लोगों को टीका लगाने से पहले मीडिया को गंभीर पत्रकारिता करने की सबक देने वाले टीके की जरूरत है

वैक्सीन को लेकर की गई नेगटिव पत्रकारिता लोगों कर रही है विचलित

वैक्सीन

वैश्विक महामारी कोरोनावायरस को लेकर भारत ने बेहतरीन लड़ाई लड़ी है और इसे वैक्सीनेशन के जरिए जीत दिलाने का काम भी शुरु हो चुका है। सरकार चारों तरफ वैक्सीन के प्रति सकारात्मक माहौल बनाने की कोशिश कर रही है। इसके बावजूद कुछ मीडिया नेटवर्क्स लगातार ये डेटा दे रहे हैं कि कितने लोग वैक्सीन लगाने से, उसके साधारण साइड इफेक्ट्स झेल चुके हैं। सभी को पता है कि ये एक साधारण सी बात है लेकिन मीडिया नेटवर्क इस मुद्दे पर बेवजह का डर प्रसारित कर रहे हैं। इसलिए इन मीडिया संस्थानों को पहले अपनी पत्रकारिता के स्तर और उसके खतरनाक साइड इफेक्ट्स के बारे सोचना चाहिए जो कि आज के दौर की पहली आवश्यकता है।

एएनआई, जिसे भारत में खबरों की दृष्टि से सबसे विश्वसनीय मीडिया एजेंसी माना जाता है। उसने दिल्ली में पहले दिन के वैक्सीनेशन के प्रोग्राम को लेकर ट्वीट किया कि दिल्ली में वैक्सीन प्रोग्राम के पहले दिन 51 लोगों में वैक्सीन लगाने के बाद साइड इफेक्ट्स देखे गए, और फिर वही डेटा पीटीआई ने भी ट्वीट किया। जिसके बाद इंडिया टुडे  ने एएनआई और पीटीआई के हवाले से इस पर पूरी एक रिपोर्ट पब्लिश कर दी कि कहां, कौन इस वैक्सीन के दिए जाने के बाद साइड इफेक्ट्स का सामना कर रहा है। अब सवाल ये उठता है कि क्या ये रिपोर्ट या एक-एक साइड इफेक्ट की जानकारी जरूरी है… यकीनन बिल्कुल नहीं, क्योंकि ये एक साधारण सी बात है।

भारत में पास हुई दोनों कोरोनावायरस की वैक्सीन को लेकर ये साफ कहा गया है कि  कोवीशील्ड और को-वैक्सीन पूरी तरह से सुरक्षित हैं। इनमें किसी भी तरह के खतरनाक साइड इफेक्ट्स नहीं होंगे। सरकार ने ये भी बताया है कि वैक्सीन से हल्का बुखार, खांसी, जुकाम हो सकता है लेकिन वो कुछ घंटों या एक से दो दिन में ठीक हो जाएगा। इसके इतर सभी तरह की सकारात्मक जानकारी होने के बावजूद ये नकारात्मक डेटा काफी धड़ल्ले से जारी हो रहा है।

वैक्सीन को लेकर काफी तरह की चर्चाएं पहले ही हो चुकी हैं जिनमें वैक्सीन से नपुंसकता आने की बात लोगों की डर का विषय है। इस मुद्दे पर लगातार राजनीतिक बयानबाजी भी जारी है। जिससे लोगों के मन में तमाम तरह के सवाल और भ्रम पैदा हो रहे हैं। सरकार का प्रचार तंत्र इस पूरे एजेंडे की काट भी कर रहा है। इसके बावजूद इस मुद्दे पर एक-एक साइड इफेक्ट की बेजा रिपोर्ट काफी हास्यासपद के साथ ही चिंताजनक भी है।

सवाल यही है कि वैक्सीन के साइड इफेक्ट के एक साधारण केस पर भी लंबी-संबी रिपोर्ट क्यों प्रसारित या प्रकाशित की जा रही हैं, जो जनता पहले ही राजनेताओं की बेवकूफियत से वैक्सीन को लेकर संशय की स्थिति में हैं, उसे इस तरह की रिपोर्ट आखिर दिखाई क्यों जा रही है, जबकि इस पर एक सकारात्मक खबर दिखाकर लोगों को इन साधारण से साइड इफेक्ट्स से न डरने की बात प्रसारित करनी चाहिए।

मेन स्ट्रीम मीडिया ने तो भारत में एजेंडा चलाने की ठान ही रखी है, लेकिन जिस तरह से एएनआई और पीटीआई जैसी विश्वसनीय न्यूज एजेंसियां भी अब इन नकारात्मक खबरों को ज्यादा महत्व दे रही हैं तो इन संस्थानों के संपादकों को कोरोना की वैक्सीन लगवाने से पहले अपनी पत्रकारिता की शैली को हुई एजेंडा चलाने की बीमारी की वैक्सीन लगवानी चाहिए, क्योंकि उनका ये रवैया कोरोनावायरस से भी अधिक खतरनाक है।

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