चीन और जापान के बीच पूर्वी चीन सागर में तनातनी अब एक नए मोड़ पर जाती हुई दिखाई दे रही है। 2020 में चीन निरंतर सेंकाकू द्वीप समूह के इर्द गिर्द चक्कर लगाता रहा था, लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि अब जापान सेंकाकू द्वीप से ही मोर्चा संभाल रहे हैं। हाल ही में जापानियों ने मांग की है कि सेंकाकू द्वीप समूह की रक्षात्मक क्षमता को और बढ़ाया जाए।
लेकिन जापानी सांसदों को ऐसी मांग करने के लिए क्यों बाध्य होना पड़ा? दरअसल, 1 फरवरी से चीन में एक ऐसा कानून लागू होने जा रहा है, जो चीन के कथित कोस्ट गार्ड को असीमित शक्तियां देगा। जिस प्रकार से चीनियों ने अपने कानून में बदलाव किया है, खासकर तब जब अमेरिका में अभी अभी सत्ता परिवर्तन हुआ है, उससे जापान को आशंका है कि कहीं चीन सेंकाकू द्वीप पर ही कब्जा जमाने न पहुँच जाए।
दरअसल, चीन के नए कानून के अनुसार कोस्ट गार्ड को अपने ‘जल क्षेत्र’ में घुसने वाले किसी भी विदेशी जहाज पर गोलीबारी करने की पूरी स्वतंत्रता मिलेगी। ये कोस्ट गार्ड किसी भी जहाज को जबरदस्ती उसके ही जल क्षेत्र से भगाने का माद्दा रखता है। ऐसे में चीन की साम्राज्यवादी मानसिकता को देखते हुए ये अनुमान लगाना गलत नहीं होगा कि उनका इशारा आखिर किस ओर है।
इसीलिए अब टोक्यो में यह सवाल उठने लगे हैं कि कहीं चीन का नया कानून प्रमुख तौर से जापान के सेंकाकू द्वीप की ओर तो केंद्रित नहीं? जापान की सत्ताधारी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसदों ने इस पर चिंता जताते हुए सेंकाकू द्वीप की रक्षात्मक क्षमता को बढ़ाने की बात कही। इसके अलावा जापान के
Territorial Security Act के लागू कराने की बात कही, जिसके अंतर्गत जापानी सेनाओं को बिना कैबिनेट मंजूरी के रक्षात्मक कार्रवाई करने की पूरी छूट होगी।
ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि चीनी प्रशासन द्वारा कोस्ट गार्ड को असीमित शक्तियां देने की नीति शायद आगे चलकर उसी पर भारी पड़ सकती है। जिस प्रकार से जापान तैयारी कर रहा है, उस हिसाब से चीन अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार चुका है।