चीन पर नज़र रखने और चीन से युद्ध की आशंकाओं को देखते हुए जापान ने एक रिमोट-नियंत्रित लड़ाकू विमान विकसित करना शुरू कर दिया है, जो वर्ष 2035 तक तैनाती के लिए तैयार हो जाएगा।
Nikkei Asia की रिपोर्ट के अनुसार चीन की उच्च तकनीक वाले हथियारों को देखते हुए जापान अब इस 15 वर्षीय परियोजना को वास्तविक स्वरूप देने की तत्परता दिखा रहा है।
आज के समय में जापान के पास न तो चीन जितनी बड़ी सेना है और न ही उसके मुक़ाबले के लिए। चीन के पास 1,000 से अधिक चौथी पीढ़ी के फाइटर जेट हैं जिनकी गति सुपरसोनिक हैं, जो कि संख्या में जापान से तीन गुना अधिक है।
इसी कमी को देखते हुए अब जापान ने भी तैयारी शुरू कर दी है और अब बिना पायलट वाले लड़ाकू विमान को विकसित करना शुरू कर दिया है। रिपोर्ट के अनुसार जापान के रक्षा मंत्रालय ने तीन चरणों में लड़ाकू ड्रोन शुरू करने की योजना बनाई है – पहले जो रिमोट कंट्रोल वाले हैं, फिर “टीमिंग” ऑपरेशन जहां एक मानवयुक्त विमान कई ड्रोन को नियंत्रित करेगा, और अंततः पूरी तरह से मानवरहित स्काड्रन में उपयोग के लिए।
यही नहीं इसने पांचवीं पीढ़ी के स्टील्थ लड़ाकू विमानों को भी तैनात करना शुरू कर दिया है।
टोक्यो के फिर से उभरने वाले सैन्य औद्योगिक परिसर में कई जापानी कंपनियाँ शामिल है और Subaru उन्हीं कंपनियों में शामिल हैं। यही कंपनी उड़ान नियंत्रण क्षमताओं को विकसित करने के लिए प्रभारी होगी। प्रसिद्ध मित्सुबिशी हेवी इंडस्ट्रीज (MHI) और मित्सुबिशी इलेक्ट्रिक कई विमानों के बीच तात्कालिक सूचना-साझाकरण प्रणाली पर काम करेंगे। विश्लेषकों का कहना है कि जापानी सैन्य औद्योगिक परिसर के एक बार फिर से उभरना द्वितीय विश्व से पहले की यादों को उजागर करता है जब शाही जापान अपने चरम पर था।
बता दें कि चीन की बढ़ती आक्रामकता के कारण नए प्रधानमंत्री योशिहीदे सुगा के नेतृत्व में जापान इस बार का सबसे बड़ा रक्षा बजट तैयार कर रहा है, जिसका मूल्य सरकारी सूत्रों के अनुसार लगभग 52 बिलियन अमेरिकी डॉलर यानि 5.4 ट्रिलियन जापानी येन होगा। जापान ने ये निर्णय निस्संदेह चीन की बढ़ती गुंडई को ध्यान में रखते हुए किया, और ऐसे में जापान आक्रामक रक्षा नीति अपनाने से पीछे नहीं हटेगा।
इससे स्पष्ट पता चलता है कि नए जापानी प्रधानमंत्री भी शिंजों आबे की नीति पर चलते हुए जापान को एक शान्तिप्रिय, पर युद्ध थोपे जाने पर एक आक्रामक राष्ट्र के तौर पर तराशना चाहते हैं। पूर्वी चीन सागर में बीजिंग की बढ़ती आक्रामकता को रोकने के लिए जापान घातक हथियारों की प्रणाली को प्राप्त करने पर भी विचार कर रहा है।
हाल ही में जापान ने अमेरिका से 105 F-35 Stealth Fighter Jets विमानों की खरीद को मंजूरी दी थी। जापान इन घातक अमेरिकी जेट्स को हासिल करने के लिए 23.11 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च करने जा रहा है। यानि अब जापान किसी भी कीमत पर चीन को सबक सीखने की तैयारी में जुट चुका है।
शिंजों आबे ने अपने इस्तीफे से कुछ दिनों पूर्व ही यह फैसला किया है कि जापान शत्रु देशों की बैलेस्टिक मिसाइल से बचने के लिए अपने मिसाइल प्लान पर काम करेगा। इसके तहत बैलेस्टिक मिसाइल को हवा में मार गिराने के साथ ही शत्रु देश पर मिसाइल हमले की क्षमता का विकास किया जाएगा।
यही नहीं, चीन के युद्धपोतों से बढ़ते खतरे को देखते हुए हाइपरसोनिक स्पीड़ से मार करने में सक्षम एंटी शिप मिसाइल भी जापान बना रहा है। इसके साथ ही वह अपने Izumo-class हेलीकॉप्टरों को अपग्रेड करने तथा Next Gen हाइपरसोनिक मिसाइलों पर काम भी कर रहा है। जापान अपने हवाई ईंधन भरने और सैन्य परिवहन क्षमताओं में वृद्धि कर रहा है, तथा एंटी-सैटेलाइट हथियारों का निर्माण करने पर विचार कर रहा है।
जिस तरह से जापान अपने सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने में जुट चुका है उसे देखते हुए अगर यह कहा जाए कि बीजिंग जापानी शांतिवाद को जापान की कमजोरी समझ बैठा तो यह गलत नहीं होगा। राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सोचा कि वह जापान को अपनी आक्रामक नीति से दबाव मे ला कर झुका सकते हैं वह उठने की हिम्मत नहीं करेगा। परंतु अब यही भूल चीन के लिए सबसे घातक साबित होने जा रही है। चीन जिस तरह से गुंडागर्दी दिखा रहा है वैसी स्थिति में जापान के पास अपनी सैन्य तकनीकी क्षमताओं को बढ़ाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।
पिछले वर्ष जापानी रक्षा मंत्रालय ने अपने स्वयं के स्टील्थ लड़ाकू विमान- F-3 लड़ाकू को विकसित करने की घोषणा भी कर दी है और यह वर्ष 2035 तक जापानी सेना में शामिल हो सकता है। न केवल सैन्य निर्माण, बल्कि जापान चीन को सबक सीखाने के लिए Quad का एक प्रमुख सदस्य बन रहा है। रिपोर्ट के अनुसार Quad के विस्तार पर भी चर्चा शुरू हो चुकी है। यानि देखा जाए तो चीन के लिए जापान ने अब पूरी तैयारी कर ली है। चीन के लगातार उकसावे ने जापान को दूसरे विश्व युद्ध के दौर की तरह एक जबरदस्त सैन्य बल बनाने के लिए मजबूर किया है।
चीन को जबतक अपनी गलती का एहसास होगा तब तक जापान एक सैन्य ताकत बन चुका होगा जो फिर से चीन को मिट्टी में मिलाने की हैसियत रखेगा।