खालिस्तानी समर्थक संगठन खालसा एड को नामांकित किया गया नोबेल शांति पुरस्कार के लिए। चौंकिए मत, ये खबर शत प्रतिशत सच है। तीन कैनेडियाई राजनीतिज्ञों ने ये अजीबोगरीब कारनामा कर दिखाने में सफलता पाई है, क्योंकि उनके अनुसार इस संगठन से ज्यादा परमार्थी कोई संसार में हो ही नहीं सकता।
कैनेडियाई सांसद Tim Uppal, ब्रैंपटन के मेयर पैट्रिक ब्राउन एवं ब्रैंपटन दक्षिण से सांसद प्रभमीत सिंह सरकारिया के नॉर्वे में स्थित नोबेल कमेटी के अध्यक्ष Berit Reiss Andersen को पत्र लिखते हुए कहा, “खालसा एड एक अंतर्राष्ट्रीय NGO है जो दुनिया भर के आपदाग्रस्त क्षेत्रों में मानव सहायता पहुंचाता है। वह सिख धर्म के ‘सरबत दा भला’ यानि सबका भला हो वाली नीति पे काम करने में विश्वास रखता है” –
For over 20 years @Khalsa_Aid has been helping people in desperate situations around the world. In my capacity as a federal Member of Parliament and with the support of @PrabSarkaria and @patrickbrownont, I am nominating Khalsa Aid for a Nobel Peace Prize. pic.twitter.com/J2yApsWfhd
— Tim S. Uppal (@TimUppal) January 17, 2021
अब खालसा एड पूरी तरह से भ्रामक तथ्य नहीं प्रसारित नहीं करता, लेकिन वह इतना भी कोई दैवतुल्य संगठन नहीं है। इसी संगठन ने 2019 में CAA के विरोध के नाम पर शाहीन बाग में चल रही अराजकता को खुलेआम बढ़ावा दिया था। अब यही संगठन कृषि कानून के विरोध के नाम पर किसान आंदोलन में अराजकतावादियों, विशेषकर खालिस्तानियों को बढ़चढ़कर बढ़ावा भी दे रहा है।
NIA की जांच पड़ताल के अनुसार खालसा एड बब्बर खालसा इंटरनेशनल के लिए एक PR संगठन के तौर पर काम करता है, और कई आतंकियों के साथ इसके संबंध भी स्पष्ट पाए गए हैं। यूं ही नहीं खालसा एड को पाकिस्तान का समर्थन प्राप्त है। इसीलिए अभी हाल ही में खालिस्तानी रेफरेंडम 2020 के संबंध में खालसा एड के कई सदस्यों को सम्मन भी भेजा गया है। अब ऐसे संगठन को नोबेल पुरस्कार के लिए सम्मानित करना क्या इस संस्था का अपमान नहीं है?
शायद नहीं, क्योंकि नोबेल पुरस्कार में अगर कुछ एक उदाहरण छोड़ दें, तो अधिकतर ऐसे ही लोगों को पुरस्कार मिला है, जो कहने को समाज सेवी है, परंतु असल में उनसे धूर्त और उनसे ज्यादा आतंकी समर्थक कोई नहीं होता। विश्वास नहीं होता तो मलाला यूसुफ़ज़ाई के कश्मीर पर विचारों से आप समझ सकते हैं। यदि नोबेल शांति पुरस्कार वास्तव में मानवाधिकार और वैश्विक शांति के लिए दिया जाता, तो फिर यासिर अराफ़ात जैसे अलगाववादी आतंकियों को यह पुरस्कार क्यों मिला?