चीन ने माना भारतीय वैक्सीन का लोहा, कहा, दुनिया कर रही इंतजार

Vaccine रेस में चीन ने मानी हार!

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(PC: CNN)

भारत के पक्ष में चीन का बोलना उतना ही अप्रत्याशित है, जितना कि रवीश कुमार का इस्लामिक आतंकवाद के विरुद्ध आक्रामक होना, या फिर किम जोंग उन का उत्तरी कोरिया में लोकतंत्र बहाल करने की पेशकश करना। लेकिन ऐसा ही कुछ हुआ, जब चीन ने भारत निर्मित कोरोना वायरस  वैक्सीन के पक्ष में अनचाहे तरीके से ही सही, परंतु अपनी बात बोली।

अपने एक लेख में चीन के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने आश्चर्यजनक रूप से भारतीय वैक्सीन का पक्ष लेते हुए उसकी तारीफ की। अपने लेख में ग्लोबल टाइम्स ने कहा, “विशेषज्ञों ने कहा है कि भारतीय टीके चीनी टीकों के मुकाबले किसी से कम नहीं है। फिर चाहे बात रिसर्च की हो या फिर उत्पादन क्षमता की”। स्पष्ट है कि ड्रैगन ये मानता है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीन निर्माता है और श्रम कीमतों में कमी और अच्छी सुविधाओं के चलते उसके टीकों की कीमत भी कम है।

बता दें कि वुहान वायरस से लड़ने हेतु भारत कई वैक्सीन को बढ़ावा दे रहा है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सहयोग से बनी COVISHIELD वैक्सीन का जहां ड्राई रन शुरू हो चुका है, तो वहीं पूर्णतया स्वदेशी वैक्सीन COVAXIN भी बनके लगभग तैयार है, और इसे इमरजेन्सी उपयोग के लिए स्वीकृति भी मिल चुकी है।

परंतु ग्लोबल टाइम्स वहीं पे नहीं रुका। उनका कहना है, “भारत वैक्सीन के निर्यात की योजना बना रहा है और वैश्विक बाजार के लिए यह अच्छी खबर हो सकती है, लेकिन उसके इस कदम का राजनीतिक और आर्थिक मकसद है”। रिपोर्ट में कहा गया है कि नई दिल्ली देश में बने टीके का उपयोग वैश्विक राजनीति में अपने दखल को बढ़ाने और चीन द्वारा निर्मित टीकों का मुकाबला करने के लिए कर रहा है।

रिपोर्ट में Jilin यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ लाइफ साइंसेज के झियांग चुनलाई का हवाला देते हुए कहा गया है कि जेनेरिक दवाओं के निर्माण में भारत नंबर एक की पोजिशन पर कायम है और वह वैक्सीन बनाने में भी चीन से पीछे नहीं है। झियांग ने कहा कि भारत स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया दुनिया में सबसे अधिक वैक्सीन का उत्पादन करता है और कुछ मामलों में तो यह पश्चिमी देशों को भी पीछे छोड़ता है”।

अब चीन का भय गलत भी नहीं है, क्योंकि भारत पहले ही चीन को हर मोर्चे पर चुनौती देने के लिए कमर कस चुका है, चाहे वह रणनीतिक मोर्चा हो, कूटनीतिक मोर्चा हो या फिर आर्थिक मोर्चा ही क्यों न हो। चीन भारत द्वारा फार्मा क्षेत्र में प्रवेश करने की संभावना से कितना सहमा हुआ है, ये ग्लोबल टाइम्स के रिपोर्ट के एक अंश से ही स्पष्ट पता चलता है।

रिपोर्ट के अंश अनुसार, “भारतीय वैक्सीन निर्माताओं ने शुरू में ही डब्ल्यूएचओ, GAVI और दक्षिण अमेरिका में पैन अमेरिकी स्वास्थ्य संगठन(PAHO) जैसे वैश्विक संगठनों से गठबंधन कर लिया था, जिसने टीके के निर्यात में मदद की है। ग्लोबल टाइम्स ने बीबीसी की एक रिपोर्ट के हवाले से कहा है कि “भारत लगभग 60 फीसद टीके का उत्पादन करता है और कई देश कोरोना टीके की खुराक भेजे जाने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं”। वैश्विक बाजारों में भारत निर्मित टीकों की बढ़ती स्वीकार्यता के बीच यह रिपोर्ट सामने आई  जो भारत की वैक्सीन की बढ़ती स्वीकार्यता को दर्शाता है।

जब शत्रु भी आपकी योग्यता पर कुछ सकारात्मक बोलने को विवश हो जाए, तो समझ जाइए कि आपने क्या उपलब्धि प्राप्त की है। चीन भारतीय वैक्सीन की बढ़ती लोकप्रियता को अपने लिए खतरा मानता है, लेकिन इसके बावजूद उसे भी भारतीय वैक्सीन की क्षमता पर दो मीठे बोल बोलने ही पड़े हैं, और यहां पर कुछ बुद्धिजीवी ऐसे हैं, जिनका बस चले तो यदि भगवान उन्हें अमृत भी दें, तो ये कहके नकार देंगे कि ये भाजपा का अमृत है।

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