राजधानी दिल्ली की सीमाओँ पर पिछले दो महीनों को से चल रहे तथाकथित किसान आंदोलन का सच अब 26 जनवरी की हिंसक घटना के बाद पूरी तरह सामने आ गया है। इस मुद्दे पर कार्रवाई भी शुरू हो गई है। मोदी सरकार ने पिछले दो महीनों से कई तरह के सबूत मिलने के बावजूद इस मुद्दे पर कोई खास कार्रवाई नहीं कर रही थी, जिसको लेकर आलोचनाओं का बाजार भी गरम हो चला था।
अब 26 जनवरी की घटना के बाद सरकार जिस तरह से किसान आंदोलन के नाम पर दंगा करने वालों पर टूट पड़ी है, वो इस बात की ओर इशारा करता है कि वो तथाकथित किसानों के एजेंडे का पर्दाफाश करने की नीति पर काम कर रही थी और सरकार अब पूरी तरह अपने मकसद मैं कामयाब हो चुकी है।
पिछले दो महीनों से किसानों का आंदोलन दिल्ली की सीमाओं पर जारी था, इसको लेकर सरकार की आलोचना की जा रही थी कि किसान खालिस्तान समर्थकों के साथ बैठकर PM मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को जान से मारने की बात कह रहे थे। ऐसे में केन्द्र सरकार अपने ही समर्थकों की आलोचनाओं के कारण बैकफुट पर थी, लेकिन किसी भी सरकार के लिए ये बहुत मुश्किल होता है कि शांति का चोला ओढ़कर आंदोलन कर रहे तथाकथित किसानों पर कार्रवाई कर दे क्योंकि फिर देश का एक वामपंथी वर्ग इस मुद्दे पर मोदी सरकार को ही क्रूर बताकर उनकी आलोचना कर सकता है।
लेकिन इन तथाकथित किसानों का आंदोलन खुद-ब-खुद एक्सपोज होता चला गया। खालिस्तानी समर्थकों से लेकर पीएम मोदी को मारने की बातें, सभी किसानों के खिलाफ एक माहौल बनाती चली गईं। अमेरिका स्थित अलगाववादी खालिस्तानी संगठन सिख फॉर जस्टिस से पैसों की फंडिग को लेकर प्लानिंग के तहत पहले ही गृह मंत्रालय ने NIA समेत सभी संस्थाओं को एक्टिव कर दिया था।
इस मुद्दे पर 100 के करीब किसानों को NIA ने नोटिस तक दिया था, किसान सरकार से बातचीत तो कर रहे थे लेकिन बातचीत की आड़ में देश के खिलाफ 26 जनवरी को अराजकता फैलाने की प्लानिंग हो रही थी।
किसानों के एक खास वर्ग ने दिल्ली पुलिस के साथ बैठकर बनाए गए सारे नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए देश की शान कहलाने वाले लाल किले पर अपना धार्मिक झंडा लहरा दिया। दिल्ली पुलिस के जवानों के साथ हिंसक घटनाओं को अंजाम देकर आंदोलनकारी किसानों ने अपना असल रंग दिखा दिया है।
किसानों ने दो महीनों से चल रहे आंदोलन के जरिए आम लोगों के बीच अपने प्रति जो सहानुभूति पैदा की थी, वो 12 घंटे में ही हवा हो गई।
इस स्थिति के बाद से किसानों पर लगातार केन्द्र सरकार सख्त कार्रवाई के मोड में आ चुकी है। किसान नेताओं पर एफआईआर से लेकर अराजक तत्वों की गिरफ्तारी सभी ताबड़ तोड़ तरीके से चल रहे हैं। इस मुद्दे पर किसानों का अब कोई समर्थन भी नहीं कर रहा है, क्योंकि लोगों के मन में इन तथाकथित किसानों के प्रति गुस्सा फूट रहा है, जिसकी वजह ये है कि इन लोगों ने राष्ट्रीय पर्व के दिन देश की अस्मिता के साथ खिलवाड़ कर दिया है।
किसान नेता राकेश टिकैत से लेकर अवसरवादी आंदोलनकारी योगेन्द्र यादव, सभी आज दिल्ली पुलिस के रडार पर हैं, जिसके चलते इन तथाकथित किसानों की भी सिट्टी-पिट्टी गुल हो चुकी है।
इसलिए ये कहना गलत नहीं होगा कि किसानों के आंदोलन की सच्चाई सामने आने के बावजूद इस मुद्दे को मोदी सरकार ने बखूबी हैंडल किया है, हालांकि कुछ वाकए अप्रत्याशित भी थे, लेकिन उन्हीं वाकयों ने इन तथाकथित किसानों का पर्दाफाश कर दिया, और अब उन पर किसी भी तरह की कार्रवाई होने से देश का कोई भी वर्ग सरकार के खिलाफ बयानबाजी नहीं कर पाएगा।