हाल ही में कृषि निर्यात की देखरेख करने वाली संस्था Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority (APEDA) ने एक साहसिक निर्णय में अपने रेड मीट के मैनुअल से हलाल शब्द को पूरी तरह हटा दिया है। अब इसका अर्थ है कि रेड मीट के निर्यात या आयात के लिए पंजीकरण करने वाली कंपनियों के लिए हलाल सर्टिफिकेट प्राप्त करना अनिवार्य नहीं है।
लेकिन ये समस्या उत्पन्न कैसे हुई? कुछ महीने पहले एक एनजीओ Upword ने APEDA के एक अधिनियम पर सवाल उठाते हुए कहा कि वाणिज्य मंत्रालय के अंतर्गत काम करने वाला APEDA के लिए निर्यात हेतु हलाल मीट को अनिवार्य किया गया है।
अपने अनुसंधान के अनुसार अपवर्ड ने ट्वीट किया, “गोश्त के लिए हर जानवर को हलाल तरह से काटना चाहिए, और यह काम इस्लामिक शरीयत के अनुसार जमीयत उलेमा ए हिन्द द्वारा अधिकृत व्यक्तियों की देखरेख में होना चाहिए।”
APEDA ने इस पे सफाई देते हुए कहा कि ऐसी कोई आवश्यकता केंद्र सरकार ने नहीं पारित की है, पर ये लाल माँस का इम्पोर्ट करने वाले अधिकतर देशों की मांग रही है। लेकिन अब इस ‘आवश्यकता’ को अपने रेड मीट मैनुअल से हटाने के बाद संदेश स्पष्ट है कि अब हलाल के साथ साथ झटका तरह से तैयार किये गए गोश्त को भी एक्सपोर्ट किया जा सकेगा।
अपवर्ड ने इस विषय पे आभार प्रकट करते हुए कहा, “हम आभारी है केंद्र सरकार के, जिन्होंने हमारे सुझाव पे काम किया और ऐसे विवादित अधिनियमों को हटाने का मार्ग प्रशस्त किया। ऐसे निर्णय ही देश में सरकार के प्रति विश्वास कायम करते हैं और हम इसकी भूरी भूरी प्रशंसा करते हैं” –
We thank the govt for taking our constructive criticism seriously and removing portions from the APEDA red meat manual that endorsed the Halal method. Such responsiveness goes a long way in building trust and strengthens the nation. Really appreciate it.
cc: @PiyushGoyalOffc pic.twitter.com/pxtD8oeuRH
— Upword (@upword_) January 4, 2021
मांसाहारी उद्योग में हलाल उत्पादों का एकाधिकार एक गंभीर समस्या बन चुकी है। भारत में कई मीडिया हाउस मार्केट में हलाल खाद्य उद्योग से बढ़ते समस्या को उठा चुके हैं,खासकर मीट उत्पादों के क्षेत्रों में। विश्व भर में मांसाहार के उद्योग पर मुस्लिम समुदाय अपना एकाधिकार जमा रहा है। इस्लाम के अनुयायी केवल हलाल मांस का सेवन करते हैं।
हलाल सर्टिफिकेशन सर्विसेस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड की परिभाषा के अनुसार, ‘केवल अल्लाह के नाम पर बलि चढ़ाये गए पशु ही हलाल कहलाए जाने योग्य हैं।हलाल करने वाला कसाई मुस्लिम होना चाहिए और पशु के हलाल किए जाने से पहले बिस्मिल्लाह और अल्लाहू अकबर का उच्चारण अवश्य होना चाहिए।’
यह सर्वविदित है कि जहां भी मुसलमान बहुसंख्यक हैं वहाँ इस समुदाय के कट्टरपंथी अपनी इच्छा दूसरे धर्मों के अनुयायियों पर थोपते हैं। हलाल खाद्य बाजार पिछले कुछ दशकों में मुस्लिम आबादी के विकास के साथ-साथ यूरोपीय देशों में तेजी से बढ़ा है। यूरोप में सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाले देश फ्रांस में 8 बिलियन डॉलर का हलाल खाद्य बाजार है।
एड्रोइट मार्केट रिसर्च के एक अध्ययन के अनुसार, वैश्विक हलाल बाजार की कीमत 500 बिलियन डॉलर से अधिक है। अगर हम तुलना करे तो यह उत्तर प्रदेश या महाराष्ट्र की जीडीपी से भी अधिक है।
ऐसे में खाद्य प्रसंस्करण कंपनियों को हलाल पद्वति का पालन करने के लिए मजबूर करके, मुस्लिम समुदाय खाद्य उद्योग कि नौकरियों पर एकाधिकार जमा रहा है। फ्रांस के आंतरिक मामलों के मंत्री गेराल्ड ने कुछ महीनों पहले कहा था, “सुपरमार्केट धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए विशिष्ट उत्पादों को बेचकर उन्हें बढ़ावा दे रही हैं।”
ऐसे में APEDA ने जिस प्रकार से इस अधिनियम को हटवाया है, वो अपने आप में इस गुंडई को एक स्पष्ट संदेश है – यह दादागिरी अब भारत में और नहीं चलेगी। यह न सिर्फ केंद्र सरकार की ओर से एक सराहनीय प्रयास है, बल्कि दुनिया के अन्य देशों के लिए भी हलाल व्यवस्था की दादागिरी से निपटने के लिए एक अहम संदेश है।