बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राजनीति कुछ अलग ही स्तर की हो गई है क्योंकि वो प्रत्येक मुद्दे पर बातचीत के दौरान 15 साल पीछे चले जाते हैं। नीतीश की उम्र 2005 से अब तक 15 साल और बढ़ गई है लेकिन उनका दिमाग वहीं अटका है। इंडिगो के स्टेशन मैनेजर की हत्या के मामले में उनका रवैया ये है कि कोई पत्रकार सवाल पूछे तो उस पर भड़क जाते हैं और तो और नीतीश बाबू पर जब अपराध नियंत्रण पर जरूरत से ज्यादा सवाल होने लगते हैं तो वो पुलिस पर जिम्मेदारी छोड़कर पल्ला झाड़ लेते हैं, जबकि पिछले 15 सालों से गृह मंत्रालय नीतीश अपने पास दबाए बैठे हैं।
कुछ ऐसा ही एक बार फिर देखने को मिला जब नीतीश बाबू से इंडिगो के स्टेशन मैनेजर मर्डर केस और राज्य के लॉ एंड ऑर्डर पर सवाल पूछे जाने लगे। नीतीश कुमार ने सवालों का जवाब देने के बजाए पत्रकारों पर ही भड़कना शुरू कर दिया।
उन्होंने सवाल पूछने वाले पत्रकारों से कहा, “आपको जानकारी है तो बताइए। रूपेश के हत्यारे नहीं बचेंगे।” नीतीश बाबू ये तक बताने लगे कि कौन सा पत्रकार किस पार्टी का समर्थक है। उन्होंने सारा ठीकरा डीजीपी और पुलिस पर फोड़ने की कोशिश की और कहा, “आप सारी जानकारी बिहार के डीजीपी से लीजिए।”
नीतीश कुमार या कथित सुशासन बाबू से इस तरह के आक्रमक रवैए की उम्मीद कभी नहीं की जा सकती यद्यपि जब सवाल उनकी ही सरकार से हो रहे हैं। ये एक ऐसा वक्त है जब विपक्ष लगातार अपराध और राज्य की राजनीतिक स्थिति को लेकर उन पर हमलावर है। ऐसे में नीतीश जिस प्रकार से अपनी सरकार की कार्यशैली के सवालों पर भड़क रहे हैं उनसे उनकी छवि दागदार हो रही है, दूसरी ओर वो अपनी नाकामियों का ठीकरा पुलिस और डीजीपी पर फोड़कर पीछे हट रहे हैं।
इसमे कोई शक नहीं है कि 15 साल पहले बिहार की स्थिति बेहद ही बदतर थी जिसे सुधारने में नीतीश की भूमिका अहम है, लेकिन खास बात ये है कि तब से लेकर आज तक बिहार की कानून व्यवस्था में कोई खास सुधार नहीं आया है।
नीतीश का मुकाबला लालू की पिछली सरकारों के साथ ही खुद की सरकार से भी होना चाहिए। नीतीश ने जिस तरह से बीच प्रेस वार्ता के दौरान डीजीपी को फोन लगाकर उनसे बात की, और फटकार लगाई, वो इस बात का साफ संदेश है कि वो अब अपनी जिम्मेदारियों से भागने लगे हैं। इसलिए पुलिस का बहाना बनाकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गृह मंत्रालय अपने ही पास रखा है जिसके चलते वो ही सभी तरह की पुलिसिया नियुक्ति करने के लिए आजाद हैं। ऐसे में डीजीपी से लेकर सामान्य सिपाही तक को तलब करने का अधिकार उनके पास है। इसके बावजूद उनकी स्थिति किसी असहाय मंत्री की लग रही है। जिसे सरकार में कोई पोर्टफोलियो ही न मिला हो।
एक तरफ जब बिहार में राजनीतिक उठा-पटक तेज है तो दूसरी ओर मीडिया के बीच मुख्यमंत्री का रवैया बेहद ही आपत्तिजनक है। वो कानून व्यवस्था के मुद्दे पर पुलिस प्रशासन पर सारा ठीकरा फोड़कर अपनी जिम्मेदारियों से भाग नहीं सकते, लेकिन उनका यही रवैया यदि जारी रहा तो बीजेपी पर नीतीश पर दबाव डालने का जिम्मा बढ़ता ही जाएगा क्योंकि नीतीश को कम सीटों के बावजूद बीजेपी ने काफी ज्यादा सत्ता का सुख दे दिया है।