चिराग तले अंधेरा का सबसे बेजोड़ उदाहरण है कांग्रेस! खुद तो सरकार के विरुद्ध विभिन्न बातों को लेकर विरोध प्रदर्शन करती है, देश में अराजकता को बढ़ावा देती है, परंतु अपने ही राज्यों में इन समस्याओं पर आँखें मूँदी बैठे रहती है। इन दिनों कांग्रेस पेट्रोल के बढ़ते दामों पर देश में कई जगह प्रदर्शन कर रही है, परंतु अपने ही राज्य में इनके आसमान छूते दामों पर इन्हें सांप सूंघ जाता है।
सोनिया गांधी और राहुल गांधी दोनों ने ही भाजपा की सरकार के विरुद्ध पेट्रोल के दाम को अनवरत बढ़ाने का आरोप लगाया। सोनिया गांधी के अनुसार, “लोगों की इच्छाओं का दमन करते हुए सरकार दिन प्रतिदिन पेट्रोल के दाम बढ़ा रही है। सरकार जनता की मेहनत की कमाई हड़पने में लगी हुई है, और यह कांग्रेस नहीं सहेगी”।
वहीं, राहुल गांधी ने कहा कि जब तक सरकार पेट्रोल के दाम को बढ़ाने पर रोक नहीं लगाती, तब तक कांग्रेस देशव्यापी प्रदर्शन करती रहेगी। इसके अलावा महाराष्ट्र, राजस्थान और कर्नाटक में स्थानीय कांग्रेस नेताओं ने विभिन्न प्रकार की रैलियां भी निकाली, और पेट्रोल के बढ़ते दामों के प्रति अपना विरोध दिया।
लेकिन अपने विरोध प्रदर्शन में कांग्रेस ये भूल जाती है कि वास्तविकता इससे कोसों दूर है। अब पेट्रोल के दामों पर केंद्र सरकार का कोई विशेष नियंत्रण नहीं है। अब पेट्रोल दो चीजों पर निर्भर करता है – वैश्विक तेल आपूर्ति पर और विभिन्न राज्यों द्वारा लगाई गई एक्साइज़ ड्यूटी पर। ये व्यवस्था 2010 से ही लागू है, और तब यूपीए की सरकार केंद्र में थी, न कि भाजपा की।
अब अगर राज्यों की बात करें, तो ताज़ा आंकड़ों के अनुसार सबसे कम दाम दमन में है, जहां पेट्रोल की कीमत केवल 74 रुपये है, और सबसे अधिक कीमत दिल्ली में है, जहां पेट्रोल की कीमत लगभग 97 रुपये थी। अगर कांग्रेस के राज्यों की ओर नजर डालें, तो राजस्थान और महाराष्ट्र में तो पेट्रोल की कीमत 90 रुपये के पार हैं, और झारखंड और छत्तीसगढ़ में भी पेट्रोल दर 85 रुपये से कम नहीं है।
इतना ही नहीं, जिस भाजपा पर कांग्रेस अनवरत पेट्रोल के दाम बढ़ाने का आरोप लगा रही है, उसी भाजपा ने अभी असम राज्य में कुछ अहम निर्णय लिए हैं, जिसके पेट्रोल और डीजल के दाम 5 रुपये तक कम हुए हैं। कोरोना वायरस के चलते लगाए गए अतिरिक्त सेस को असम सरकार ने हाल ही में हटाया है, जिसके कारण पेट्रोल और डीजल के दाम में 5 रुपये तक की कटौती की गई है।
इसके अलावा ये कांग्रेस ही थी जिसके कारण आज भी पेट्रोल और डीजल जीएसटी के दायरे में नहीं आ पाया है। यदि पेट्रोल और डीजल भी अन्य उत्पादों की भांति जीएसटी के दायरे में आता, तो अन्य उत्पादों की भांति पेट्रोल और डीजल पर भी अत्यधिक कर नहीं लगता, और उनके दाम भी ज्यादा अधिक नहीं होते। लेकिन अंध विरोध में कांग्रेस इतना नीचे गिर गई है कि वह अपने ही कमियों पर कोई ध्यान नहीं दे रही।