पालघर में दो साधुओं को हिंसक भीड़ ने पीट पीटकर मार डाला। नांदेड़ में एक आश्रम में दो साधुओं की गला घोंटकर हत्या की गई। राजस्थान के करौली में भू माफिया का विरोध करने पर एक पंडित को ज़िंदा जलाया गया। इन सब खबरों में एक बात तो समान है कि हत्यारों के मन में हिन्दू साधुओं और पंडितों के प्रति काफी घृणा भरी है। पर क्या आप सबको पता है कि इन सबके पीछे एक और कारण भी समान है – बॉलीवुड!
Bollywood & the 'secular' woke jamaat should take a look at this and seriously ask themselves whether this ghastly situation is not perpetuated by them through their consistent anti-hindu tirade & communal incitement over the years.. And then the bigots don't even feel ashamed! pic.twitter.com/TCxP33MRkm
— Un-bhadralok bangali (@goonereol) January 18, 2021
जी हाँ बॉलीवुड मुसलमानों को पीड़ित और हिन्दुओं को विलेन दिखाने में सफल रहा है। विश्वास नहीं होता ना, परंतु कहीं न कहीं ये सच भी है। आम तौर पर वर्तमान के कई बॉलीवुड प्रोजेक्ट हिन्दू आस्था एवं सनातन संस्कृति का धड़ल्ले से अपमान करते आ रहे हैं और देश में मुस्लिमों की दशा का भ्रामक चित्रण करते आये हैं, एमेजॉन प्राइम पर प्रदर्शित तांडव सबसे ताज़ा उदाहरण है। पर कहीं ये सीरीज लोगों को हिन्दू साधुओं की हत्या करने और सनातनियों के साथ क्रूरता करने के लिए तो नहीं भड़का रही है?
यदि आपको विश्वास नहीं होता, तो सेक्रेड गेम्स के दूसरे सीजन का एक उदाहरण देते हैं। यहाँ पर जिस गुरुजी का रोल पंकज त्रिपाठी ने निभाया है, उसे उन लोगों से काफी घृणा है, जो कथित तौर पर अल्पसंख्यक तुष्टीकरण में विश्वास रखते हैं। इसलिए वे मुंबई पर न्यूक्लियर हमला करवाना चाहते हैं, ताकि इसका दोष मुसलमानों पर मढ़ा जा सके। वे एक संत है, और उनके मुंह से निकलता है ‘बलिदान देना होगा’।
अब पाताल लोक की ओर नजर डालिए। यहाँ पर एक दृश्य में एक पंडित देवी माँ की मूर्ति के समक्ष बैठकर गंदी गंदी गालियां दे रहा है, और साथ ही माँस का भक्षण भी कर रहा है। इस तरह से हिंदू धर्म के गुरूओं का चित्रण लोगों में नफरत ही भरेगा। वहीं, दूसरी तरफ जब IAS की तैयारी कर रहा एक मुस्लिम सब इंस्पेक्टर एक केस के संबंध में एक उच्चाधिकारी से मिलता है, तो वह बड़े बेशर्मी से कहती है, तुम लोगों की तादाद आजकल कुछ ज्यादा ही बढ़ रही है। क्या इस तरह की बात कोई भी नौकरशाह करता है? क्या यह निर्माताओं द्वारा मुसलमानों को भड़काने का एक बेहूदा प्रयास नहीं है?
अब तांडव सीरीज में ही कुछ दृश्यों को देखिए। एक ओर ऊपर से आदेश मिलने पर पुलिस स्पष्ट तौर पर आंदोलन में भाग ले रहे मुसलमानों [ध्यान दीजिएगा] का एनकाउन्टर करती है, तो वहीं दूसरी ओर उनपर निरंतर देशभक्ति सिद्ध करने का दबाव बनाती है। यहां भी इन सबके पीछे साधु संतों की एक अहम भूमिका दिखाई जाती है। इससे तो यही मुस्लिमों के बीच यही सन्देश जाता है कि सनातन धर्म उनसे घृणा करता है और लक्षित भी करता है, परन्तु वास्तविकता इससे कहीं दूर है। इससे ये संदेश भी जाएगा कि साधु संत बेहद धूर्त, कपटी और क्रूर होते हैं, और इन्हें मारने में ही समाज का कल्याण है, और दुर्भाग्यवश यही हो रहा है।
लेकिन यह बिल्कुल मत समझिएगा कि यह समस्या केवल OTT तक सीमित है। भारतीय फिल्म उद्योग, विशेषकर बॉलीवुड तो इसी प्रकार की भावनाएँ न जाने कितने वर्षों से लोगों के मन मस्तिष्क में ठूसने का प्रयास करता आया है। चाहे किसी फिल्म में कपटी पंडित को तंत्र मंत्र से लोगों का शोषण करते दिखाया जाना हो, या फिर लक्ष्मी जैसी फिल्मों में साधुओं को खुलेआम नारी विरोधी और धोखेबाज दिखाना हो, आप बोलते जाइएगा और वो सब इन फिल्मों ने किया है। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि आज जो पालघर, करौली या फिर आंध्र प्रदेश में हो रहा है, उसके पीछे कहीं न कहीं भारतीय फिल्म उद्योग, विशेषकर बॉलीवुड भी बराबर का दोषी है।