चीन के National Bureau of Statistics द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2020 में चीन की अर्थव्यवस्था की जीडीपी Growth rate 2.3% रही। यह वार्षिक विकास दर के हिसाब से 1970 के बाद से अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन है, जो निश्चित रूप से कोरोना के कारण ही हुआ है। किंतु इसके बावजूद चीन दुनिया की एकमात्र अर्थव्यवस्था है जो इस महामारी के बाद भी धनात्मक विकासदर से आगे बढ़ी है जो आश्चर्यजनक बात है। किंतु क्या चीन द्वारा प्रस्तुत आकंड़े विश्वसनीय हैं।
कई विशेषज्ञों का मानना है कि क्योंकि कोरोना चीन में ही पैदा हुई बीमारी थी, अतः चीन ने सबसे पहले इस बीमारी को समझा और नियंत्रित किया। साथ ही नियंत्रण के लिए चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने ऐसे क्रूर सरकारी दमन का भी सहारा लिया जो लोकतांत्रिक देशों की कल्पना के परे है। अतः चीन कोरोना को सफलतापूर्वक नियंत्रित कर सका और यही कारण है कि उसकी अर्थव्यवस्था भी जल्द ही इस झटके से उबर गई।
किंतु यह सभी दावे शंकाओं से रहित नहीं है। सबसे बड़ी शंका तो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का व्यवहार है जो स्वयं को सर्वश्रेष्ठ प्रशासन दिखाने के लिए अक्सर प्रोपोगेंडा फैलाते रहते हैं। CCP द्वारा कोरोना नियंत्रण और मृत्यु को लेकर झूठ फैलाया गया और अब उसका अर्थव्यवस्था को लेकर किया गया दावा भी संदेहास्पद है। अर्थव्यवस्था के ऊपर लिखने वाली प्रतिष्ठित पत्रिका The Economist ने अक्टूबर के एक अंक में अपनी एक रिपोर्ट के जरिये CCP के दावों को संशयपूर्ण बताया था।
चीन पहले भी अपनी अर्थव्यवस्था की विकासदर बढ़ाकर दिखा चुका है। Brooking Institute ने एक शोधपत्र के जरिये बताया था कि चीन वर्ष 2008 से 2016 के बीच अपनी अर्थव्यवस्था की विकासदर प्रति वर्ष 2% अधिक दिखाई। अतः 2016 में चीन की अर्थव्यवस्था का असल आकार से कागज पर दिखने वाले आंकड़ों से 1/7 वां भाग कम था।
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी अपनी अर्थव्यवस्था की तेज विकास दर दिखाकर निवेशकों को अपने देश में आकर्षित करती है। असल में चीन की अर्थव्यवस्था गंभीर संकट का सामना कर रही है।
चीन ने वर्षों तक विदेशी कंपनियों के लिए अपने घरेलू बाजार को बन्द रखा था। विदेशी निवेशकों को चीन में केवल विनिर्माण इकाई स्थापित करने की ही अनुमति थी, व्यापार की छूट नहीं थी। किंतु कोरोना के बाद जब निवेशक चीन को छोड़कर जाने लगे तो चीनी सरकार ने Bond में निवेश करने वाले विदेशी निवेशकों को ज़्यादा स्वतन्त्रता दी तथा उनके लिए चीन में निवेश करने के रास्ते खोल दिये।
इस समय वैश्विक स्तर पर निवेश करने वाली China की सरकारी कंपनियां अछूत हो गई हैं। डेब ट्रैप पॉलिसी के कारण दुनियाभर के बाजारों में उनके लिए प्रवेश बंद हो गया है। ट्रम्प की कार्रवाई के चलते China का टेक सेक्टर बर्बाद होने के कगार पर है। वास्तविक यह है कि China में विनिर्माण इकाइयों के बन्द होने के कारण लोगों की नौकरियों का संकट पैदा हो गया है। यही कारण है कि उपभोग स्तर कम हो रहा है, और घरेलू बाजार इसी समस्या से जूझ रहा है। अमेरिकी ट्रेड वॉर का भी गंभीर असर China की अर्थव्यवस्था पर पड़ा है। ऐसे में चीन की कोशिश है कि वह अपनी अर्थव्यवस्था की वृध्दि का भ्रम पैदा कर सके और निवेशकों को आकर्षित कर सके।