कोरोना काल में दुनिया को अपनी मुसीबतों में किसी देश की याद सबसे पहले आ रही है तो वह भारत है और किसी देश की गतिविधियों से दुनिया चिंतित है तो वो है चीन। चीन ने दुनिया को कोरोना वायरस बांटा तो भारत ने कोरोना से बचाव के लिए दुनिया को पहले हाइड्राक्सिक्लोरोक्वीन दवा उपलब्ध करवाई, और अब भारत दुनिया को वैक्सीन उपलब्ध कराने को तैयार है।
इसी क्रम में ब्राजील की ओर से बयान आया है कि वह भारत बायोटेक के साथ वैक्सीन की खरीदारी को लेकर बात कर रहा है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार ब्राजील की प्राइवेट हेल्थ क्लीनिक एसोसिएशन भारत बायोटेक से 5 मिलियन वैक्सीन के डोज़ खरीदने वाली है।
Brazilian Association of Vaccine Clinics (ABCVAC) ने अपनी वेबसाइट पर यह बात बताई है कि वह भारत बायोटेक से Covaxin खरीदने के लिए MOU पर हस्ताक्षर कर चुका है। अब केलव ब्राजील हेल्थ रेगुलेटरी से इसे अंतिम स्वीकृति मिलनी है। उम्मीद है कि यह भी जल्द ही मिल जाएगी।
मजेदार बात यह है कि नवम्बर में ब्राजील को चीनी कम्पनी Sinovac की वैक्सीन CoronaVac के क्लीनिकल ट्रायल पर रोक लगानी पड़ी थी। ब्राजील हेल्थ रेगुलेटरी की ओर से इसका कारण यह बताया गया था कि वैक्सीन के विपरीत एवं गंभीर साइड इफेक्ट हैं। वास्तविकता यह है कि चीन में खुद भी इस वैक्सीन के क्लीनिलक ट्रायल अभी तक पूरे नहीं हो सके हैं, जबकि चीन ने नवम्बर में ही ब्राजील को यह वैक्सीन उपलब्ध कराने की बात शुरू कर दी थी।
अतः विपरीत परिणाम आते ही ब्राजील ने इसपर रोक लगा दी थी। यहाँ तक कि अपने एक बयान में ब्राजील के राष्ट्रपति बॉलसेनारो ने यहाँ तक कह दिया था कि उनका देश चीनी वैक्सीन को अस्वीकार करता है और वे ब्राजील के लोगों को लैब के गिनीपिग की तरह प्रयोग नहीं होने देंगे।
जहाँ एक ओर पश्चिम में बनी प्रमुख वैक्सीन एक नई प्रणाली पर कार्य कर रही हैं, वहीं भारत ने पुराने, परखे हुए तरीके को ही अपनाकर वैक्सीन का निर्माण किया है। पश्चिम में बनी Moderna और Pfizer की वैक्सीन, कोरोना वायरस के ही समान दूसरे वायरस, जो मनुष्य के लिए कम घातक हैं, को शरीर में इंजेक्ट कर देती है। शरीर में जाने पर इस इंजेक्टेड वायरस का सामना प्रतिरोधी तंत्र से होता है जिसके बाद शरीर इससे लड़ने के लिए प्रोटीन बनाता है। क्योंकि यह वायरस कोरोना जितना मजबूत नहीं होता इसलिए इसे रोका जा सकता है, तथा इसे रोकने की प्रक्रिया में ही शरीर को इस जैसे सभी वायरस से लड़ने की जानकारी हो जाती है, अतः भविष्य में कोरोना से संपर्क होने पर भी शरीर को उसका प्रतिरोध करने में दिक्कत नहीं होती।
वहीं भारत में बनी वैक्सीन कोरोना के मृत वायरस को शरीर में इंजेक्ट करती है। इसके बाद शरीर इन मृत वायरस के जरिये कोरोना से लड़ने की क्षमता पैदा कर लेता है। ये कुछ वैसा ही है जैसे किसी युद्ध के पूर्व उसकी मॉक ड्रिल की जाए। यह तरीका बहुत पुराना है और चेचक, रेबीज जैसी बीमारियों के विरुद्ध कारगर रहा है। महत्वपूर्ण यह है कि इस तरीके के बारे में विश्व में सर्वाधिक जानकारी और अनुभव भारतीय वैज्ञानिकों के ही पास है। यही कारण है कि चीन या पश्चिम के बजाए भारत की वैक्सीन को तवज्जो मिल रही है, जो पहले से परखे हुए तरीके पर बनी है।
ब्राजील चीनी वैक्सीन को अस्वीकार करने वाला कोई एक देश नहीं है, वस्तुतः चीन वैश्विक स्तर पर अपनी वैक्सीन को स्वीकार्यता दिलाने के लिए जूझ रहा है। यूरोप ने पहले ही वैक्सीन को लेकर अपनी शंकाएं व्यक्त की हैं। इसके अलावा दक्षिण अमेरिका, एशिया और अफ्रीका तक में चीन को अपनी वैक्सीन बेचने में कठिनाई आ रही है। यहाँ तक कि उसके सबसे पक्के शागिर्द पाकिस्तान में भी चीन की वैक्सीन को लेकर आम लोगों में अविश्वास का भाव है। इसी का नतीजा है कि चीन अब अपने ही देशवासियों को जबर्दस्ती वैक्सीन लगाने पर उतारू है, जिससे दुनिया उसका भरोसा करे।
वहीं दूसरी ओर भारत है जो न केवल दक्षिण एशिया के देशों को वैक्सीन का वितरण करेगा, बल्कि अब वैश्विक स्तर पर भी उसकी वैक्सीन की मांग तेजी से बढ़ रही है। ब्राजील द्वारा वैक्सीन के लिए, चीन को मना करके, भारत से सहयोग लेने के कारण विश्व के अन्य देशों में भी भारतीय वैक्सीन की विश्वसनीयता बढ़ेगी। विश्व का मुखिया बनने का सपना पाले बैठे जिनपिंग और उनकी पार्टी के लिए, यह बड़ा सदमा होगा।