भारत सरकार ने अपना Economic Survey 2020-21 आज संसद में पेश किया। दो खंडों में छपे इस सर्वे में कई बातों पर विस्तार से चर्चा की गई है। उम्मीद के अनुरूप ही सर्वे का मुख्य बिंदु कोरोना वायरस रहा, जिसे सदी में एक बार आने वाले संकट के रूप में बताया गया है। सर्वे बताता है कि भारत भी अन्य विश्व की तरह ही जीवन की सुरक्षा अथवा आर्थिक संकट में जाने के भय से जूझ रहा था। लॉकडाउन आर्थिक संकट को गहरा देता जबकि बिना उसके कई लोगों की जान जा सकती थी। सर्वे में बताया गया है कि भारत की बड़ी आबादी और जनसंख्या घनत्व गंभीर चुनौती था, लेकिन सरकार ने जीवन और आर्थिक संकट के संघर्ष में एक साम्य वाली नीति अपनाई। सर्वे बताता है कि सरकार की प्राथमिकता जीवन बचाना थी क्योंकि आर्थिक झटके से आज नहीं कल उबरा जा सकता है, किंतु जानमाल की हानि अपूर्णीय क्षति होती।
कोरोना के संदर्भ में सरकार की नीतियों की तथ्यपरक जानकारी के अलावा एक महत्वपूर्ण बात, जो ध्यान आकर्षित करती है वह है कि कैसे विदेशी रेटिंग एजेंसी तथ्यों को दरकिनार करते हुए भारत के विरुद्ध पक्षपात करती हैं। सर्वे ने मूडी जैसी तथाकथित स्वतंत्र रेटिंग एजेंसी द्वारा भारत की आर्थिक शक्ति, कर्ज चुकाने की असीमित क्षमता आदि को नजरअंदाज करते हुए भारत को इन्वेस्टमेंट ग्रेड में नीचे स्थान देने पर ऐसी एजेंसियों की आलोचना की।
सर्वे में कहा गया कि “स्वतंत्र एवं संप्रभु क्रेडिट रेटिंग के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ कि विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को investment grade में बहुत नीचे (BBB-/Baa3) स्थान प्राप्त हुआ हो। अर्थव्यवस्था के आकार और उसी के अनुसार ऋण चुकाने की क्षमता के कारण विश्व की पाँचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हमेशा AAA रेट पाती थी। किंतु चीन और भारत केवल दो ही इस नियम के अपवाद हैं, चीन को 2005 में A-/A2 रेट मिला था और अब भारत को BBB-/Baa3 रेट मिला है। जो मौलिक तत्व, इन संप्रभु क्रेडिट रेटिंग को चलाते हैं, उनके पास इस अपवाद का कोई तार्किक कारण है? इस अध्याय में सर्वे यह महत्वपूर्ण प्रश्न उठाता है और उसका उत्तर भी दृढ़ता के साथ ना में देता है।”
सर्वे में तथ्यपरक तरीके से बताया गया है कि ऐसी एजेंसियों में Emerging Giants के प्रति कैसा पक्षपात होता है। ये एजेंसियां विकसित देशों में स्थित होती हैं और यह नहीं चाहती कि उभरती आर्थिक महाशक्तियों को और अधिक निवेश मिले। केवल आर्थिक मामलों में ही नहीं, हेल्थ सेक्टर से लेकर Social indicators तक सभी मामलों में यही हाल है। पश्चिमी एजेंसियों का यह रवैये सभी जानते हैं, किंतु सर्वे द्वारा तथ्यात्मक रूप से मूडी जैसे संस्थाओं की ऐसे धज्जि उड़ाना नई बात है।
इसके अतिरिक्त सरकार की हेल्थ केयर योजनाओं, आयुष्मान भारत की सफलता के साथ ही आर्थिक पुनरुत्थान के संकेतों की चर्चा भी सर्वे में है। जैसे जैसे आर्थिक गतिविधियां शुरू हो रही हैं, सरकार का रेवेन्यू कलेक्शन भी बढ़ रहा है। अक्टूबर से दिसंबर तक GST कलेक्शन हर महीने 1 लाख करोड़ से अधिक रहा है। सर्वे बताता है कि सरकार की आय बढ़ाने में एक बड़ी भूमिका प्रत्यक्ष कर में किये गए सुधारों की भी रही है।
इतने बड़े पैमाने पर चल रही वैक्सीनेशन की प्रक्रिया यह उम्मीद जगाती है कि जल्द ही होटल, टूरिज्म जैसे सर्विस सेक्टर में भी तेजी आने की संभावना है। बता दें कि कोरोना के कारण सर्विस सेक्टर में होने वाले विदेशी निवेश में भारी कमी आयी है, ऐसे में वैक्सीनेशन के बाद इसमें सुधार की गुंजाइश राहत की खबर है।
इन्हीं सब कारणों से सर्वे में बताया गया है कि भारत की GDP ग्रोथ 11% रहेगी। सरकार अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए बड़े पैमाने पर निवेश कर रही है। इंफ्रास्ट्रक्चर सुधार जैसे अन्य क्षेत्रों में होने वाले निवेश में उम्मीद से भी बड़ी बढ़ोतरी देखी जा सकती है। पिछले वर्ष की तुलना में अक्टूबर माह में 129%, नवम्बर में 249% और दिसंबर में 62% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जो बताता है कि सरकार ने अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए बड़े पैमाने पर धन खर्च किया है।