पिछले कुछ समय से निधि राज़दान का मामला सोशल मीडिया पर छाया हुआ है। कोई उन्हें बेवकूफ कह रहा है तो कोई विक्टिम। हावर्ड के नाम पर उन्हें कोई बेवकूफ बना देता है और वे 6 महीने से भी अधिक समय तक बेवकूफ बनी रहती हैं। यह बेवकूफी नहीं है बल्कि यह निधि राज़दान का हावर्ड और अमेरिका के प्रति अभिभूत हो चुके मन को दर्शाता है कि कैसे वे न सिर्फ हावर्ड जाना चाहती हैं बल्कि अमेरिका में ही बस जाना चाहती हैं। उसके लिए वो कुछ भी करने को तैयार हैं चाहे वो बिना हावर्ड के प्रोफेससर बने भारत में नौकरी छोड़ना हो या हर जगह अपने आप को हावर्ड का प्रोफेसर बता कर इस पद को सभी के मुंह पर थोपना हो। यह उनका अमेरिका और अमेरिका के गोरी चमड़ी के लिए कोलॉनाइज़ड हो चुके दिमाग जिसे वे अपनी बेवफूफी के रूप में दर्शा रही हैं। इससे न सिर्फ उनकी बेइज्ज़ती हो रही है बल्कि देश की भी हो रही है। इस कांड में हुई घटनाओं को पलट कर देखें तो कई उदाहरण देखने को मिलेंगे जिसमे निधि राज़दान का हावर्ड, गोरी चमड़ी अमेरिका और पश्चिम के लिए उनकी अंधभक्ति का प्रदर्शन करता है।
निधि राज़दान का सिर्फ अमेरिका से ही इतना लगाव नहीं है, बल्कि वहां से जुड़ी सभी चीजों से है, चाहे वो लोग हो या वहां कि राजनीति या कोई कॉलेज। जब निधि को जॉब ऑफर आया तब से लेकर वह बिना जांच पड़ताल किए ही अपने हाथ में प्रोफेसर के पद की बंदूक लेकर घूमने लगीं और लोगों के न पूछने पर भी यह कहने लगी कि मैं हावर्ड में पढ़ाती हूँ।
ट्विटर बायो से लेकर सभी जगह अपने आप को हावर्ड की प्रोफेसर बताने लगीं और उसी के नाम पर सेमिनार भी करने लगी। ये हास्यास्पद ही है कि कोई कैसे इतना अमेरिका और हावर्ड के लिए अंधभक्ति में रह सकता कि वह एक बार यह गूगल भी न करे कि हावर्ड में पत्रकारिता होती भी है या नहीं।
निधि राज़दान ने ऐसा नहीं किया क्योंकि उन्हें भरोसा था कि उनकी योग्यता उन्हें अमेरिकी विश्वविद्यालय में स्थान दिला ही देगी। हालांकि, निधि की योग्यता को कम आँकना उनकी ही बेइज्ज़ती है क्योंकि उन्हें AC के डिफ़ाल्ट सेटिंग्स के बारे में भी नहीं पता।
निधि राज़दान अमेरिकी जीवन शैली की इतनी बड़ी अनुसेवी है कि बिना प्रोफेसर बने ही उन्होंने लोकेशन कैम्ब्रिज कर दिया था। जब यह चर्चा शुरू हो गयी कि वे अमेरिकी जा चुकी हैं तो उन्होंने उन दावों को खारिज भी नहीं किया। वहीं उन्होंने न सिर्फ हावर्ड के नाम पर सेमिनार किये, बल्कि कई पॉडकास्ट भी किये और इसी झूठे प्रोफेसर के पद के नाम पर अमेरिकी चुनावों के दौरान एक्सपर्ट बनी घूमती रहीं और सभी से यह कहती फिर रही थीं कि मैं हावर्ड की प्रोफेसर हूँ।
My goodness! Nidhi was even introduced with the job title, that she got by clicking on the SMS sent by Mbolke Terilunga, on a Carnegie Endowment for International Peace podcast.https://t.co/gRu0kZPUEL
— Bharath (@brakoo) January 16, 2021
सिर्फ इतना ही नहीं जब उन्होंने यह ऐलान कर दिया कि वे हावर्ड में पढ़ाने लगी तो उनके सभी सहयोगी और साथी सातवें आसमान पर पहुंच गए और फूल बरसाने लगे। जब वे हावर्ड के सहायक प्रोफ़ेसर के तौर पर अमेरिकी चुनावों के दौरान NDTV पर एक्सपर्ट बन आती थीं तो प्रणोय रॉय फुले नहीं समाते थे।
IMO she looks decidedly uncomfortable…pic.twitter.com/1rhgY3F7MR
— Nandini 🇮🇳 (@NAN_DINI_) January 16, 2021
यह निधि राज़दान और उनके आस पास के लोगों का अमेरिका और अमेरिकी जीवनशैली के लिए प्रेम उनकी अंधभक्ति को ही दर्शाता है। इसी का एक और उदाहरण तब मिलता है जब वो एक सेमिनार में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा से प्रश्न करने के लिए उठ खड़ी हुई थीं और उनके मना करने पर भी वह बार बार उनसे प्रश्न करने के लिए आग्रह करती रहीं।
Kudos to Barack Obama for Recognizing Nidhi Razdan (Harvard Professor, NOT) for the clever sham she is long back 😂😂 pic.twitter.com/3q1iStdKv1
— Rosy (@rose_k01) January 15, 2021
इसी प्रेम में वह इतनी रम गयीं कि उन्हें झूठे जॉब ऑफर का पता ही न चला और वो बेवकूफ बन गयीं। हालांकि, अभी तक यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि जॉब ऑफर झूठा था या निधि पूरे भारत को बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रही थीं। परंतु एक बात शीशे की तरफ साफ है कि निधि राज़दान अपने आप को इस योग्य समझती हैं कि हावर्ड उन्हें बिना किसी PHD डिग्री के ही सहायक प्रोफ़ेसर बना देगा वो भी सिर्फ कुछ ईमेल के ऊपर। इससे न सिर्फ निधि राज़दान ने अपनी भद्द पिटवाई है बल्कि देश को भी बदनाम किया है।