ट्रम्प अपने शासन के आखिरी महीने में हैं लेकिन वे जाते जाते भी अपने विरोधियों को सबक सीखा कर जाने के मूड में हैं। पहले उन्होंने तुर्की पर प्रतिबंध लगाए, फिर ईरान के खिलाफ सऊदी के हाथ मजबूत करने के लिए हथियारों के आपूर्ति के लिए डील की, और अब वे चीनी अर्थव्यवस्था पर बड़ी चोट करने जा रहे हैं। चीन की टेलीकॉम कंपनियों को स्टॉक एक्सचेंज से ‘Delist’ करने के बाद अब अमेरिका चीन की प्रमुख तेल कंपनियों को अपना निशाना बनाने वाला है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार New York Stock Exchange ने हाल ही में बताया था कि वह तीन बड़ी चीनी टेलीकॉम कंपनियों को डिलिस्ट कर रही है।खबरों के मुताबिक इसके बाद NYSC का अगला निशाना चीन की तीन प्रमुख तेल कंपनियां Cnooc Ltd., China Petroleum and Chemical Corp और PetroChina corp.हैं। ये सभी चीन की offshore कंपनियां हैं जो दूसरे देशों में तेल उत्खनन के क्षेत्र में कार्यरत हैं। हाल ही में ट्रम्प प्रशासन ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए ऐसी कंपनियों में अमेरिकी निवेश पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिनका स्वामित्व चीनी की People’s Liberation Army के पास है।अब इसी आधार पर NYSC ने इन कंपनियों पर कार्रवाई का निर्णय लिया है।
महत्वपूर्ण यह है कि ट्रम्प लगातार चीनी टेलीकॉम सेक्टर के पीछे पड़े रहे। FBI ने अपनी एक रिपोर्ट में यह खुलासा भी किया था कि चीन टेलीकॉम सेक्टर का इस्तेमाल दूसरे देशों की तकनीकी चुराने के लिए करता है। इसी के कारण धीरे धीरे टेलीकॉम सेक्टर में चीन की घुसपैठ के खिलाफ वैश्विक शक्तियों ने प्रतिबंधात्मक कार्यवाही शुरू की।
ट्रम्प द्वारा हुआवे के विरुद्ध छेड़े गए अभियान के कारण ही UK, जापान, EU आदि ने उसे रोकने के लिए कार्यवाही शुरू की थी।इसके बाद भारत, ब्रिटेन, जापान जैसे देश 5G तकनीक के विकास के लिए और तेजी से कार्य करने लगे जिससे इन देशों के टेलीकॉम सेक्टर में चीन की घुसपैठ न हो। अब ट्रम्प चीनी तेल कंपनियों के पीछे पड़े हैं।ऐसे में इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि NYSC द्वारा चलाया गया सफाई अभियान अन्य देशों के स्टॉक एक्सचेंज में भी शुरू हो जाए और तेल सेक्टर में भी चीन को, टेलीकॉम जैसा ही नुकसान होने लगे।
एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि अमेरिका में जिन कंपनियों पर कार्रवाई होने वाली है, उनमें से एक Cnooc Ltd. दक्षिणी चीन सागर में उन क्षेत्रों में तेल उत्खनन के किये ड्रिलिंग के कार्य में लगी है, जिन्हें अमेरिका और उसके सहयोगी विवादास्पद मानते हैं।चीन सम्पूर्ण दक्षिणी चीन सागर को अपना क्षेत्र मानता है और यह कंपनी चीनी सेना की शह पर इस क्षेत्र में उत्खनन कर रही है। ऐसे में अमेरिका के अन्य सहयोगी भी इन कंपनियों पर दंडात्मक कार्यवाही कर सकते हैं।
ट्रम्प वैसे तो मात्र कुछ दिन और राष्ट्रपति पद पर रहेंगे. लेकिन वे इन दिनों में ऐसे नीतिगत फैसले ले रहे हैं जो चीन को दूरगामी रूप से हानि पहुंचाएंगे।जैसे तिब्बत मुद्दे को ट्रम्प प्रशासन ने अमेरिका चीन सम्बंध का एक मुख्य विषय बना दिया है, जबकि ओबामा शासन में यह मुद्दा पूर्णतः उपेक्षित था।ट्रम्प ने यह भी सुनिश्चित किया है कि अमेरिका अगले दलाई लामा के चुनाव की प्रकिया से अंसलिप्त न रहे। उन्होंने उइगर मुस्लिमों के मुद्दे को इस तरह उठाया कि यूरोपीय यूनियन जैसे संघ, जो पहले इस ओर आंख बंद किये रहते थे, अब चाहकर भी इसे नजरअंदाज नहीं कर पाते।
ऐसे में यदि जाते जाते भी ट्रम्प चीनी तेल कंपनियों को आर्थिक नुकसान पहुंचा देते हैं, या उससे अधिक उसकी छवि धूमिल कर देते हैं तथा दुनिया के सामने यह स्पष्ट कर देते हैं, कि इन कंपनियों पर चीनी सेना का पूर्ण प्रभाव है, तो चीन को भारी नुकसान होगा. ऐसा इसलिए क्योंकि तेल ही चीनी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है।