का काम सौंपा गया था। इस क्षेत्र में हान की पहली बस्ती में 103,000 सैनिक शामिल थे। XPCC को जहां भी भूमि मिलती गयी वहां तक अपने पांव पसारता गया। हालांकि, यह बीजिंग द्वारा सीधे नियंत्रित एक अर्धसैनिक संगठन बना रहा। अपने 14 डिवीजनों के साथ, XPCC को “राज्य के भीतर एक राज्य” की तरह जो 80,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में 2.43 मिलियन की आबादी को नियंत्रित करता है।
अब अमेरिका द्वारा इसके कॉटन उत्पादों पर प्रतिबंध लगाए जाने से इसे एक बड़ा झटका लागने वाला है। यही नहीं अमेरिका के साथ कई अन्य देश भी इसी तरह के कदम उठा सकते हैं जिससे भारत के पास एक सुनहरा मौका है कि वह इस वैक्युम को भरे। इससे भारत को कम से कम 11 बिलियन का फायदा हो सकता है।