धैर्य और सहनशीलता की भी एक सीमा होती है और वो सीमा अब दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे किसान संगठनों ने पार कर दी है। केन्द्र सरकार जहां किसानों से बातचीत कर मामले को हल करने की बात कहती रही है तो वहीं किसानों को बस कृषि कानूनों के खात्मे से मतलब है। ऐसे में केन्द्र द्वारा साफ कर दिया गया है कि बातचीत से कोई हल नहीं निकल रहा है तो अब सारा मुद्दा सुप्रीम कोर्ट द्वारा ही हल होना चाहिए। जाहिर है कि धैर्य की आठ परिक्षाओं के बाद अब मोदी सरकार इन फर्जी किसानों के प्रति आक्रामक हो गई है।
किसानों के इस आंदोलन की अराजकता में खालिस्तानियों का बड़ा हाथ है। ये खालिस्तानी समर्थक इन्हीं किसानों के बीच छिपे हुए है जिसको लेकर एनआईए ने भी एक एफआईआर दर्ज की है और बताया है कि कुछ एसजेएफ जैसे खालिस्तानी संगठनों द्वारा लगातार यहां के उन अराजक लोगों को पैसा भेजा जा रहा है। यही अराजक लोग दिल्ली में सारे नियम कानूनों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। इन्हीं लोगों के भड़काने के कारण आसानी से हल होने वाले मुद्दों पर पेंच फंस गया है और ये अराजक किसान आंदोलन अब लंबा खिंच रहा है।
किसान नेताओं के साथ मीटिंग में आक्रमकता के जरिए मोदी सरकार के मंत्रियों ने किसानों और उनको भड़काने वाले खालिस्तानी समर्थकों को साफ संदेश दे दिया है कि अब ये कानून किसी भी हालत में वापस नहीं होगा जिसे जो करना है कर ले।
तथाकथित किसानों के आंदोलन पर मोदी सरकार अब आर पार की लड़ाई के मूड में आ चुकी है। 8वें दौर की बातचीत में भी जब कोई हल नहीं निकला तो सरकार के मंत्रियों के तेवर बदल गए हैं क्योंकि मोदी सरकार का धैर्य जवाब दे गया है। आखिरी बातचीत में भी किसान कानूनों को वापस लेने की बात पर अड़े थे। ऐसे में टाइम्स ऑफ इंडिया की खबरों के मुताबिक, “सरकार ने दू टूक कह दिया कि कानून रद्द नहीं होगा, कोई और विकल्प दो तो विचार किया जाएगा।” इस पर कुछ किसान नेता मंत्रियों के सामने ही उग्र हो गए, जिसके बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा, “कानून अगर असंवैधानिक लग रहा है तो कोर्ट में जाइए।”
इसके बाद माहौल कुछ ठंडा हुआ तो 15 जनवरी की तारीख पुनः बातचीत के लिए तय की गई है, लेकिन ऐसा पहली बार है कि कृषि मंत्री ने किसान नेताओं के गुस्से का जवाब गुस्से में ही दिया। सरकार किसानों की मांगों के अनुसार कानून में संशोधन की बात कर रही है। इसके बावजूद किसान अड़े हुए है। सरकार की बातचीत की प्लानिंग का कोई असर ही नहीं हो रहा है। अगले दौर की बातचीत तय ज़रूर कर रखी गई है, लेकिन उसका कोई औचित्य नहीं बनता है क्योंकि किसान अपनी बात से टस से मस नहीं हो रहे हैं।
9वें दौर की औपचारिक बातचीत से पहले इस तरह की आक्रामकता दिखाकर सरकार ने साबित कर दिया है कि वो अब इस मुद्दे पर बिल्कुल भी नहीं झुकेगी। इस कानून पर जो भी देश की सर्वोच्च अदालत तय करेगी वो देखा जाएगा। दूसरी ओर नए कानूनों को लेकर किसान नेता राकेश टिकैत भी फिर से बातचीत को तैयार नहीं थे लेकिन उन्हें अन्य संगठनों के नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष मजबूत रखने का संदेश देने के नाम पर बैठक में शामिल होने के लिए मना लिया।
बातचीत के जरिए मोदी सरकार काफी हद तक किसानों की समस्या को सुलझा चुकी थी, इसके बावजूद किसान कुछ भी ढील नहीं दे रहे हैं। ऐसे में मोदी सरकार की सहनशीलता का टूटना किसानों को भारी ही पड़ेगा, क्योंकि कानूनी दांव पेंच में सरकार के पक्ष में है। ऐसी स्थिति में बातचीत के जरिए मिलने वाली रियायतें भी किसानों के हाथ से जा सकती हैं।