‘तुर्की का साथ दोगे तो निकल जाओ यहाँ से’, सऊदी ने अपने इमामों को दिया सख्त संदेश

सऊदी खुद को आधुनिक बनाने के लिए कर रहा क्रांतिकारी परिवर्तन

सऊदी

नई विदेश नीति का अनुसरण न करने का खामियाज़ा अब सऊदी अरब के मौलवियों और इमामों को भुगतना पड़ रहा है। अब सऊदी अरब अपनी धर्मांधता त्याग एक नए युग की ओर अपने कदम बढ़ा रहा है, पर तुर्की जैसे कट्टरपंथी देशों की कट्टरता की आवश्यकता है, और इसलिए अब उसने अपने नई नीति न मानने वाले इमामों को बाहर का रास्ता दिखाना शुरू कर दिया है।

हाल ही में सऊदी प्रशासन ने एक निर्देश दिया है कि अपने उपदेशों में सऊदी के इमामों को यह स्पष्ट संदेश दिया कि आतंकी संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड का विरोध करना आवश्यक है। 1920 में प्रारंभ इस आतंकी संगठन को तुर्की की वर्तमान सरकार काफी बढ़ावा देती है, और ऐसे में सऊदी नहीं चाहता कि इस संगठन के कट्टरपंथ की छाया उनके देश पर पड़े। 

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जहां एक ओर सऊदी और UAE जैसे देश इस विकृत संगठन से दूरी बनाए रखना चाहते हैं, तो वहीं तुर्की और कतर जैसे देश इसे खुलेआम गले लगा रहे हैं, और तुर्की इस संगठन के जरिए मिस्र जैसे देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर रहे हैं। इसके पीछे तुर्की के राष्ट्राध्यक्ष की निजी सनक है, जो इस्लामिक जगत के नए बादशाह बनना चाहते हैं।

लेकिन एर्दोगन की इस नीति से सऊदी अरब बिल्कुल भी सहमत नहीं है। सऊदी के राजकुमार मोहम्मद बिन सलमान के नेतृत्व में इस्लामिक जगत का निर्विरोध बादशाह अब आधुनिकता की ओर अपने नन्हे नन्हे कदम बढ़ा रहा है। कहने को ऐसे देश में इमाम को प्रशासन की बातों का अक्षरश: पालन करना चाहिए, लेकिन सऊदी के इमाम इस दिशा में कोई सकारात्मक कदम उठाते हुए नहीं दिख रहे। इसके अलावा जिस प्रकार से सऊदी अरब इज़रायल से अपने रिश्ते मजबूत कर रहे हैं, उससे स्पष्ट पता चल रहा है कि वह किस प्रकार से धर्मांधता के विरुद्ध एक विशाल अभियान को बढ़ावा देना चाहते हैं, जिससे कट्टरपंथी मुसलमान बिल्कुल भी सहमत नहीं होंगे।

वर्तमान राजनीतिक समीकरणों में इज़रायल और सऊदी अरब के बीच आधिकारिक रूप से संबंध स्थापित होने का अपना एक अलग महत्व है। तुर्की की कट्टरता ऐसे समय में सऊदी अरब और UAE को फूटी आँख नहीं सुहा रही, और ऐसे में वह ऐसे किसी भी तत्व को पनपने नहीं देना चाहेंगे, जो उनके आधुनिकीकरण के अभियान को नुकसान पहुंचाए, जिसके लिए सऊदी ने वर्तमान में कुछ कड़े कदम भी उठाए हैं।

ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि सऊदी अरब कट्टरपंथियों को नियंत्रण में लाने के लिए कमर कस चुका है, और इमामों पर मुस्लिम ब्रदरहुड की निन्दा न करने के लिए कड़ी कार्रवाई भी करने का निर्णय लेना इसी दिशा में एक सराहनीय प्रयास है।

 

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