कौन भूल सकता है, राजस्थान का वो सियासी संग्राम जिसमें कांग्रेस के ही सीएम अशोक गहलोत और डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच सत्ता की लड़ाई सार्वजनिक तौर पर सामने आ गई थी। अशोक गहलोत की कुर्सी जाना लगभग तय हो गया था। इस मामले में राहुल गांधी तक अंदरखाने युवा खेमे के सचिन पायलट के सपोर्ट में थे, लेकिन पार्टी अध्यक्षा सोनिया गांधी के चलते अशोक गहलोत की कुर्सी बच गई और सचिन पायलट को राज्य से केन्द्र की राजनीति में आना पड़ा। गहलोत अब सोनिया को उनके उस एहसान को कर्ज चुकाने में जी जान से लगे हैं और पार्टी में सोनिया के खिलाफ बागी हुए नेताओं पर बरस रहे हैं।
काग्रेस में अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर फिर संग्राम शुरु हो चुका है। पार्टी के बागी नेताओं में सबसे मुखर कपिल सिब्बल और आनंद शर्मा जैसे वरिष्ठ लोग हैं, जो लगातार पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र के जरिए चुनाव कराने की मांग पर डटे हुए हैं। पार्टी की वर्किंग कमेटी की बैठक में इन बागी नेताओँ का पहला मुद्दा अध्यक्ष पद का ही होता है। ये नेता अब किसी भी कीमत पर नहीं चाहते कि पार्टी में एक बार फिर गांधी परिवार का ही कोई शख्स अध्यक्ष बने। जबकि दूसरी ओर पार्टी ने अंदरखाने राहुल गांधी जैसे अपरिपक्व नेता को एक बार फिर पार्टी अध्यक्ष बनाने की प्लानिंग कर ली है, जिसके चलते ये बागी नेता बेहद नाराज़ हैं।
हाल ही में जब एक बार फिर वर्किंग कमेटी की बैठक हुई, तो इस बार बागी नेताओं का मोर्चा आनंद शर्मा ने संभाला और पार्टी में लोकतात्रिंक ढंग से चुनाव कराने की मांग की। उन्होंने कहा, “पार्टी में चुनाव कब तक होंगे।” इस एक बयान पर अशोक गहलोत भड़क गए और बोले, “इस समय देश में किसान आंदोलन, महंगाई, अर्थव्यवस्था जैसे कई मुद्दे हैं, क्या पार्टी का इन मुद्दों पर फोकस करना जरूरी नहीं हैं। पार्टी के अध्यक्ष का चुनाव तो बाद में भी हो सकता है।” साफ है कि अशोक गहलोत इस मुद्दे पर उन सभी बागी नेताओं को घेरने लगे हैं जो कि अध्यक्ष पद के चुनाव की वकालत कर रहे हैं।
ऐसा पहली बार नहीं है कि अशोक गहलोत ने बागी नेताओं के खिलाफ इतनी आक्रामक बयानबाजी की हो, इससे पहले भी जब कोई नेता मीडिया में कांग्रेस अध्यक्ष पद के मुद्दे को उठाता था, तो उसे अशोक गहलोत ये कहकर लताड़ देते थे कि पार्टी से जुड़ी बातें पार्टी के फोरम पर होनी चाहिए मीडिया में नहीं। अशोक गहलोत को तो इस दौर में गांधी परिवार का प्रवक्ता भी बताया जा रहा है लेकिन गांधी परिवार के लिए उनके इस प्रेम की वजह कुछ खास ही है।
अशोक गहलोत हमेशा ही पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेताओं में रहे हैं। साल 2018 में जब पार्टी ने सचिन पायलट के नेतृत्व में राजस्थान का विधानसभा चुनाव जीता, तो सोनिया ने गहलोत को अपना सिपहसलार मानते हुए उनकी गुजारिश पर ही राजस्थान का सीएम बना दिया, जिसका विरोध अंदरखाने राहुल गांधी ने भी किया था। इसी तरह जुलाई 2020 में जब सचिन पायलट ने गहलोत से बगावत करने की कोशिश की थी, तो गहलोत की कुर्सी जाना लगभग तय हो गया था। ये माना जाने लगा था कि पार्टी में अब अशोक गहलोत हाशिए पर जा चुके हैं। इस मुश्किल वक्त में सोनिया ने ही अशोक गहलोत का साथ दिया। नतीजा ये कि अशोक गहलोत की कुर्सी बच गई। अशोक गहलोत का उस पूरे प्रकरण के बाद पार्टी में कद पहले से ज्यादा मजबूत हो गया।
सोनिया ने गहलोत की मुख्यमंत्री पद की कुर्सी बचाई थी, इसलिए अब सोनिया के लिए इस मुश्किल घड़ी में गहलोत उनके साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं। अध्यक्ष पद को लेकर सोनिया के खिलाफ उठने वाली हर आवाज को दबाने में अशोक गहलोत जरा भी गुरेज नहीं कर रहे हैं, जो दिखाता है कि असल में वो अब सोनिया के अपने ऊपर लदे सारे कर्ज सूद समेत चुका रहे हैं।