जो बाइडन चीन के खिलाफ एक्शन न ले पाने की अपनी अक्षमता को छुपाने के लिए छोटे देश जैसे म्यांमार के खिलाफ प्रतिबन्ध लगाकर अपनी ताकत दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। म्यांमार में तख्तापलट के बाद जो बाइडन, की अमेरिका की सरकार ने गुरुवार को म्यांमार से लगभग $ 42.5 मिलियन की सहायता को वापस लेने का आदेश दिया।
हालाँकि, भले ही जो बाइडन के नेतृत्व में अमेरिका विनाशकारी विदेश नीति की ओर बढ़ रहा है जिससे म्यांमार सदा के लिए चीन की गोद में जा सकता है, भारत, जापान और रूस एक संयुक्त प्रयास कर रहे है कि जिससे अमेरिका का यह प्रतिबंध म्यांमार को चीन की गोद में स्थायी रूप से नहीं बैठने देगा।
स्पष्ट है कि अमेरिका म्यांमार के ऊपर अधिक प्रतिबन्ध के प्रभाव को समझने में नाकाम रहा है, वही भारत, रूस और जापान ने स्थिति को सही ढंग से समझा है और इन मुद्दों पर विचार कर रहे हैं।
एक तरफ भारत Myanmar के साथ अपने संपर्क और द्विपक्षीय संबंधों को जारी रख रहा है, तो वहीं रूस म्यांमार की सेना के लिए प्रमुख हथियार आपूर्तिकर्ता के रूप में सामने आया है और जापान भी Myanmar में होने वाली घटनाओं पर नजर रखते हुए म्यांमार कि सेना से संबंध बनाये हुए है और गिरफ्तार किये गए नेताओं को छुड़ाने की बात कर रहा है।
बता दें कि व्हाइट हाउस ने अपने एक वक्तव्य में कहा, ” कार्रवाइयों के अनुसार, यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएआईडी) Myanmar सरकार को आर्थिक नीति में सुधार के लिए 42.4 मिलियन अमरीकी डालर की सहायता को पुनर्निर्देशित करेगी, जो म्यांमार सरकार को वहां के नागरिक समाज और निजी क्षेत्र को मजबूत करने के लिए दिए जाते हैं।”
दूसरी ओर, भारत एक विचारशील पड़ोसी होने के नाते, म्यांमार को चीनी प्रभाव से दूर रखने के लिए वहां सेना के साथ संबंध नहीं तोड़ रहा है।
हालांकि, बहुत लंबे समय तक चीन Myanmar का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता रहा है। हथियार सेना के लिए आपूर्ति करनी हो या अलगाववादी समूहों और विद्रोहियों के लिए चीन ने दोनों को हथियारों की आपूर्ति की। अब रूस ने चीन के स्थान पर म्यांमार सेना के लिए हथियारों आपूर्ति करने का फैसला लिया है।
इस प्रकार से देखा जाये तो भारत और रूस म्यांमार के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं। साथ ही में जापान की समझ भी Myanmar के अलग थलग पड़ने की स्थिति में चीन के प्रभुत्व को कम करने में मददगार होगी।
एक तरफ अमेरिका ने म्यांमार पर प्रतिबंधों की झड़ी लगा कर उसे अलग थलग करने की कोशिश की है तो वहीँ, जापान ने आंग सान सू की और अन्य बंदियों को मुक्त करने और लोकतंत्र की ओर लौटने के लिए म्यांमार के सशस्त्र बलों से बातचीत के प्रयासों को आगे बढ़ा रहा है।
इसी तरह का दृष्टिकोण भारत सरकार द्वारा भी पालन किया जा रहा है वहीं रूसी सरकार ने म्यांमार में घटनाओं की निंदा करने वाले एक प्रस्ताव को वीटो कर दिया। यानि ये देश Myanmar को भू राजनीतिक जोखिम में अलग-थलग करने के परिणाम को समझते हैं जिसके बारे में बाइडन प्रशासन अनजान है।
इस मामले पर प्रकाश डालते हुए टोक्यो में निप्पॉन फाउंडेशन के अध्यक्ष Yohei Sasakawa, ने कहा, “यदि अमेरिका तथा अन्य देश म्यांमार पर प्रतिबंध लगाते हैं, तो उससे न केवल चीन का दबदबा बढ़ेगा बल्कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण सुरक्षा बेस को भी नुकसान होगा।”
यानि अब म्यांमार भारत के साथ निरंतर सहयोग, रूस के रूप में प्रमुख हथियार आपूर्तिकर्ता, जापान का म्यांमार को अपने साथ रखने के प्रयास से अमेरिका के प्रतिबंधों से होने वाले किसी भी नुकसान का मुकाबला कर सकेगा। इससे Myanmar को चीनी चंगुल से भी दूर रखा जा सकेगा।