अमेरिका का साथी देश जापान चीन से नफ़रत करता है, लेकिन बाइडन प्रशासन जापान के किसी भी चीन-विरोधी कदम में उसका साथ नहीं देना वाला! दूसरी ओर क्षेत्रीय प्रभाव और Arctic पर दबदबे के संदर्भ में रूस और चीन के बीच तनाव की स्थिति देखने को मिलती है। ऐसे में जब बाइडन चीन के मामले पर जापान के साथ दृढ़ता से खड़े होने में आनाकानी दिखा सकते हैं, तो ऐसे वक्त में रूस और जापान एक दूसरे के साथ सहयोग करने के रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं। दोनों देशों द्वारा इस समय लिए जा रहे फैसलों से यह स्पष्ट है कि भविष्य में हमें जल्द ही रूस-जापान का गठबंधन देखने को मिल सकता है।
दरअसल, अभी जापान ने ऐलान किया है कि वह रूस और जापान के बीच विवादित दक्षिण कुरिल द्वीपों को लेकर रूस के साथ मिलकर काम करेगा! जापान के विदेश मंत्री Motegi ने हाल ही में कहा “हम रूस के साथ मिलकर कुरिल द्वीपों पर आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने पर सहयोग करने के लिए तैयार हैं। हम वर्ष 2018 में सिंगापुर में किए गए समझौतों के तहत बातचीत के माध्यम से इस विवाद को सुलझाने के लिए भी प्रयासरत हैं।”
जापान के नज़रिये से यह बेहद महत्वपूर्ण कदम है। World War 2 के बाद पैदा हुए कुरिल द्वीप विवाद ने शुरू से ही जापान और रूस के रिश्तों में खटास भर रखी है। अब सुगा प्रशासन जल्द से जल्द इस विवाद को सुलझाकर आपसी समझ के आधार पर रूस के साथ अपने रिश्तों को आगे लेकर जाना चाहता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि रूस और जापान, दोनों के लिए सबसे बड़ा खतरा इस वक्त चीन है! ऐसे में आपसी दुश्मनी भुलाकर अपने सबसे बड़े शत्रु के खिलाफ मोर्चा खोलने में ही समझदारी है।
इस बात को रूस भी समझता है और इसीलिए रूस भी अपने Far east सहित Arctic क्षेत्र में जापान और भारत जैसे देशों को आमंत्रित कर रहा है। भारत-जापान-रूस ने मिलकर हाल ही में एक त्रिपक्षीय फोरम लॉन्च करने का फैसला लिया है, जिसके तहत तीनों देश मिलकर क्षेत्र में पैदा हुए नई भू-राजनीतिक चुनौतियों से निपटने के लिए रणनीति बना सकेंगे! ऐसा इसलिए, क्योंकि रूस को डर है कि कहीं चीन उसके Far East और Arctic क्षेत्र में रणनीतिक निवेश के माध्यम से अपना दबदबा इतना ज़्यादा न बढ़ा ले, कि खुद रूस का प्रभाव ही चीनी प्रभाव के सामने बौना पड़ जाए!
आज से करीब तीन साल पहले यानि जनवरी 2018 में चीन ने भी अपनी Arctic नीति को जारी किया था, जिसमें उसने Arctic के Northern Sea Route के जरिये अपने BRI प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने की मंशा को दर्शाया था। इसके साथ ही चीन ने अपने आप को Near Arctic देश भी घोषित कर दिया था। उसी के बाद से रूस और अमेरिका लगातार Arctic क्षेत्र में चीन के प्रभाव को बढ़ने से रोकने के लिए सख्त रुख अपना चुके हैं। रूस Northern Sea Route और क्षेत्र के संसाधनों पर अपना पहला अधिकार समझता है, जिसके कारण वह क्षेत्र में चीन को एक प्रतिद्वंधी के तौर पर देखता है।
स्पष्ट है कि रूस और जापान अब अपनी पुरानी दुश्मनी भुलाकर अपनी दोस्ती की एक नयी शुरुआत करने जा रहे हैं, जो चीन के लिए किसी भी नज़रिये से अच्छी खबर नहीं है। नवंबर 2020 में TFIPost ने सबसे पहले इस बात का अनुमान लगाया था कि बाइडन प्रशासन के आने के बाद रूस को भारत और जापान की सबसे ज़्यादा ज़रूरत पड़ने वाली है। अब यही सच होता दिखाई दे रहा है।