आखिर क्यों औपनिवेशिक मानसिकता वाले कुछ लोगों को भारत की सफलता नहीं पचती

ये लोग भारत की सफलता में सबसे बड़े बाधक हैं

भारत के प्रति हमेशा ही एक हीन भावना रही है और इसे पैदा भी भारतीय ही करते हैं जिसका हालिया उदाहरण कोरोनावायरस की स्वदेशी वैक्सीन का मुद्दा है। ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन कोवीशील्ड को लेकर कोई बहस नहीं हो रही है, लेकिन कुछ राजनीतिक दल भारत बायोटेक द्वारा बनाई गई स्वदेशी कोरोनावायरस की वैक्सीन “को-वैक्सीन” के हाथ धोकर पीछे पड़ गए है, जिसके चलते अब कंपनी के सीईओ कृष्णा एला ने सवाल उठाने वालों को लताड़ दिया है कि भारतीयों की मेहनत और क्षमता को कम क्यों समझा जाता है। उन्होंने वैक्सीन को पूर्णतः कारगर बताया है।

हाल ही में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने को-वैक्सीन को बीजेपी से जोड़ते हुए उसे ‘बीजेपी की वैक्सीन’ बताया था। वहीं कांग्रेस के प्रवक्ताओं समेत शशि थरूर स्तर तक के नेताओं ने को-वैक्सीन के तीसरे फेज के ट्रायल को संदिग्ध बताया है जिससे भ्रम फैल रहा है। उन्होंने कहा, आपका कहना कि इसके दुष्परिणाम नहीं होंगे, सुखदायक है, लेकिन आप कह रहे हैं कि इसके काम करने की संभावना है। ये दूसरी वैक्सीन जितनी कारगर होगी’, ये आश्वासन नहीं देता है।कांग्रेस नेता शशि थरूर ने आगे लिखा कि संभावना तभी निश्चित हो सकती है, जब क्लिनिकल ट्रायल का फेज़ तीन भी हो”

सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त होने के बावजूद इस वैक्सीन पर उठ रहे सवालों से वैक्सीन निर्माता कंपनी भारत बायोटेक के सीईओ कृष्णा एला काफी आहत हैं। उन्होंने इस मुद्दे फर काफी सख्त प्रतिक्रियाएं देते हुए कहा, लोग भारतीय कंपनियों के बारे में कई तरह की बातें कर रहे हैं। मुझे नहीं पता दुनिया में हर कोई भारतीय कंपनियों को क्यों निशाना बनाता है। कोई ब्रिटेन के ट्रायल्स पर सवाल क्यों नहीं उठाता? क्योंकि भारतीय ट्रायल्स पर सवाल उठाना आसान है।”

कंपनी की क्षमता भारत के प्रभाव पर शक करने वाले लोगों पर एला बहुत ज्यादा ही भड़क गए और बाद में उन्होंने इसके लिए क्षमा भी मांगी। उन्होंने विश्वसनीयता और डेटा के सवालों को लेकर कहा, कई लोग कह रहे हैं कि हमने डेटा में पारदर्शिता नहीं दिखाई है, लेकिन उन लोगों में धैर्य होना चाहिए। उन्हें हमारे द्वारा प्रकशित दुनियाभर के कई जर्नल्स में छपे 70 से अधिक लेखों को पढ़ना चाहिए। हमें इस बात का गर्व है कि दुनिया में BSL-3 उत्पादन की सुविधा सिर्फ हमारे पास है। यह अमेरिका के पास भी नहीं है. हम दुनिया के किसी भी हिस्से में हेल्थ इमरजेंसी की स्थिति में मदद करने को तैयार हैं।”

एला ने भारत बायोटेक को इंटरनेशनल कंपनी साबित करते हुए कहा, कोवैक्सीन किसी भी मामले में फाइजर की वैक्सीन से कम नहीं है। भारत बायोटेक एकमात्र फर्म है जिसने कोविड वैक्सीन प्रक्रिया पर पांच लेख प्रकाशित किए हैं। भारत के अलावा 12 से अधिक देशों में कोवैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल किए गए हैं। पाकिस्तान, नेपाल में अभी ट्रायल चल रहे हैं। खास बात है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डाॅ. हर्षवर्धन ने पहले ही इन सवालों क़ बेबुनियाद करार देते हुए कहा था, कोवैक्सीन को सभी जरूरी जांच के बाद ही इजाजत दी गई है और इस दौरान सभी मानकों को पूरा किया गया है जो दुनिया में मान्य हैं।”

वहीं, एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने भी इस पर फिजूल बयानबाजी को गलत बताया है। उन्होंने कहा, आपातकालीन स्थिति में जब मामलों में अचानक वृद्धि होती है और हमें टीकाकरण करने की आवश्यकता होती है, तो भारत बायोटेक वैक्सीन का उपयोग किया जाएगा। इसका उपयोग एक बैकअप के रूप में भी किया जा सकता है।” उन्होंने अपनी बातों में साफ कहा है कि वैक्सीन के मामले में बेबुनियाद सवाल नहीं होने चाहिए बल्कि उसके इस्तेमाल और डेटा विश्लेषण के आधार पर ही इसे आपातकालीन इस्तेमाल करने की मंजूरी मिली भी है। वहीं DCGI निदेशक वीजी सोमानी ने कहा, यदि सुरक्षा से जुड़ा थोड़ा भी संशय होता तो हम ऐसी किसी भी चीज को मंजूरी नहीं देते। ये वैक्सीन 100 फीसदी सुरक्षित हैं। हल्के बुखार, दर्द और एलर्जी जैसे कुछ दुष्प्रभाव हर वैक्सीन के लिए आम हैं। वैक्सीन से लोग नपुंसक हो सकते हैं, यह दावा पूरी तरह से बकवास है।”

वैक्सीन को लेकर बेहूदा सवाल उठाने पर किसी भी वैज्ञानिक या डाक्टर का भड़कना लाज़मी सी बात है। एला के साथ भी यही हुआ है। ये सवाल बिल्कुल सही है कि भारतीय वैक्सीन को इतने शक की नजरों से क्यों देखा जा रहा है। इसकी वजह यही है कि भारत के संकुचित सोच रखने वाले नेता हमेशा वैश्विक स्तर पर दबे-कुचले बने रहना चाहते हैं। तभी तो एक आस्ट्रेलिया से पढ़कर आए नेता जी (अखिलेश यादव) वैक्सीन को सत्ताधारी पार्टी (बीजेपी) से जोड़ने का साहस कर पाते हैं और उनके विधायक (आशुतोष सिन्हा) उसे नपुंसकता की दवा बता देते हैं। हालांकि कि उनके ही चाचा (शिवपाल सिंह) और पढ़ी लिखी बहू (अपर्णा यादव) उनकी बातों को गलत बता देते हैं, क्योंकि भारत ओर यहां के वैज्ञानिक समेत डॉक्टर्स अब किसी भी संपन्न देश से कम नहीं हैं।

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