राम मंदिर का विवाद खत्म होने के बाद अब सभी की निगाहें मथुरा के कृष्ण जन्मस्थान पर टीक गई है। श्रीकृष्ण जन्मभूमि का मामला भी कोर्ट पहुँच चुका है और सुनवाई पर कल फैसला सुनाया जाना था, लेकिन लेट लतीफ़ी की नीति के तहत नहीं कोई फैसला नहीं सुनाया जा सका, साथ ही मस्जिद पक्ष ने आपत्ति जताई है और अब इस मामले में 18 जनवरी को फैसला सुनाया जाएगा।
दैनिक जागरण की रिपोर्ट के अनुसार श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद के मामले में सोमवार को जिला जज की कोर्ट में शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी ने अपनी आपत्ति दर्ज कराई जिसपर अब 18 जनवरी को पुन: सुनवाई होगी।
जिला जज की कोर्ट को कल यानि सोमवार को श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद पर अपना फैसला सुनाना था, जिसे कोर्ट ने बीते गुरुवार को सुरक्षित रख लिया था। सोमवार को जज के फैसला सुनाने से पहले शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी ने आपत्ति दर्ज की, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। अब कोर्ट 18 जनवरी को इस आपत्ति पर सुनवाई करेगी।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की वकील रंजना अग्निहोत्री की ओर से श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले में वाद दायर किया गया है। पिछले दिनों सुनवाई के दौरान शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी ने वाद को चलने लायक न बताते हुए इसे खारिज करने की मांग की थी।
प्रतिवादी पक्ष की दलीलों को सुनने के बाद जिला जज ने इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था और फैसले के लिए 11 जनवरी की तारीख तय की थी।
यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि हिन्दू पक्ष प्रत्येक दिन तथ्यों के साथ बात कर रहा है लेकिन शाही मस्जिद के लोग इस पर कुछ साफ बात नहीं रख पा रहे क्योंकि इनके पास कोई दस्तावेज भी नहीं है।
बता दें कि दायर वाद में वादी रंजना अग्निहोत्री समेत आठ लोगों का कहना है कि शाही मस्जिद ईदगाह श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की जमीन पर बनी है। मथुरा श्रीकृष्ण जन्मस्थान और शाही मस्जिद ईदगाह के विवाद को लेकर 136 साल तक केस चला था। जिसके बाद अगस्त 1968 में महज ढाई रूपये के स्टांप पेपर पर समझौता किया गया। जिस जमीन का समझौता हुआ वह श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की है। ऐसे में समझौता अवैध है और उसे रद कर पूरी 13.37 एकड़ जमीन ट्रस्ट को दी जाए।
इतिहासकारों का मानना है कि इस जगह पर औरंगजेब ने केशवनाथ मंदिर को नष्ट कर दिया था और वहां शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण करा दिया था। 1670 में औरंगजेब ने मंदिर को ध्वस्त करा मूर्तियों को हटवा दिया था। इसके लिए मुगल शासक औरंगजेब ने बकायदा फरमान जारी किया था। मुगल शासन पर कई पुस्तक लिखने वाले यदुनाथ सरकार तथा कई इतिहासकारों ने फरमान के बारे में विस्तार से लिखा है। साल 1935 में इलाहाबाद कोर्ट ने वाराणसी के हिंदू राजा को जमीन के कानूनी अधिकार सौंप दिए थे, जहां आज मस्जिद खड़ी है।
रामनगरी अयोध्या में भगवान श्रीराम मंदिर निर्माण शुरू होने के साथ ही भगवान श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान का मामला कोर्ट पहुंच गया है। स्थिति बिल्कुल राम मंदिर जैसी ही है, ये लोग मामले को धार्मिक बनाकर लेट लतीफी और ढुलमुल नीति अपना रहे है। राम मंदिर पर इसी तरह इन लोगों ने केस फंसाया, कांग्रेस ने कोई ध्यान नहीं दिया, लेकिन मोदी सरकार आने के बाद स्थितियां फास्ट ट्रैक की गति से चलने लगीं। वामपंथियों और बुद्धिजीवियों की बात सुनी नहीं गई जो सबसे ज्यादा ज्ञान देते थे।
ऐसे में अब इस मामले में भी तेजी से सुनवाई हो रही हैं और मुस्लिम पक्ष कुछ नहीं कर पा रहा, क्योंकि सरकार भी विपरीत है और तथाकथित बुद्धिजीवीयों की बात कोई सुन नहीं रहा। इसलिए अब ये लेट लतीफी नहीं चलेगी।