महबूबा मुफ्ती पर House Arrest का प्रभाव , उन्हें अभी भी लगता है कश्मीर का मुद्दा पाकिस्तान से बात करके हल हो जायेगा

किस गलतफहमी में जा रही हैं ये!

महबूबा मुफ्ती

PC: DECCAN HERALD

पुराने जमाने में जब ग्रामोफोन प्लेयर में रिकॉर्ड को चलाने वाली पिन एक जगह अटक जाती थी, और एक ही गीत बार बार सुनाई देता था, वैसे ही कुछ लोगों की सुई एक ही जगह अटक जाती है, और वे वही बात अनंतकाल तक दोहराते रहते हैं। ज़माना चाहे इधर से उधर हो जाए, पर मजाल है कि ये अपने विचारों से टस से मस हो, और ऐसा ही हाल जम्मू कश्मीर प्रांत की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती सईद को है ।

अनुच्छेद 370 को हटे 2 साल हो चुके हैं, कश्मीर के समीकरण अब पहले जैसे नहीं रहे, लेकिन लगता है कि महबूबा मुफ्ती को कोई आभास नहीं है। उन्हें लगता है कि ये अप्रैल 2018 से पहले वाला कश्मीर है, जहां उनकी तूती बोलती है। इसीलिए मोहतरमा ने कहा कि यदि कश्मीर की समस्या हल करनी है तो पाकिस्तान से बातचीत बहाल करनी पड़ेगी।

महबूबा मुफ्ती के अनुसार, “सरकार को यह सोचना चाहिए कि आखिकार कब तक जम्मू-कश्मीर के लोग, उसके पुलिस कर्मी एवं युवा अपने जान की कुर्बानी देना जारी रखेंगे। यह (कश्मीर मुद्दा) बड़ा मुद्दा है और इस मुद्दे का समाधान होना चाहिए ताकि जम्मू-कश्मीर में खूनखराबा बंद हो और यहां लोग शांति से रह सके। भाजपा सरकार विचार करे और संवाद प्रक्रिया शुरू करे ताकि खून खराबा बंद हो। हमारे कब्रिस्तान भर गए हैं। महबूबा ने कहा, संवाद प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए- चाहे (लोगों से) यहां से हो या पाकिस्तान से क्योंकि वे अकसर कहते हैं कि पाकिस्तान यहां हिंसा फैलाता है। हिंसा रोकने के लिए कम से कम संवाद प्रक्रिया शुरू की जा सकती है”

महबूबा मुफ्ती ने ये बातें श्रीनगर में हाल ही में हुए आतंकी हमले के परिप्रेक्ष्य में कही। बता दें कि श्रीनगर शहर के बाघाट इलाके में शुक्रवार को हुए आतंकवादी हमले में कॉन्स्टेबल सुहैल अहमद के अलावा एक अन्य पुलिस कर्मी भी शहीद हुआ था जबकि बड़गाम जिले में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में एक पुलिसकर्मी शहीद हुआ था। दक्षिण कश्मीर के शोपियां जिले स्थित बडगाम में हुए मुठभेड़ में तीन आतंकवादी भी मारे गए थे।

लगता है महबूबा मुफ्ती अभी भी नजरबंदी से पहले वाली प्रवृत्ति से बाहर नहीं निकली है। तभी तो निकाय चुनावों में विशेष प्रदर्शन न करने के बावजूद भी महबूबा अनर्गल प्रलाप करती फिरती है। उनको लगता है कि आज भी उनके बिना कश्मीर में एक पत्ता तक नहीं हिलता। लेकिन 2018 में उनकी सरकार के हटने से लेकर अब तक कश्मीर में जमीन आसमान का परिवर्तन आ चुका है।

चाहे जमीन आवंटन के नाम पर कट्टरपंथी मुसलमानों को रोशनी एक्ट के अंतर्गत पनाह देनी हो, या फिर अल्पसंख्यक के अधिकारों के नाम पर पुलवामा हमले के दोषियों तक का बचाव करना हो, महबूबा मुफ्ती किसी भी स्तर पे पीछे नहीं रही है। पाकिस्तान का नाम लेकर महबूबा मुफ्ती किस बात पे जोर दे रही हैं, इसके लिए किसी विशेष शोध की आवश्यकता नहीं है। लेकिन शायद महबूबा मुफ्ती भूल चुकी है कि नए भारत, विशेषकर नए कश्मीर में ऐसी गीदड़ भभकियों से कोई प्रभावित नहीं होता, और इस समय महबूबा मुफ्ती को दवा की भी जरूरत है और दुआ की भी।

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