पश्चिम बंगाल में BJP का रौद्र रूप देखकर तेलंगाना में KCR थरथरा रहे हैं

KCR

भारत की राजनीति में जब चुनाव का दौर आता है तो कई तरह की घटनाएँ होती है। किसी का चुनावी सफ़र आसमान छूने वाला होता है तो किसी का चुनावी सफ़र समाप्त होने वाला। पश्चिम बंगाल का चुनाव भी कई समीकरण बदलेगा। कुछ क्षेत्रीय पार्टियाँ और उसके नेता अब इसी उम्मीद में बैठी है कि पश्चिम बंगाल उनके लिए खुशखबरी लेकर आये जिससे वे अपनी महत्वकांक्षाओं को पूरा करे। तेलंगाना के CM KCR भी इसी उम्मीद बैठे हैं। परन्तु जिस तरह से पश्चिम बंगाल के परिणाम आने की उम्मीद दिखाई दे रही है उससे न सिर्फ KCR के सपनों पर पानी फिरेगा बल्कि उनके अपने राज्य की सत्ता भी जा सकती है।

किसी भी क्षेत्रीय नेता या पार्टी का एक ही सपना होता है कि वह राष्ट्रीय स्तर पर अपनी चुनावी पहचान हासिल करे। KCR भी टीआरएस के लिए यही चाहते हैं। रिपोर्ट के अनुसार KCR की राष्ट्रीय राजनीति में अगली चाल विधानसभा चुनावों के नतीजों तक रोकने का फैसला किया है। अगर भाजपा पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल में अपने दम पर या गठबंधन में सत्ता में आती है, तो राव राष्ट्रीय राजनीति पर अपनी योजनाओं को छोड़ देंगे और तेलंगाना में अपने किले को मजबूत करने पर ध्यान देंगे।

यदि गैर-भाजपा दल विजयी होते हैं, तो राव 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले गैर-कांग्रेस, गैर-भाजपा क्षेत्रीय दलों को एक साथ लाने का एक और प्रयास करना चाहते हैं।

पश्चिम बंगाल में बदलता राजनीतिक परिदृश्य हैदराबाद में केसीआर के रातों की नींद हराम कर चुका है। केसीआर भी पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी जैसे ही है जो भाजपा और कांग्रेस दोनों से दुरी बना कर रखते हैं, परन्तु अब जिस तरह से बीजेपी पश्चिम बंगाल में माहौल बदल रही है उससे तेलंगाना के सीएम केसीआर ने राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखने के लिए अपनी योजनाओं को तब तक रोक दिया है जब तक कि पश्चिम बंगाल चुनाव के नतीजे नहीं आ जाते।

डेक्कन क्रॉनिकल की रिपोर्ट के अनुसार टीआरएस अध्यक्ष और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने राष्ट्रीय राजनीति में आने के अपने अगले कदम का फैसला करने से पहले पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल में आगामी विधानसभा चुनावों के नतीजों तक इंतजार करने का फैसला किया है।

बताया जा रहा है कि परिणाम के आधार पर, केसीआर तय करेंगे कि उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में उतरना चाहिए या नहीं। ऐसा लगता है कि भाजपा की एक शानदार जीत संभवत: केसीआर को तेलंगाना में रहने और 2023 के तेलंगाना चुनावों में अपनी कुर्सी बचाने के लिए किले बंदी पर मजबूर कर देगा क्योंकि ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनावों में जिस तरह से भाजपा ने प्रदर्शन किया उसे उनके माथे पर बल जरुर पड़ा होगा।

यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि केसीआर को दिल्ली में TRS के नए कार्यालय के लिए आधारशिला रखना है, जिसके लिए केंद्र ने अक्टूबर 2020 में भूमि  आवंटित किया था। एचएम शाह ने GHMC चुनावों के बाद जब KCR पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से मिलने पहुंचे थे तब भी उन्होंने इसकी आधारशिला नहीं रखी थी। यह उनके बीजेपी से डर को ही दिखाता है।

जिस तरह से बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में अभिषेक बनर्जी कार्ड खेला है और जिस तरह से भाई-भतीजावाद के मुद्दे पर टीएमसी के अन्दर ही फुट डाल दी है उससे KCR भी सहम चुके हैं। हाल ही में उन्होंने अपने बेटे केटी रामाराव को अपने बाद तेलंगाना सीएम की कुर्सी पर बैठने के फैसले को बदलने पर मजबूर होना पड़ा।

हालांकि, कुछ साल पहले से पीएम की कुर्सी का सपना देख रहे केसीआर को होश आया कि अपने बेटे को मुख्यमंत्री बनाकर, वह पश्चिम बंगाल की तरह ही भाजपा को एक सुनहरा अवसर दे देंगे। इसलिए उन्हें अपने फैसले को बदलने पर मजबूर होना पड़ा।

KCR मार्च 2018 से ही राष्ट्रीय राजनीति में अपनी पहचान बनाने के लिए उतावले हैं। उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान भाजपा और कांग्रेस के खिलाफ एक संघीय मोर्चा बनाने की घोषणा की थी। लेकिन उन्हें उस समय भी अपनी योजनाओं को रोकना पड़ा।

केसीआर की प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षाओं को 2019 के आम चुनाव में मोदी-शाह ने कुचल दिया  जब बीजेपी न केवल अधिक से अधिक सीटों के साथ संसद में आई, बल्कि तेलंगाना में चार सीटों (17 में से) के साथ  लगभग 20 प्रतिशत वोट भी जीता।

 

यही नहीं बीजेपी ने ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम (जीएचएमसी) चुनाव में असाधारण प्रदर्शन किया और टीआरएस पिछले चुनाव में 99 सीटों की तुलना में केवल 56 सीटों पर ही सिमट गई थी, जबकि बीजेपी ने अपनी संख्या चार से 48 सीटों पर पहुंचा दी।

केसीआर जानते हैं कि उनकी स्थिति बंगाल में ममता और टीएमसी के समान है। दोनों क्षेत्रीय क्षत्रपों को भी AIMIM का भी मुकाबला करना होगा जो अल्पसंख्यक वोटों के एक बड़े हिस्से को अपने पक्ष में करने की क्षमता रखते हैं। ममता बनर्जी के हार का मतलब केसीआर और टीआरएस के लिए भी एक सन्देश होगा कि अब तेलंगाना की कुर्सी उनके हाथ से निकलने वाली है। शायद यही वजह है कि उन्होंने अपने भविष्य की प्लानिंग को पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के परिणामों के बाद करने का फैसला किया है।

 

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