जो बाइडन के राष्ट्रपति बने एक सप्ताह भी नहीं हुआ है परन्तु वह अपने एक्शन से कई अमेरिकी सहयोगी देशों को नाराज करने वाले कदम उठा चुके हैं। चाहे वो QUAD सहयोगी देश हो या इजरायल हो। अब इसी क्रम में ऐसा लगता है कि बाइडन ने UK को भी नाराज करने की ठान ली है। ब्रिटेन अमेरिका के साथ ट्रांस-अटलांटिक ट्रेड डील करना चाहता है। इसके लिए बातचीत भी आखिरी दौर में है। लेकिन रिपोर्ट के अनुसार अब बाइडन के हाथों में सत्ता होने के कारण वे कुछ नए डिमांड ब्रिटेन के सामने रख सकते हैं जैसे जलवायु परिवर्तन, वैश्विक प्रवास और विदेशी सहायता के मुद्दों पर वे ब्रिटेन से अमेरिका के साथ खड़े होने की शर्तों को रख सकते हैं। ब्रिटेन पहले ही इनमें से कई मुद्दों पर सहमत नहीं है लेकिन अगर उसे बाइडन ने मजबूर किया तो ब्रिटेन का भी नाराज होना लाजमी है। ऐसे में देखा जाये तो जिस रफ़्तार से अमेरिका अपने सहयोगियों को खो रहा है उससे यही लगता है कि आने वाले समय में अमेरिका कहीं अलग-थलग न पड़ जाये।
दरअसल, यूके और ईयू के पूर्व विदेश नीति सलाहकार, Ben Harris-Quinney का कहना है कि बाइडन प्रशासन ब्रिटेन के सामने कई नई मांगों को पेश करने के लिए तैयार है।
Express.co.uk से बात करते हुए, उन्होंने कहा: “यह संभावना है कि बाइडन ब्रिटेन को green standards, global migration agreements, और सहायता खर्च की निरंतरता जैसी पहल पर अपने साथ लाना चाहेंगे।
हालाँकि, इन उत्पादों की लागत, कॉस्ट ऑफ़ लिविंग और आम तौर पर अर्थव्यवस्था को ध्यान में रखते हुए देखा जाये तो ये न ही व्यापार के लिए और न ही औसत ब्रिटिश नागरिक के लिए अच्छे होंगे।”
ब्रिटेन इस वर्ष के अंत में ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन की मेजबानी करेगा और सरकार पहले ही 2030 तक ग्रीनहाउस गैसों में 68 प्रतिशत और 2050 तक कटौती कर शून्य करने के लिए प्रतिबद्ध है।
बता दें कि अपने कार्यालय में पहले ही दिन, बाइडन ने अमेरिका को पेरिस समझौते में वापस लौटा दिया था, जिसका उद्देश्य पूर्व-औद्योगिक स्तरों से ग्लोबल वार्मिंग पर अंकुश लगाना है।Ben Harris-Quinney ने प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के लिए एक चेतावनी जारी करते हुए दावा किया है कि ब्रिटेन ने यूरोपीय संघ को इसलिए नहीं छोड़ा था कि लेफ्ट लिबरल के एजेंडावादी पर्यावरण के नियामक लागू करने पड़े और शेष दुनिया के लिए सीमाओं को खोलना पड़े।
यह वास्तविकता भी है कि ब्रिटेन ने अपने आप को यूरोपीय संघ से कई मुद्दों के साथ climate change, global migration और foreign aid के मुद्दों पर असहमति के कारण ही Brexit किया था। अब अगर बाइडन ब्रिटेन को फिर से उन्हीं शर्तों को मानने के लिए मजबूर करेंगे तो ब्रिटेन अमेरिका से दूरी बना लेगा।
पिछले कुछ दिनों को देखे तो बाइडन प्रशासन ने कई सहयोगियों को नाराज कर दिया है। चीनी कंपनियों को सह दे कर वे पहले ही QUAD देशों को नाराज करने का कदम उठा चुके हैं। वहीँ यह भी खबर है कि एक बार फिर से अमेरिका ईरान के साथ ओबामा प्रशासन द्वारा किये गए परमाणु समझौता लागू कर सकता है जिससे अमेरिका को डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल में वापस खींच लिया था। अगर अमेरिका ऐसा करता है तो इससे पशिमी एशिया में चल रहा शांति प्रयास भी अंतिम रूप लेने से पहले ही समाप्त हो जायेगा। वहीँ ईरान के मजबूत होने से इजरायल भी अमेरिका से नाराज हो जायेगा। इसी के लिए इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू MOSSAD प्रमुख को बाइडन से मिलने अमेरिका भेजने वाले है, जिससे परमाणु डील के दोबारा लागू होने की स्थिति में इजरायल की शर्तों को भी माना जाये।
वहीँ भारत, पाकिस्तान के साथ बाइडन के घनिष्ठ संबंध को लेकर चिंतित है। इसके अलावा, बीजिंग पर बाइडन के नरम होने से नई दिल्ली नाराज भी हो सकता है। यानी बाइडन प्रशासन में भारत के दोनों दुश्मन पड़ोसी देश को छूट मिलने की स्थिति में नाराज होना जायज है। जापान के लिए, QUAD स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक के अपने दृष्टिकोण के ऊपर केन्द्रित है। लेकिन अब बाइडन खुद ही QUAD को तोड़ने पर तुले हुए हैं। जापान की सुगा प्रशासन भी चिंतित है कि यदि बाइडन चीन पर बहुत नरम हो जाते हैं, तो वह पूर्वी चीन सागर में सेनकाकू द्वीप विवाद में हस्तक्षेप करने से भी इंकार कर सकते है। अंत में, ऑस्ट्रेलिया ने केवल बीजिंग के खिलाफ एक बड़ा व्यापार युद्ध छेड़ा है, क्योंकि उसे लगा था कि अमेरिका QUAD देशों को चीन के खिलाफ करेगा। लेकिन बाइडन के आने के साथ, अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया संबंधो में भी मुश्किल पैदा होने की संभावना है।
ऐसे में यह स्पष्ट है कि बाइडन के आने के एक ही सप्ताह में इस तरह के हालत बन चुके हैं तो आने वाले भविष्य में क्या होगा। अगर ऐसा ही चलता रहा तो अमेरिका एक अलग-थलग देश बन जायेगा।