अमेरिका में सत्ता बदलने के बाद जब से बाइडन राष्ट्रपति पद पर बैठे हैं तब से विश्व के जिओ पॉलिटिक्स में नए परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं। अब ऐसा लगने लगा है कि वह जल्द ही ईरान के साथ एक बार फिर से परमाणु समझौता लागू हो जायेगा जिसे ट्रंप ने वर्ष 2018 में तोड़ दिया था। अगर अमेरिका ऐसा करता हैं तो इसके कई घातक परिणाम होंगे, जिसमें से सबसे पहला है इजरायल का अमेरिका से नाराजगी। शुरू से इस परमाणु समझौते के खिलाफ रहने वाले इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने अब बाइडन प्रशासन को एक कड़ा सन्देश भेजा है कि अगर अमेरिका ने ईरान के साथ परमाणु समझौते को आगे बढ़ाया तो इजरायल ईरान के खिलाफ मिलिट्री एक्शन की तैयारी शुरू कर सकता है।
दरअसल, इजरायल के सैन्य प्रमुख Lt-Gen. Aviv Kochavi ने सोमवार को एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि अमेरिका का ईरान के साथ परमाणु समझौते पर लौटना एक गलती होगी और डील होने की स्थिति में सैन्य कार्रवाई विकल्प होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि, “अगर 2015 में हुआ डील, अभी भी जारी रहता तो ईरान अब तक परमाणु बम प्राप्त कर चुका होता था, क्योंकि इस सौदे में इसे रोकने के लिए उपाय शामिल नहीं थे।”
Kochavi ने चेतावनी दी कि अगर 2015 के सौदे में वापसी होती है चाहे वो एक कुछ सुधार के साथ ही क्यों न हो, वह एक रणनीतिक गलती होगी।
उन्होंने कहा, ‘‘ऑपरेशनली यह समझौता ईरान को बड़ी मात्रा में यूरेनियम के भंडार को बढ़ाने और सेंट्रीफ्यूज कर हथियार क्षमताओं को विकसित करने तथा परमाणु बम बनाने की दौड़ में सक्षम करेगा।” यही नहीं रणनीतिक स्तर पर, उन्होंने बताया कि जेसीपीओए में वापसी इजरायल के लिए “खतरे” को बढाने के साथ एक क्षेत्रीय परमाणु दौड़ को बढ़ावा देगा। इसलिए, उन्होंने कहा, ‘‘वर्तमान परमाणु डील के जैसा कोई भी डील बुरा है और हम इसे अनुमति नहीं दे सकते।”
Kochavi ने स्पष्ट कहा कि, “अमेरिका के प्रशासन में परिवर्तन के साथ, ईरानियों ने कहा है कि वे पिछले डील पर लौटना चाहते हैं। मैं अपने सभी सहयोगियों को अपनी स्थिति स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि 2015 के परमाणु समझौते पर दोबारा लौटना या कुछ सुधारों के साथ उसी प्रकार के डील पर लौटना एक गलती होगी है। ”
जिस तरह से उन्होंने अमेरिका के रुख के खिलाफ जा कर एक सार्वजानिक मंच से यह बयान दिया है उसे देखते हुए यह संभावना नहीं है कि Kochavi प्रधानमंत्री कार्यालय से अनुमोदन प्राप्त किए बिना ऐसी टिप्पणी करेंगे।
इसमें कोई संदेह नहीं है नेतन्याहू शुरू से ही इस परमाणु सौदे के खिलाफ पैरवी कर चुके हैं। यही नहीं, उन्होंने सफलतापूर्वक राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को इस सौदे से पीछे हटने के लिए प्रोत्साहित किया था। तब नेतन्याहू ने कांग्रेस में कहा था: “हमें बताया गया है कि बुरे डील से बेहतर नो डील होता है। खैर, यह एक बुरा सौदा है। यह बहुत बुरा सौदा है। हम इसके बिना बेहतर हैं।”
ऐसे में अब भी यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह नेतान्याहू हैं जो Kochavi के माध्यम से अमेरिका को एक सन्देश देने की कोशिश कर रहे हैं।
इसका यह भी मतलब है कि ईरान के मुद्दे पर शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों और नेतन्याहू का विचार एक ही है। दोनों जेसीपीओए को गहराई से दोषपूर्ण मानते हैं और ऐसे में अमेरिका को एक बार फिर से इस परमाणु डील के ऊपर विचार करना चाहिए।
ओबामा द्वारा शुरू किये गए इस सौदे के लागू होने से इजरायल खुश तो नहीं था लेकिन अब एक बार फिर से बाइडन प्रशासन उसे लागू कर इजरायल को नाराज करने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है। इजरायल को यह बात पता है कि अगर ईरान एक बार फिर से मजबूत होता है तो यह इजरायल के लिए ही घातक साबित होगा।
ऐसा प्रतीत होता है, कि Kochavi सभी के लिए यानि अमेरिका के नए प्रशासन, के साथ यूरोपीय, ईरानी और पश्चिमी एशिया के देशों को यह स्पष्ट करना चाहते थे कि पिछली बार की तरह इस बार ईरान में सुरक्षा प्रतिष्ठान और नेतन्याहू के बीच Iran के मुद्दे को ले कर असहमति नहीं है।
यानि इस बार का इजरायल का शीर्ष सैन्य महकमा परमाणु समझौते के मुद्दे पर पूरी तरह से नेतन्याहू के साथ है।
Kochavi की टिप्पणियों को बाइडन प्रशासन के लिए एक चुनौती के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि, एक कड़े सन्देश के रूप में देखा जाना चाहिए कि अगर अमेरिका एक बार फिर से परमाणु डील के साथ आगे बढ़ता है तो यह इजरायल के साथ-साथ विश्व शांति के लिए घातक साबित होगा।