इन दिनों तुर्की की हालत ठीक वैसी ही है, जैसे दक्षिण एशिया में पाकिस्तान की। अर्थव्यवस्था रसातल में है, सत्ता के विरुद्ध विद्रोह दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है, और तो और अब कई देश तुर्की को सबक सिखाने के लिए कमर कस चुके हैं, जिनमें सबसे आगे इज़रायल है।
भले ही बाइडन का अमेरिकी राष्ट्रपति बनना तय हो चुका है, लेकिन इस बात का इज़रायल या उसके समर्थन में आने वाले किसी भी देश पर कोई असर नहीं पड़ने वाला। स्वयं तुर्की को इज़रायल पर कोई भरोसा नहीं है, इस बात के बाद भी कि दोनों देशों के बीच अभी हाल ही में कूटनीतिक संबंध बहाल हुए हैं।
पर तुर्की ने अब ऐसा क्या किया, जिसके पीछे इज़रायल के नेतृत्व में कई देश सामने आए हैं? दरअसल, तुर्की यूरेशियन क्षेत्र में अपने इलाके में एर्दोगन के शासन में गुंडई करने के लिए काफी बदनाम है। यही नही, पूर्वी भूमध्य सागर में भी तुर्की ने वर्चस्व जमाने का प्रयास किया था, यह अलग बात है कि इस अभियान में वह बुरी तरह असफल रहा था। Nagorno Karabakh में तुर्की की भूमिका के बारे में जितना भी कम बोला जाए, उतना ही अच्छा।
लेकिन इसका इज़रायल से क्या कनेक्शन है? और अभी तुर्की की गुंडई से किसी को क्या नुकसान हो सकता है? दरअसल, तुर्की न सिर्फ अपने पड़ोसी देशों के लिए, बल्कि मिडिल ईस्ट में स्थित इस्लामिक जगत के निर्विरोध नेताओं – सऊदी अरब एवं संयुक्त अरब अमीरात के लिए किसी खतरे से कम नहीं है। एर्दोगन किस प्रकार से इस्लामिक जगत के नए ‘खलीफा’ बनना चाहते हैं, इसके बारे में किसी विशेष शोध की आवश्यकता नहीं।
तो इसमें इज़रायल का क्या काम है? दरअसल, पूर्वी भूमध्य सागर में जो ग्रीस के साथ तुर्की ने किया, और जिस प्रकार से तुर्की ने Israel का UAE, बहरीन इत्यादि देशों के साथ हुए Abraham Accords का विरोध किया है, उससे स्पष्ट होता है कि तुर्की को इज़रायल से कितनी घृणा है। स्वयं Israel तुर्की को हल्के में लेने की भूल नहीं कर सकता, और इसके उन्होंने पिछले वर्ष 2020 में ही दे दिए थे।
द टाइम्स के लेख में बताया गया, “मोसाद के अफसर कोहेन का मानना है कि, ईरान अब पहले जैसा खतरनाक नहीं रहा, क्योंकि उसे किसी ना किसी तरीके से नियंत्रित किया जा सकता है। लेकिन तुर्की की कूटनीति अलग है और उसके दांव पेंच ऐसे हैं, कि उसे पकड़ना आसान नहीं है। इसी का फ़ायदा उठाकर वह पूर्वी मेडिटेरेनियन में अपना वर्चस्व जमा रहा है।”
ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि तुर्की की खबर लेने के लिए इज़रायल के नेतृत्व में मिडिल ईस्ट के देश सहित पूर्वी भूमध्य सागर के निकट स्थित देशों ने पहले ही कमर कस ली है, और अब जिस प्रकार से इज़रायल बाइडन की हाँ या न की भी परवाह नहीं कर रहा है, उससे स्पष्ट होता है कि अब तुर्की की खैर नहीं।