पिछले कुछ दशकों से भौगोलिक विशेषज्ञों का ध्यान चीन पर लगा हुआ है, विशेषकर उसके नेता शी जिनपिंग पर। शी जिनपिंग अपने आप को 2020 के अंत तक विश्व के सबसे प्रभावशाली नेताओं में शामिल करना चाहते थे, लेकिन तीन विषयों पर उनकी अदूरदर्शिता ने उन्हे हंसी का पात्र बना के छोड़ा है।
लद्दाख
जब वुहान वायरस के कारण पूरी दुनिया चीन के विरुद्ध मोर्चा संभालने की तैयारी कर रही थी, तो चीन ने अपनी जनता का ध्यान हटाने के लिए अपने पड़ोसियों पर हमला करना शुरू कर दिया, जिसमें प्रमुख था भारत का पूर्वी लद्दाख क्षेत्र। इस क्षेत्र के कई रणनीतिक हिस्सों पर चीन की PLA ने दावा करना शुरू कर दिया, और मई के अंत तक उन्होंने हवाई जहाज़ के साथ भारत तिब्बत बॉर्डर पर काफी भारी संख्या में सैनिकों की घेराबंदी कर दी।
अब इतने बड़े फैसले बिना शी जिनपिंग की स्वीकृति के तो लिए ही नहीं जा सकते, क्योंकि PLA के सभी बड़े निर्णय CCP के हाइकमान द्वारा लिए जाते हैं। इसी बीच चीन ने अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए पहले बातचीत का छलावा दिया, और फिर 15 जून को गलवान घाटी में घात लगाकर हमला किया।
लेकिन चीन भूल गया था कि यह 1962 का भारत नहीं, 2020 का भारत है, वो भी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाला भारत, जहां सेना को किसी भी हमले का मुंहतोड़ जवाब देने की पूरी स्वतंत्रता है। एक दुर्घटना के कारण भारतीय सेना को निस्संदेह काफी नुकसान हुआ और इस हिंसक झड़प में कर्नल संतोष बाबू सहित 20 अफसर वीरगति को प्राप्त हुए। लेकिन जवाब में भारतीय सैनिकों ने चीनी खेमे में घुसकर ऐसा त्राहिमाम मचाया कि आज भी चीन अपने देशवासियों से मृतकों की वास्तविक संख्या साझा करने से कतराता आया है।
इतना ही नहीं, भारतीय सेना ने अगस्त में चीन के नाक के नीचे से न केवल रणनीतिक रूप से अहम रेकिन घाटी को वापिस लिया, बल्कि चीनी हमलों को मुंहतोड़ जवाब भी दिया। आज चीन यदि कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं है, तो उसका प्रमुख कारण लद्दाख पर आक्रमण करने की शी जिनपिंग की सनक थी।
ऑस्ट्रेलिया
क्या कभी आप उस देश को नुकसान पहुंचाने का प्रयास करोगे जिससे आप अपना भोजन, ईंधन, शराब और उद्योगों के लिए आवश्यक वस्तुओं का इम्पोर्ट करते हो? नहीं न। परंतु ये शुभ काम शी जिनपिंग ने अवश्य किया।
जब वुहान वायरस के कारण ऑस्ट्रेलिया ने चीन की जवाबदेही मांगी और उसे एक निष्पक्ष जांच कराने के लिए कहा, तो चीन के अहंकार को काफी ठेस पहुंची, विशेषकर जिनपिंग को। उन्होंने तत्काल प्रभाव से ऑस्ट्रेलियाई इंपोर्ट्स पर टैरिफ बढ़ा दिया, और ऑस्ट्रेलिया से आने वाले कोकिंग कोल पर प्रतिबंध लगा दिया।
इतना ही नहीं, चीन ने ऑस्ट्रेलिया से अपमानजनक भाषा में अपने मीडिया मुखपत्रों के जरिए बात भी करनी शुरू कर दी। परंतु चीन की वुल्फ़ वॉरियर कूटनीति किसी काम न आई, उलटे उसे के उद्योगों, विशेषकर इस्पात उद्योग को कोकिंग कोल के प्रतिबंधित होने से काफी नुकसान होने लगा। उधर ऑस्ट्रेलिया को भारत, जापान और अमेरिका में नए और अधिक भरोसेमंद साझेदारों का साथ मिल गया और जिनपिंग अंत में हाथ ही मसोसते रह गए।
जैक मा
लेकिन अगर इस पूरे प्रकरण में यदि किसी व्यक्ति ने शी जिनपिंग की औकात दिखलाई हो, तो वे निस्संदेह चीनी खरबपति जैक मा ही हैं। यदि आप एक ऐसे व्यक्ति से असहज होते हैं, जिसके पास बेहिसाब संपत्ति हैं, जो उसने कठिन परिश्रम से कमाया हो, तो आपके नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठना स्वाभाविक है।
लेकिन भला जैक मा जैसे व्यक्ति से CCP को क्या दिक्कत होगी? दरअसल, जैक मा के पास अकूत संपत्ति है, और उनकी कुल संपत्ति का मूल्य 50 बिलियन डॉलर से कम नहीं है। वे चीन के तीसरे सबसे अमीर आदमी हैं, और वे चीन में सबसे लोकप्रिय भी हैं। लेकिन जो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से भी अधिक लोकप्रिय हो, उससे भला CCP क्यों नहीं असुरक्षित महसूस करेगी?
इसके अलावा जैक मा जिन उद्योगों में सफल है, वे भी रणनीतिक रूप से चीन के लिए बहुत अहम है। व्यापार हो, ई कॉमर्स हो, मीडिया हो, आप बोलते जाइए और जैक मा का प्रभाव हर जगह है। 2015 में जैक मा ने हाँग काँग में बसे मीडिया पोर्टल साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट को भी खरीद लिया था। अब सोचिए, जब यही आदमी चीन में अपना प्रभाव और बढ़ाता, और वाकई में राजनीति में उतरता, तो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को अकेले ही हराने में वे सक्षम होते।
यही बात चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को फूटी आँख नहीं सुहाई, और उसने जैक मा के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया। यह सब इसलिए हुआ क्योंकि कुछ समय पूर्व जैक मा ने चीन की व्यापार पर नियंत्रण रखने की सड़ी गली मानसिकता पर निशाना साधा और सरकार द्वारा प्रायोजित बैंकों पर साहूकारों की तरह व्यवहार करने का आरोप लगाया।
ऐसे में शी जिनपिंग 2020 में एक ऐसे नेता के तौर पर उभर कर आए हैं, जिनकी मंशा तो ब्रह्मांड पर राज करने की थी, पर उनकी अदूरदर्शिता के कारण वे कहीं भी अब मुंह दिखाने लायक नहीं रहे। चाहे भारत का लद्दाख मोर्चा हो, ऑस्ट्रेलिया का मोर्चा हो, या फिर जैक मा से असहजता, जिनपिंग ने अपनी भद्द ही पिटवाई है।