गाय के गोबर से बना पेंट, यह कल्पना नहीं वास्तविकता है। सड़क एवं परिवहन मंत्री श्री नितिन गडकरी ने द्वारा 12 जनवरी को इस पेंट को लॉन्च किया गया। खादी और ग्रामीण इंडस्ट्री कमीशन द्वारा बनाए गए पेंट पूर्णतः इको फ्रेंडली है। यह अन्य सामान्य पेंट की तरह टॉक्सिक नहीं होगा, साथ ही इसमें एन्टी-फंगस एवं एन्टी-बैक्टीरिया गुण भी हैं, साथ ही यह सुगंधित भी है।इसे ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड द्वारा सर्टिफिकेट भी मिल गया है। यह डिस्टेम्पर और इमल्शन प्लास्टिक पेंट की दो क्वॉलिटी में उपलब्ध होगा। डिस्टेम्पर पेंट का दाम 120 रुपये लीटर जबकि इमल्शन का 225 प्रति लीटर है।
इस अवसर पर नितिन गडकरी ने कहा कि “यह कदम प्रधानमंत्री के किसानों की आय बढ़ाने के दृष्टिकोण के साथ जुड़ा हुआ है, और यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था को इस हद तक बेहतर बनाने के प्रयास का एक हिस्सा है कि शहरों से ग्रामीण क्षेत्रों में रिवर्स माइग्रेशन (उल्टा प्रवास) शुरू हो जाए। ”
हाल ही में हमने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि सरकार गौ विज्ञान को कैसे बढ़ावा दे रही है। गौ-अपशिष्टों के प्रयोग से बने उत्पादों के लिए सरकार आर्थिक सहायता दे रही है। गौमूत्र या गोबर के प्रयोग पर आधारित स्टार्टअप प्रोग्राम को आर्थिक सहयोग मिल रहा है। साथ ही दुग्ध उत्पादन को बढ़ाने के लिए बेहतर देसी नस्लों का उपयोग किया जा रहा है। सरकार टेक्नोलॉजी के प्रयोग द्वारा इस सेक्टर की आर्थिक क्षमताओं का पूरा विकास चाहती हैं। कृतिम वीर्य द्वारा अच्छी नस्ल पैदा करने से लेकर, गोबर के विभिन्न उपयोगों द्वारा तैयार उत्पाद, सरकार लगातार गौपालन में टेक्नोलॉजी का बेहतर उपयोग कर रही है।
पशु-पालन भारत में ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। अधिकांश किसान अपनी रोजाना आय के लिए गाय-भैंस पर निर्भर हैं। इसके अतिरिक्त गाय के धार्मिक महत्व के कारण यह टकराव का एक कारण है। हिन्दू इसकी हत्या को निषिद्ध मानते हैं जबकि कई उदारवादी-वामपंथी संगठन तथा विचारक यह दावा करते हैं कि किसानों को दूध देने में अक्षम गायों को कसाई को बेचना चाहिए।
हर बात का आर्थिक विश्लेषण करने वाले संज्ञाशून्य वामपंथियों द्वारा इस बात को कभी तवज्जो नहीं मिलती गाय का हिंदुओ से भावनात्मक लगाव है। लेकिन मोदी सरकार में जिस प्रकार गौ अपशिष्ट के विभिन्न आर्थिक प्रयोगों को बढ़ावा दिया जा रहा है, उसके कारण गाय की अनुपयोगिता का प्रश्न भी सुलझ रहा है। यह किसानों एवं ग्रामीणों की आय तो बढ़ाएगा ही, सामाजिक टकराव को बेहतर ढंग से सुलझा सकेगा।
यह कोई पहला उत्पाद नहीं है, इसके पूर्व प्रयाग स्थित गौशाला में गाय के गोबर की बनी अगरबत्ती भी बाजार में उपलब्ध है। अक्टूबर 2019 में गडकरी जी ने ही गोबर से बना एंटी बैक्टीरियल और एंटी फंगस साबुन लॉन्च किया था।
इन सभी प्रयोगों के लिए विशेष रूप से नितिन गडकरी की तारीफ की जा सकती है। उनके मंत्रालय द्वारा लगातार ऐसे अभिनव प्रयोग किये जाते हैं। इसके पूर्व उनके मंत्रालय द्वारा प्लास्टिक के इस्तेमाल से 1 लाख किलोमीटर सड़क का निर्माण देश भर में किया गया। इसमें 1 किलोमीटर सड़क निर्माण में 9 टन डामर और 1 टन प्लास्टिक का इस्तेमाल हुआ, जिससे हर किलोमीटर में 1 टन डामर बचने से सरकार को 30 हजार रुपये की बचत हुई।
वह इको फ्रेंडली कार चलाने के सपने पर भी कार्य कर रहे हैं, जिसके तहत इथेनॉल का प्रयोग ईंधन के रूप में होगा। इससे भारत की तेल पर निर्भरता खत्म की जा सकेगी। इथेनॉल उत्पादन स्टार्च वाले उत्पादों से होता है, भारत में गन्ना द्वारा इसके निर्माण की योजना है, जो गन्ना किसानों की आय बढ़ाएगा।
गोबर के पेंट, इथेनॉल फ्यूल आदि देखना एक सुखद अनुभव है। भारत ऐतिहासिक रुप से ग्रामीण अर्थव्यवस्था रहा है, यहाँ तक कि जब भारत विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था तब भी हमारी आर्थिक तरक्की का आधार गाँव ही थे। पश्चिम के बेतरतीब फैलने वाले शहरों जैसा आर्थिक विकास भारत की पहचान नहीं हो सकता।
इसी कारण महात्मा गांधी ने कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने को कहा था क्योंकि अधिकांश भारत गांवों में रहता है या उससे जुड़ा है। यह एक विवेकपूर्ण निर्णय है कि मोदी सरकार भारत के पारंपरिक आर्थिक मॉडल को अपना रही है, जो गाँवो और किसानों की मजबूती पर टिका है।