बंगाल VS असम: दीदी ने अवैध मुस्लिम प्रवासियों को बसाया और सोनोवाल ने आदिवासियों को उनका हक दिलाया

अवैध शरणार्थी भले ही देश तोड़ दें, लेकिन दीदी का वोट बैंक न घटे....

बंगाल VS असम: दीदी ने अवैध मुस्लिम प्रवासियों को बसाया और सोनोवाल ने आदिवासियों को उनका हक दिलाया

बंगाल VS असम: दीदी ने अवैध मुस्लिम प्रवासियों को बसाया और सोनोवाल ने आदिवासियों को उनका हक दिलाया

एक बार फिर से देश में चुनाव का माहौल बन चुका है। पश्चिम बंगाल में होने वाले विधान सभा के चुनावों में राजनितिक पार्टियाँ जनता को लुभाने के लिए एक के बाद एक नई-नई घोषणाएं कर रही हैं। इसी बीच TMC की सुप्रीमो ममता बनर्जी ने एक ऐसी घोषणा की जिससे देश में एक नया विवाद शुरू होने वाला है। उन्होंने पश्चिम बंगाल में 1971 के बाद आने वाले परिवारों के लिए उनके द्वारा कब्ज़ा किये गए भूमि को रेगुलराइज़ करने का प्रयास करने की घोषणा की। उनका यह कदम उनके कथित बंगलादेशी मुस्लिम वोटरों की तुष्टिकरण करने के लिए ही है जिससे वे आने वाले चुनावों में ममता को ही वोट दें।

एक ओर वे पश्चिम बंगाल में अवैध प्रवासी लोगों को स्थाई बनाने का प्रयास कर रही हैं जिससे उनका वोट बैंक बना रहे। वहीँ दूसरी ओर असम के सर्बानंद सोनेवाल ने 1.06 लाख भूमिहीन स्वदेशी असमिया परिवारों को भूमि आवंटन प्रमाण पत्र देने का कार्यक्रम शुरू किया। यानि एक ओर ममता बनर्जी अवैध को अपने फायदे के लिए वैध बना रहीं हैं तो वहीँ दूसरी ओर अवैध शरणार्थियों की समस्या से जूझते हुए भी असम की सरकार के लिए पहली प्राथिमिकता मूलनिवासी हैं।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि कुछ राज्य देश में अवैध प्रवासी भरते जा रहे हैं और बांग्लादेश के रास्ते रोहिंगियायों का आना भी जारी है। देश के अलग-अलग स्थान पर बस कर ये अवैध शरणार्थी कई देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त पाए जाते हैं। इसकी कई बार ख़ुफ़िया रिपोर्ट्स भी सामने आई है। यही नहीं, ये लोग लगातार देश में अराजकता फैलाते हुए पाए गए हैं। इनके नियंत्रण के लिए देश में NRC का कानून लाया जाने वाला है लेकिन ममता बनर्जी पहले ही अपने कथित वोट बैंक को स्थाई निवासी बनाना चाहती है जिससे उनका वोट बैंक हमेशा के लिए सुरक्षित हो जाये।

सोमवार को ममता ने घोषणा की कि उनकी सरकार बंगाल में तीन एकड़ तक के राज्य (केंद्रीय या निजी स्वामित्व वाली) भूमि पर सभी शरणार्थी बस्तियों को नियमित करने की कोशिश करेगी। उन्होंने कहा कि इन कॉलोनियों में रहने वाले शरणार्थियों का अब अपनी जमीन पर अधिकार होगा, जिसे अब तक “कब्जे” के रूप में वर्गीकृत किया गया था। उन्होंने यह भी कहा कि उनकी सरकार ने पहले ही राज्य के स्वामित्व वाली भूमि पर 94 शरणार्थी कॉलोनियों को नियमित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, जिससे 13,000 से अधिक परिवार लाभान्वित हुए हैं।

उन्होंने कहा कि, “हमने सभी शरणार्थी बस्तियों को नियमित करने का फैसला किया है, क्योंकि अब लगभग 50 साल हो गए हैं। 1971 (मार्च) के बाद से, उन्हें घर या जमीन के बिना लटका दिया गया है। मेरा मानना ​​है कि शरणार्थियों का अधिकार है।” रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस कदम से शरणार्थियों के 237 परिवारों को जमीन पर फ्री होल्ड का अधिकार मिल जाएगा, जो कि केंद्र या निजी मालिकों के अधीन है।

इसे देख कर तो यही लग रहा है कि यह एक मानवता से भरा कदम है लेकिन यह एक राजनितिक चाल है जो ममता पश्चिम बंगाल में चल रही हैं। वह देश में इन अवैध लोगों को सामान्य नागरिकों के बराबर लाना चाहती है वो भी उनके अपराध और देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त रहने और अराजकता फ़ैलाने के बावजूद। हालाँकि यह पहली बार नहीं है जब ममता बनर्जी ने तुष्टिकरण के लिए इस तरह का कदम उठाया है। इससे पहले भी पश्चिम बंगाल सरकार “गैर-सब्सिडी वाले राशन कार्ड” जारी कर रही थी जो धारकों को सब्सिडी वाले खाद्य लेने की सुविधा तो नहीं देता लेकिन पहचान और स्थाई पते के लिए एक अतिरिक्त प्रमाण के रूप में काम कर सकता है।

इस नए पहचान दस्तावेज को राज्य द्वारा आक्रामक रूप से प्रचारित किया जा रहा है। केंद्र ने इस तरह के दस्तावेज के लिए कोई अधिसूचना जारी नहीं की है या किसी अन्य राज्य ने ऐसा कदम नहीं उठाया है। यह पहचान पत्र जो एक एड्रेस प्रूफ के रूप में काम कर सकता है उसे सिर्फ और सिर्फ शरणार्थियों को लाभ देने के लिए है जिनके पास मतदाता पहचान पत्र और यहां तक कि आधार तो है लेकिन कोई वैध एड्रेस प्रूफ नहीं है।

ममता बनर्जी पहले ही यह ऐलान कर चुकी हैं कि वे अपने रहते पशिम बंगाल में NRC लागु होने नहीं देंगी। और इस तरह भूमि को रेगुलराइज़ करने का कारण भी NRC के प्रभाव को कम करना है। ममता बनर्जी ने तो यह कह दिया है कि सभी बंगलादेशी जो पश्चिम बंगाल में रह रहें हैं वे सभी भारतीय नागरिक हैं। वहीं रोहिंग्याओं की संख्या भी बढ़ती जा रही है। इनके तो आतंकी संगठनों से भी लिंक का खुलासा हुआ हैं।

वहीँ दूसरी ओर असम को देखा जाये तो यह राज्य सर्बानंद सोनेवाल के नेतृत्व में असम के मूल निवासियों के उत्थान के लिए लगातार कार्य कर रहा है। कल PM मोदी ने मूल निवासियों को भूमि आवंटन प्रमाण पत्र वितरित किए और कहा कि आजादी के दशकों बाद भी लाखों आदिवासी, स्वदेशी असमी परिवार भूमि स्वामित्व के अधिकार से वंचित थे।

इस अभियान के तहत 1.06 लाख भूमिहीन असमी परिवारों को भूमि वितरित किया जायेगा। इस दौरान PM मोदी ने कहा, “जब बीजेपी ने असम में सरकार बनाई थी, तब असम में लगभग 6 लाख भूमिहीन लोग थे। लेकिन सोनोवाल सरकार उन भूमिहीनों को जमीन का पट्टा प्रदान करेगी। 2.25 लाख से अधिक भूमिहीन लोगों को भूमि पट्टिका प्राप्त हुई थी और अब और 1 लाख लोगों को जोड़ा जाएगा।”

इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि एक तरफ ममता बनर्जी हैं जो अपने वोट वैंक के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा को भी खतरे में डालने से नहीं चुक रहीं हैं वहीँ दूसरी और सोनेवाल हैं जो लगातार असम के लोगों को एक स्थाई समाधान दे रहे हैं।

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