जैसे जैसे दिन बढ़ रहे हैं, ‘किसान आंदोलन’ की स्थिति भी स्पष्ट होती जा रही है। अब धीरे धीरे इस प्रदर्शन से असली किसान दूरी बना रहे हैं, जबकि किसान के भेष में आए अराजकतावादी किसी बात का समाधान नहीं चाहते। अब कई किसान कह रहे हैं कि उन्हें सरकार के संशोधनों से कोई समस्या नहीं है, परंतु कुछ लोग चाहते ही नहीं कि समाधान हो, जो दो उदाहरणों से स्पष्ट होता है।
पहला उदाहरण है भारतीय किसान यूनियन का, जिसके अनेक गुट इस आंदोलन में सक्रिय हैं। अब भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत ने कहा है कि वे सरकार से समाधान के लिए बात करने को तैयार है, और इसके लिए रास्ते में रोड़ा डालने वालों से भी सख्ती से निपटा जाएगा।
टिकैत के अनुसार, “हम सरकार से समाधान को तैयार हैं, लेकिन समिति के 40 लोगों में कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो समाधान के बजाय मामले को आगे बढ़ा रहे हैं। ऐसे लोगों को समझाया जाएगा या बाहर किया जाएगा। किसान अपनी समस्या का समाधान चाहते हैं और सरकार उनकी बातों को सुन भी रही है, उसके बाद भी कुछ लोगों से सहमति पूरी नहीं बन पा रही है”।
दरअसल, नरेश टिकैत यूपी गेट आंदोलन स्थल पर आयोजित अखिल भारतीय दंगल में बतौर मुख्य अतिथि पहुंचे थे। उन्होंने मीडिया से अपनी बातचीत में आगे ये भी बताया कि, “किसान समाधान चाहता है। हमने इसके लिए 40 लोगों को सरकार से वार्ता के लिए चुना है। पर हमें पता लगा है कि इनमें से कुछ लोग ऐसे हैं, जो मामले का हल नहीं चाहते ऐसे लोगों को चिन्हित कर या तो समझाया जाएगा या बाहर किया जाएगा। वैसे हमें सभी 40 लोगों पर भरोसा है, लेकिन जब वार्ता होती है तो 38 हां करते हैं तो दो ना में गर्दन हिलाते हैं ऐसे समाधान मुमकिन नहीं है”।
अब इससे स्पष्ट होता है कि यदि पंजाब के कुछ हिस्सों और दिल्ली से सटे प्रदर्शन स्थलों को छोड़ दें, तो कोई भी अब ‘किसान आंदोलन’ को खुले दिल से समर्थन नहीं देना चाहता, क्योंकि उन्हें भी पता है कि इस आंदोलन के पीछे कौन कौन से लोग शामिल है। एक और उदाहरण भी इस बात को स्पष्ट करता है कि अब ‘किसान आंदोलन’ किस तरह बस खींचा जा रहा है।
हाल ही में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर हरियाणा के किसानों से बातचीत करने के लिए हरियाणा के एक गाँव में महापंचायत कराने पहुंचे थे। लेकिन वे पहुंचते, उससे पहले ही कई अराजकतावादी रैली स्थल पर आकर घेराव करने का प्रयास करने लगे। जब कृषि कानून के पक्ष में बैठे किसानों ने इसका विरोध किया, तो कानून समर्थक किसानों समेत पुलिसकर्मियों पर उपद्रवियों ने पत्थरबाजी शुरू कर दी, जिसके जवाब में पुलिसवालों को आँसू गैस के गोले दागने और वॉटर कैनन चलाने पर विवश होना पड़ा।
इससे स्पष्ट होता है कि किसान आंदोलन के पीछे का उद्देश्य केवल अराजकता के बल पर केंद्र सरकार को डरा धमकाकर कानून वापस लेने पर विवश करना था। परंतु अब अराजकतावादियों को केंद्र सरकार ने स्पष्ट कर दिया है – सुप्रीम कोर्ट में जाकर जो करना है कीजिए, परंतु सरकार कानून वापिस नहीं लेगी। इसके अलावा अब अधिकतर किसान चाहते हैं कि समस्या का समाधान निकले, न कि आंदोलन को जरूरत से ज्यादा खींचा जाए। ऐसे में फेक किसानों को अब खुद समस्या का समाधान चाहने वाले किसान ही निकल फेकेंगे।