ट्रम्प पर ट्विटर और फेसबुक जैसी बिग टेक कंपनियों द्वारा की गई कार्रवाई ने कई देशों में यह विमर्श शुरू कर दिया है कि क्या सोशल मीडिया प्लेटफार्म को इतनी शक्ति होनी चाहिए कि वह चुनी हुई सरकार के नुमाइंदे को अपनी इच्छानुसार एक क्लिक पर शांत कर सकें। आज जब सोशल मीडिया सरकारी कामकाज से लेकर वैचारिक विमर्श तक, सभी कामों में बड़े पैमाने पर प्रयोग हो रहा है, तथा यह लोकतांत्रिक देशों की राजनीति को प्रभावित कर रहा है, क्या किसी प्राइवेट कंपनी को इतनी शक्ति दी जानी चाहिए कि वह निर्धारित करे कि कौन सी बात हिंसक प्रवृत्ति को बढ़ावा देगी कौन नहीं? अथवा इसे कानून के शासन के तहत लाया जाना चाहिए। अब इसी क्रम में पोलैंड के प्रधानमंत्री Mateusz Morawiecki ने फैसला किया है कि निजी स्वामित्व वाली बिग टेक कंपनियों के असीमित अधिकारों पर अंकुश लगाने का समय आ गया है। उनका एक फेसबुक पोस्ट इसी ओर इशारा कर रहा है।
फेसबुक पर लिखे एक लंबे पोस्ट में कई मुख्य बातें उन्होंने कहीं। उन्होंने लिखा ” बड़ी कॉरपोरेट कंपनियों के मालिकों या अल्गोरिथम को यह तय नहीं करना चाहिए कि कौन सी सोच सही है, कौन सी गलत। उन्होंने आगे कहा “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सेंसरशिप, जो अधिनायकवादी और सर्वसत्तावादी ताकतों का हथियार है, वाणिज्यिक तंत्र के एक नए रूप में सामने आ रहा है, जिसका इस्तेमाल विरोधी विचार वालों से लड़ने में हो रहा है। ”
उनकी बातों का समर्थन करते हुए, पोलैंड के न्याय मंत्रालय की सेक्रेटरी ऑफ स्टेट Sebastian Kaleta ने ट्रम्प पर हुई कार्रवाई को राजनीति से प्रेरित बताया। साथ ही उन्होंने जानकारी दी कि पोलैंड का न्याय मंत्रालय एक नया कानून बना रहा है जिसके अनुसार सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा ऐसे पोस्ट को हटाना गैर कानूनी होगा, जो सीधे तौर पर पोलैंड के कानून का उल्लंघन नहीं करता।
National Daily को दिए साक्षात्कार में उन्होंने कहा “कानूनी सामग्री ( कानूनी दृष्टिकोण से सही पोस्ट) को हटाने से कानून का सीधा उल्लंघन होगा, और पोलैंड में संचालित होने वाले प्लेटफार्मों को इसका (नियम का) सम्मान करना होगा। ”
यह पहला मौका नहीं जब ट्रम्प पर हुई कार्रवाई को वैश्विक स्तर पर आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। इसके पूर्व जर्मन चांसलर मर्केल के प्रवक्ता ने भी ऐसी ही बात कही थी। उन्होंने भी यही बात दोहराई थी कि कार्रवाई का अधिकार, निजी कंपनी के पास नही, कानून के पास है। फ्रांस की ओर से भी इसकी आलोचना हुई है।
इसके अतिरिक्त यूगांडा में तो सभी सोशल मीडिया प्लेटफार्म को प्रतिबंधित कर दिया गया है। इसका कारण भी इन प्लेटफार्म द्वारा देश की आंतरिक राजनीति को प्रभावित करना ही है। ऑस्ट्रेलिया ने भी सोशल मीडिया पर नियंत्रण के लिए कार्य शुरू कर दिया है।
किंतु पोलैंड की कार्रवाई के बाद यह सुनिश्चित हो गया है कि ऐसा कानूनी बदलाव अन्य देशों द्वारा भी लाया जाएगा। स्वयं पोलिश प्रधानमंत्री ने भी अपने पोस्ट में लिखा है कि वह यूरोपियन यूनियन के अन्य देशों द्वारा भी ऐसे कानून बनाने की मांग करेंगे जिसके बाद सोशल मीडिया प्लेटफार्म की जवाबदेही तय की जा सके।
भारत में भी इस पर चर्चा आवश्यक है। 2020 के आकंड़े के अनुसार भारत में करीब 31 करोड़ से अधिक लोग फेसबुक चलाते हैं। जबकि करीब 1 करोड़ 89 लाख लोग ट्विटर चलाते हैं। साथ ही तमाम सरकारी कामकाज में भी ट्वीटर का प्रयोग हो रहा है। ऐसे में भारत के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि वह भी इन सोशल मीडिया प्लेटफार्म को कानून के दायरे में लाए।
सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि देश के वैचारिक विमर्श में सभी पक्षों को बराबर स्थान मिले, जो लोकतंत्र की मूलभूत विशेषता है। नियम तय करने का अधिकार वयस्क मताधिकार द्वारा चुनी हुई विधायिका को है, न कि किसी AC कमरे में बैठे कोट पहने कर्मचारी को।