देश की राजधानी दिल्ली की लगभग सभी सीमाओं पर चल रहे किसानों के तथाकथित आंदोलन को लेकर एक तरफ जहां केन्द्र और किसानों के बीच बातचीत हो रही है तो दूसरी ओर किसानों के भी अपने अलग-अलग गुट बन गए हैं। कांग्रेस नेताओं से मुलाकात करने को लेकर किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी के खिलाफ किसानों के संयुक्त मोर्चा ने कार्रवाई की है, और एक अनुशासनात्मक कमेटी का गठन किया है। इस मुद्दे पर किसानों के नेता शिवकुमार कक्का के लिए चढूनी ने कहा कि वो एक संघी हैं। ये दोनों ही एक दूसरे को संघी और कांग्रेसी बनाने में जुटे हैं, जो दिखाता है कि अब इनका ये आंदोलन लगभग बंट सा गया है और ये पूर्ण रूप से राजनीतिक हो चला है।
हाल ही में जब करनाल में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के किसान सामरोह में जो उपद्रव हुआ था, तो उसकी पूरी जिम्मेदारी गुरनाम सिंह चढूनी ने ली थी। इसके कुछ दिनों बाद ही इन्हें किसान संयुक्त मोर्चा ने बाहर कर दिया है। साथ ही उनके खिलाफ एक अनुशासनात्मक कमेटी का गठन किया गया है। इसको लेकर किसान नेता शिवकुमार कक्का का कहना है कि गुरनाम सिंह चढूनी पिछले कुछ दिनों से विपक्षी पार्टियों से दिल्ली के मावलंकर हॉल में मुलाकात कर रहे थे और किसानों की बैठक से भी नदारद थे जो कि आपत्तिजनक बात है। उन्होंने इस मामले में दबे शब्दों में चढूनी को कांग्रेसी बता दिया है।
इसके इतर कार्रवाई से गुरनाम सिंह नाराज हैं। उन्होंने शिव कुमार कक्का को आरएसएस का एजेंट करार दे दिया है और कहा कि यह कार्रवाई उनके इशारे पर हुई है। गुरनाम सिंह के आरोप पर कक्का का कहना है कि वो इस मुद्दे को बेवजह राजनीतिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं जबकि वो ऐसा होने ही नहीं देंगे। इन दोनों ही नेताओं और संगठनों के बीच पड़ी फूट के चलते सिंघू बॉर्डर पर किसानों के अलग अलग गुट बन गए हैं, जो कि किसानों के हितों से ज्यादा एक दूसरे को संघी और कांग्रेसी बताने में दिलचस्पी जाहिर कर रहे हैं। शिवकुमार के अलावा किसान मजदूर संघर्ष कमेटी के नेता सतनाम सिंह पन्नू भी नाराज हैं उनका कहना है कि कांग्रेस नेताओं से मुलाकात के जरिए किसानों को काफी धक्का लगा है और किसानों की एकता में भी फूट पड़ी है।
किसानों के गुटों के की बीच खालिस्तानी कनेक्शन तक साबित हो चुका है जिसके बाद यहां के करीब 100 लोगों को एनआईए ने नोटिस भेजा है जिसके ऊपर किसान भड़के हुए हैं। उनका कहना है हम एनआईए के पास नहीं जाएंगे। भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत का कहना है कि वो 2024 तक यहां आंदोलन कर सकते हैं। किसानों के ये इतने सारे गुट और एक दूसरे को संघी-कांग्रेसी कहने की नीति साफ बता रही है कि इन लोगों की भविष्य में राजनीतिक मंशाएं हैं, और इसीलिए अब ये लोग इस मुद्दे पर राजनीतिक बयान दे रहे हैं और किसानों के जरिए अपने लिए राजनीतिक जमीन तैयार कर रहे हैं, जिसका नतीजा गुटबाजी है।